प्रधान सेवक या प्रधान शासक

By: Jan 3rd, 2019 12:07 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

प्रधानमंत्री ने दावा भी किया कि नोटबंदी एकाएक उठाया गया कदम नहीं था, क्योंकि वे काले धन वालों को चेतावनी देते रहे थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया और उनसे यह नहीं पूछा गया, कि यदि यह योजना एक वर्ष पहले से अमल में लाई जा रही थी, तो देश को लाइनों में क्यों लगना पड़ा, रिजर्व बैंक को नए नोट छापने में देर क्यों हुई? नोटबंदी से ठीक पहले भाजपा की कुछ शाखाओं ने एक साथ करोड़ों रुपए बैंक में कैसे जमा करवा दिए? उन सहकारी बैंकों में करोड़ों की नगदी कैसे आ गई, जिनके निदेशक अमित शाह हैं…

पिछले लोकसभा चुनावों के समय भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने इंडिया टीवी के रजत शर्मा द्वारा संचालित कार्यक्रम ‘आप की अदालत’ के अतिरिक्त कहीं भी किसी पत्रकार के साथ दोतरफा संवाद नहीं किया था। मीडिया उनके ट्वीट देखता था, उनके भाषण सुनता था या अन्य पार्टी प्रवक्ताओं की बातें सुनता था। दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से अचानक इस्तीफा देने के बाद तब अरविंद केजरीवाल अपनी चमक गंवा बैठे थे और कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 निष्क्रियता, अनिर्णय और भ्रष्टाचार के कारण बुरी तरह से बदनाम थी। वह समय ऐसा था कि जनता को मोदी ही मोदी नजर आते थे। मोदी मीडिया से मिले बिना भी मीडिया का एजेंडा तय कर रहे थे। उनकी रणनीति, ऊर्जा और बारीक नजर का परिणाम यह था कि देश में मोदी की लहर बन गई। भाजपा उन सीटों पर भी जीती, जहां उसका कोई संगठन नहीं था।

परिणाम अद्भुत था। देश में पहली बार एक गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जिसमें एक विपक्षी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त था। यह चमत्कार जैसा ही था कि मोदी प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण मोदी ने अपने सहयोगी दलों को मंत्रिमंडल में स्थान तो दिया, परंतु सहयोगी दल मोदी अथवा उनकी नीतियों का विरोध करने की स्थिति में नहीं थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी ने प्रेस कान्फे्रंस से हमेशा गुरेज किया है। सीधे सवालों से वे इतना गुरेज करते हैं कि अपनी ही पार्टी के एक कार्यकर्ता के असुविधाजनक सवाल से वे इतने परेशान हुए कि उन्होंने कार्यकर्ताओं से भी 48 घंटे पहले सवाल मांगने की परिपाटी गढ़ दी। अब वे प्रधानमंत्री हैं, उनका कहा हर शब्द खबर है। वे अपनी स्थिति का पूरा लाभ उठा सकते थे, उठा ही रहे हैं। अब भी अपने बारे में मीडिया का एजेंडा वे तय करते हैं। मीडिया उनके एजेंडे के अनुसार चलने के लिए विवश है। इसके कई कारण हैं। पहला कारण तो यही है कि वे प्रधानमंत्री हैं और उनकी बातों, बयानों या भाषणों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी नीति क्या है। सरकार के मुखिया की सोच जनता के सामने रखना मीडिया की रूटीन है। मोदी इसका लाभ ले रहे हैं। दूसरा कारण यह है कि मीडिया भी उद्योग है और धंधे में जमे रहने के लिए मीडिया घरानों को भी पैसे की आवश्यकता है।

मीडिया घरानों के लिए विज्ञापन की आय जीवनरेखा है। सरकारी विज्ञापन और सरकार समर्थक व्यापारिक घरानों के विज्ञापन किसी भी अखबार या टीवी चैनल की नीतियों को प्रभावित करने में समर्थ हैं। विज्ञापन रोकने की सिर्फ एक घुड़की ही किसी मीडिया घराने को ‘सीधा’ करने के लिए काफी है। नियामक संस्थाओं और टैक्स अधिकारियों द्वारा किसी विशेष मीडिया घराने को परेशान करके उसे घुटनों पर ले आना तीसरा बड़ा कारण है। एनडीटीवी का बिकना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। मनपसंद पत्रकारों और मीडिया घरानों को सुविधाएं देना चौथा कारण है। प्रधानमंत्री बनने के बाद एएनआई की डायरेक्टर स्मिता प्रकाश को दिया मोदी का इकलौता इंटरव्यू इसका हालिया उदाहरण है। इस इंटरव्यू में मोदी ने एक बार फिर ‘मन की बात’ ही कही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह इंटरव्यू नहीं था, बल्कि किसी जमाने में अमरीका के विदेश मंत्री रहे हेनरी किसिंगर के एक प्रसिद्ध बयान का दोहराव मात्र लगता है। किसिंगर ने पत्रकारों को व्यंग्यपूर्वक कहा था – ‘हू हैज क्वेश्चंस टू माई आंसर्स?’ यानी  मेरे जवाबों से संबंधित सवाल कौन पूछेगा? भावार्थ यह कि मैं जो जवाब देना चाहता हूं उससे संबंधित और वैसा ही सवाल कौन पूछेगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह इंटरव्यू ऐसा ही है, जहां उनसे ऐसे सवाल पूछे गए और इस तरह से पूछे गए, ताकि वे अपना पक्ष पूरी तरह से रख सकें। सवालों के उत्तर में उठने वाली शंकाओं से संबंधित सवाल नहीं पूछे गए, उन्हें कहीं भी काउंटर नहीं किया गया, प्रतिप्रश्न नहीं पूछे गए। इंटरव्यू में क्या हुआ, इसे भूल जाएं तो भी यह महत्त्वपूर्ण है कि इस इंटरव्यू को लेकर पूरा मीडिया टिप्पणियां कर रहा है। यानी, इस बार भी मीडिया का एजेंडा नरेंद्र मोदी ने तय किया है। इस रणनीति के तात्कालिक लाभ हैं, लेकिन दूरगामी हानियां भी हैं। लाभ शासक को हैं, हानियां देश को हैं। शासक को लाभ यह है कि सिर्फ उसकी बातों की चर्चा है, उसके नजरिए पर बहस है, उसके नजरिए के मुताबिक बहस है और देश को हानि यह है कि शासन-प्रशासन में जनता की पहले से ही नगण्य भागीदारी को बिलकुल समाप्त किया जा रहा है। एक ऐसी खतरनाक परंपरा गढ़ी जा रही है कि जनता की आवाज बाकी ही न रहे।

किसी की बोलने की हिम्मत ही न हो, या हर असहमत व्यक्ति को यह स्पष्ट हो जाए कि विरोध की दशा में उसकी सुनवाई तो नहीं ही होगी, परेशानियां और अपमान अलग से झेलने पड़ेंगे। अतिवादियों की एक फौज तैयार हो रही है, जो किसी भी विरोधी स्वर को दबाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। मोदी स्वयं को बार-बार जनता का प्रधान सेवक कहते हैं लेकिन उनका हर विचार, हर नीति, हर नीयत, हर काम यह दर्शाता है कि वे प्रधान सेवक नहीं, बल्कि प्रधान शासक हैं। एएनआई को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि वे इस बात से चिंतित हैं कि किसान कर्ज में डूबते ही क्यों हैं और इस स्थिति को बदलना चाहते हैं, लेकिन अपने पूरे कार्यकाल में अब तक उन्होंने इस गंभीर समस्या के हल के लिए कुछ भी नहीं किया, न ही यह बताया है कि वे इस समस्या के हल के लिए असल में क्या करना चाहते हैं, कैसे करना चाहते हैं?

उन्होंने यह दावा भी किया कि नोटबंदी कोई एकाएक उठाया गया कदम नहीं था, क्योंकि वे काले धन वालों को चेतावनी देते रहे थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया और उनसे यह नहीं पूछा गया, कि यदि यह योजना एक वर्ष पहले से अमल में लाई जा रही थी, तो देश को लाइनों में क्यों लगना पड़ा, एटीएम कई-कई दिन बंद क्यों रहे, रिजर्व बैंक को नए नोट छापने में देर क्यों हुई, नए नोटों के आकार और एटीएम की केलिब्रेशन में समरूपता क्यों नहीं थी? नोटबंदी से ठीक पहले भाजपा की कुछ शाखाओं ने एक साथ करोड़ों रुपए बैंक में कैसे जमा करवा दिए? उन सहकारी बैंकों में करोड़ों की नगदी कैसे आ गई, जिनके निदेशक अमित शाह हैं? आज सब लोग चुप हैं। चुप रहना उनकी विवशता है, लेकिन लोग बोलेंगे जरूर, वे जुबान से नहीं बोल पाएंगे तो वोट से बोलेंगे, पर बोलेंगे जरूर या तो मोदी उससे पहले अपना रवैया बदलेंगे या फिर लोग उन्हें बदल देंगे।

 ईमेलः indiatotal.features@gmail.


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App