नए विजन के साथ जनता को भी खड़ा होना होगा

By: Dec 20th, 2018 12:15 am

गांव की दहलीज के भीतर पशुपालन व ग्रामीण विकास विभाग की चौपाल पर खड़े मंत्री वीरेंद्र कंवर के हाथ मेहनत की माटी से सने हैं। वह पशुधन को वापस किसान के खूंटे से बांधना चाहते हैं, तो उन चुनौतियों का हल भी निकालना चाहते हैं, जो किसानी को ग्रामीण आर्थिकी से हटा रही हैं। वह बीपीएल परिवारों को प्रगति के प्रशस्ति पत्र की तरह जीवन की खुशहाली से जोड़ना चाहते हैं, ताकि गरीबी प्रदेश में अर्थहीन हो जाए। अपने सौम्य स्वभाव के बावजूद उन्होंने बेबाकी से ‘दिव्य हिमाचल’ के समाचार संपादक संजय अवस्थी के साथ विचार सांझा किए, तो इंटरव्यू के साक्षी बने लोकल डेस्क प्रभारी राजेश शर्मा जिला प्रभारी जीवन ऋषि तथा डीएचटीवी से ओंकार सिंह।

हिमाचल में गो सेंक्चुरी का क्या हुआ? क्या सभी पशुओं को गो सेंक्चुरी में ही शरण दी जाएगी।

वीरेंद्र कंवर : गो सेंक्चुरी में आवारा, बांझ और जिनका कोई वर्ण ही नहीं बचा है, उन पशुओं को रखा जाएगा। इस पर योजना बन गई है। अन्य पशुओं के लिए हम गो विज्ञान केंद्र बनाएंगे और इन्हें स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ जोड़ा जाएगा। इन केंद्रों में हम गाय को किसान के लिए लाभ देने वाली बनाएंगे। हम गाय को हाईब्रिड इंजेक्शन देंगे और साथ ही उस गाय को खाने-पीने तक का सारा राशन सरकार ही मुहैया करवाएगी। इसके लिए हमने फीड यूनिट लगाने की भी योजना बनाई है।

इस व्यवस्था को कैसे चलाएंगे? फीड खुले में बिक रही है। कंपनियां क्या दे रही हैं, पता नहीं। कैसे रोकेंगे?

कंवर : यह व्यवस्था चलाने के लिए हम कानून बना रहे हैं। कोई भी कंपनी सीधे फीड नहीं बेच पाएगी। फीड का निरीक्षण भी किया जाएगा।

प्रदेश में तूड़ी के ट्रक सीधे ही आ रहे हैं? उन पर क्या करेंगे?

कंवर : तूड़ी के ट्रकों पर भी शिकंजा कसा जाएगा। इसके लिए टीम के गठन के प्रयास चल रहे हैं।

हिमाचल में किसानों को कितने पशुधन की जरूरत है?

कंवर : हिमाचल में आबादी के बराबर पशुधन चाहिए। इसके आंकड़े आ रहे हैं। 2011 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 60 लाख मवेशी थे, जबकि आज ये इसका आधा ही रह गए हैं। पशु लाभ देने वाला नहीं रह गया है, इसलिए लोग इनसे किनारा कर रहे हैं।

हिमाचल में खेती और पशु अनुपूरक हैं। पर आज न खेती बची और न ही पशु, तो ऐसे में क्या पशुपालन विभाग सुरक्षित रहेगा?

कंवर : विभाग सुरक्षित है, पर हम पशुओं की नस्लें सुधारने पर काम नहीं कर पाए। पहले हमारे पास एक सिस्टम के तहत पशुओं की व्यवस्था होती थी, पर अब ऐसा नहीं रहा। अब लोग एक ही पशु रखते हैं। लोग पशुपालन, खेतीबाड़ी के बजाय नौकरीपेशा हो गए हैं, इसलिए यह सिस्टम खत्म हो गया है। हमने बकरी पालन योजना शुरू की है।

जिस खेती को पशु चला रहा था, वह अब उसे ही खा रहा है। लिहाजा खेत उजड़ रहे हैं। आवारा पशुओं के लिए बाड़ा तक नहीं बना, ऐसा क्यों?

कंवर : इसमें विजन की कमी रही है। कोर्ट ने बाड़े बनाने के आदेश भी दिए थे। पैसे के चक्कर में 40 पंचायतों ने आवेदन भी कर दिया और ये बाड़े महज दस पंचायतों में ही बनाए। अब सरकार इस दिशा में काम कर रही है और गोशाला चलाने के लिए लोग भी आगे आ रहे हैं।

हिमाचल में देशी नस्लें कितनी बची हैं?

कंवर : प्रदेश में कहीं भी देशी नस्लें नहीं हैं। सब संकर नस्लें हो गई हैं। हमारे पास न तो जर्सी बची और न ही पहाड़ी। देशी नस्लों के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्रोजेक्ट बनाया है। जब हमारी साहिवाल ब्राजील में जाकर 80 लीटर दूध दे सकती है, तो उससे हम हिमाचल में ही इतना दूध क्यों नहीं ले सकते। हम गौरी नाम से पहाड़ी गाय का संरक्षण करेंगे।

पशु वैज्ञानिक कहीं काम करते नहीं दिखाई देते। क्या आपको लगता है कि ऐसे हाल में पालमपुर का अनुसंधान केंद्र बचा रहेगा?

कंवर : ऐसा नहीं है। प्रदेश में पशु वैज्ञानिक अच्छा काम कर रहे हैं। मैंने खुद पालमपुर का दौरा किया है। उन वैज्ञानिकों को किसी सरकार ने पूछा ही नहीं है। मैंने उनसे प्रोजेक्ट मांगे हैं, जिन पर हम काम कर सकते हैं।

पशुपालन विभाग जो पशुओं की नई नस्लें तैयार करेगा, उन्हें पशुपालकों तक कैसे पहुंचाएगा?

कंवर : इस पर प्रयास चल रहा है। लोगों की मांग रही है कि अच्छी नस्ल के पशु लाए जाएं। पहले हम रिसर्च करेंगे, उसके बाद ही लाए जाएंगे। विभाग खुद भी मेले लगाकर किसानों को अच्छी नस्लें दिखाएगा।

मानव चिकित्सा में कुछ दवाइयां फ्री मिलती हैं, क्या आपके विभाग में भी ऐसी व्यवस्था है कि कौन सी दवाएं फ्री होनी चाहिएं?

कंवर : इसकी हम लिस्ट तैयार कर रहे हैं। हालांकि ज्यादातर दवाइयां फ्री होती हैं, लेकिन वे दी जाती हैं या नहीं, कह नहीं सकते। अभी हमने पांच करोड़ की नई खरीद की है। अब इसे सख्ती से लागू किया जाएगा।

फिशरीज पर क्या शोध हो रहा है? ब्रीड पर वहां भी तो असर है?

कंवर : सही है। असर पड़ा है और यही कारण है कि पिछले कुछ अरसे से हिमाचल में मत्स्य उत्पादन गिरा है। गोबिंदसागर में रिसर्च पर सामने आया कि वहां मरा हुआ बीज डाल दिया। खेतों में कीटनाशक के ज्यादा स्पे्र से भी मछलियां मर गईं। एनटीपीसी कोल डैम से एकदम पानी छोड़ देती है, उससे भी बीज तबाह हो जाता है और साथ ही मानसून की भी मार पड़ती है। हमने ये दिक्कतें जानीं और अब मछली का 90 एमएम का बीज डाला है, साथ ही ब्रीडिंग पीरियड भी 15 दिन बढ़ाया है।

हिमाचल की मछली को ब्रांड बनाने की बात हुई थी, उस पर आगे क्या हुआ?

कंवर : यहां मछली बहुत बढि़या है। मार्केट अच्छी है, पर अब पैदावार कम हो रही है। अब हम पौंड कल्चर डिवेलप कर रहे हैं। साथ ही हैचरी खोलने पर भी विचार चल रहा है, ताकि हम अपने बांधों में यहीं से बीज डाल सकें। इसके लिए बिलासपुर और ऊना में स्पेशल यूनिट लगा रहे हैं। मछली पालन में हम मनरेगा के तहत लोगों को तालाब खुद बनाकर दे रहे हैं, ताकि इसे बढ़ावा मिले और यह कमाई का जरिया भी बन सके।

पंचायतें सिर्फ बीपीएल में नाम दर्ज करवाने तक ही सीमित होकर रह गई हैं। ग्राम सभा में आम आदमी नहीं जा रहा है। क्या कहेंगे?

कंवर : योजनाएं इतनी ज्यादा हो गई हैं कि अब सच में आम आदमी ग्रामसभा में नहीं आ रहा है। हमने नई योजना शुरू की है ग्राम पंचायत विकास कमेटी। इसमें सभी विभाग होंगे। कमेटी में सामूहिक योजना बनेगी। जब वह पास हो जाएगी, तो उसके लिए बोर्ड बनेगा। बीपीएल में तो हमने आते ही व्यवस्था टाइट की है। बीपीएल परिवार के मुखिया को 25 दिन तक मनरेगा में काम करना ही होगा। साथ ही गरीब होने का शपथपत्र भी देना होगा। यह व्यवस्था सिर्फ हिमाचल में ही है।

मंत्री-विधायक और नेता को अपना विजन पूरा करने में कहां दिक्कत आती है?

कंवर : राजनीतिक विषय है। दबाव रहता ही है। चाहे सरकार का हो या जनता का। विजन में हमें जो दिक्कत आती है, वह लोगों के स्वभाव के कारण आती है। किसी भी बदलाव के लिए सरकार और अधिकारी तैयार होते हैं, पर जनता नहीं होती है। ऐसे में परेशानी होती है।

आपका ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

कंवर : पशुओं को फिर से किसान के खूंटे तक पहुंचाना ही मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है। मैं उपप्रधान से मंत्री पद तक पहुंचा हूं और गांव के लोगों को रोजगार मुहैया करवाना ही मेरा लक्ष्य है।

हिमाचल का ग्रामीण परिदृश्य मानसिक रूप से शहरी है। आपकी सरकार आते ही कूड़ादान लग गए। आज उन डस्टबिनों की हालत देखकर आपको क्या लगता है?

कंवर : शहरों में कूड़े की दिक्कत है। कूड़ा एकत्रित करने और उसके निष्पादन की सही व्यवस्था नहीं है। पालमपुर की आईमा पंचायत की तर्ज पर हम सड़क किनारे वाली 16-16 पंचायतों का क्लस्टर बना रहे हैं। दस क्लस्टर बना दिए हैं। कूड़ा संयंत्र लगाए जा रहे हैं।

मनरेगा को टूरिज्म से कैसे जोड़ेंगे?

कंवर : इस पर काम चल रहा है। प्रमुख साइट्स पर रेन शेल्टर, टायलट और कैफेटेरिया बनाए जाएंगे। उसी का संचालक साफ-सफाई और प्रबंधन देखेगा। वहीं हम ग्रामीण हाट भी सजाएंगे, जहां सैलानियों को स्वयं सहायता समूहों के बनाए उत्पाद मिलें।

पंचायतों के सभी दफ्तरों के लिए क्या एक ही बिल्डिंग नहीं होनी चाहिए। खस्ताहाल डिस्पेंसरी सुधारने के लिए क्या योजना है?

कंवर : इस पर काम कर रहे हैं। 120 डिस्पेंसरी में टायलट तक नहीं है। अब हालत सुधर रही है। सभी दफ्तर एक ही जगह हों, ऐसा भी प्रयास चल रहा है। कायाकल्प यूनिट पर भी हम काम कर रहे हैं।

अन्य जिला में लंबे समय से सिर्फ दो ही लोगों को मतदाताओं का आशीर्वाद मिल रहा है। क्या राज है?

कंवर : यह सब जनता का प्यार है। उपप्रधान से लेकर मंत्री तक, मेरा काम करने का तरीका नहीं बदला है। मैं हमेशा सौ फीसदी देने का प्रयास करता हूं। लारे-लप्पे नहीं लगाता। लोगों से सीधा संवाद करता हूं।

नेता व्यक्ति का होता है या पार्टी का। आप पहले विधायक थे, जिन्होंने श्री धूमल के लिए अपनी सीट छोड़ने का ऐलान किया था।

वीरेंद्र कंवर- प्रेम कुमार धूमल के अलावा अगर कोई और भी बड़ा नेता होता, तो भी मैं यही करता। पार्टी नेता का सम्मान करना हर कार्यकर्ता का दायित्व होता है। मेरा स्वभाव है कि मैं नेतृत्व के प्रति ईमानदार हूं। मैं जब पार्टी में आया था तो कभी नहीं सोचा था कि मंत्री बनूंगा।

अब तक के मुख्यमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ कौन रहा है?

वीरेंद्र कंवर- मेरे लिए पार्टी का नेतृत्व ही सर्वश्रेष्ठ है। वर्तमान सीएम जयराम ठाकुर ग्रामीण परिवेश से आए हैं। वह गांव की दिक्कतें जानते हैं। उनका विजन भी बहुत अच्छा है। जयराम ठाकुर अच्छा काम कर रहे हैं।


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