अब मुद्दों की स्ट्राइक

By: Mar 7th, 2019 12:07 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

एक और बात पर ध्यान देना आवश्यक है। बालाकोट हमले के बाद आतंकवादियों की संख्या को लेकर फौज ने कभी कोई दावा नहीं किया। इसलिए यदि कोई सवाल उठाए जा रहे हैं, तो ये फौज के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यदि राजनीतिक नेताओं ने कोई दावा किया है, तो उसकी पड़ताल का मतलब सेना की कार्रवाई पर शक करना कदापि नहीं है, सेना और सरकार दो अलग चीजें हैं…

प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने दो बार पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करवाई। निश्चय ही राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना ऐसा संभव नहीं था। हमारी सेनाओं के जवान और अधिकारी तो बधाई के पात्र हैं ही, प्रधानमंत्री भी इसके लिए साधुवाद के पात्र हैं। बालाकोट हमले में कितने आतंकवादी मरे या नहीं मरे, यह एक अलग मुद्दा है, पर एक बात तो स्पष्ट है कि भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के हुक्मरानों, वहां की फौज और जनता को यह दिखा दिया है कि वह पाकिस्तान के अंदर घुस कर चोट करने में समर्थ है। इमरान खान की ओर से पायलट अभिनंदन की रिहाई और शांति की बातें असल में उस किरकिरी को छिपाने के लिए हैं, जो इस सर्जिकल स्ट्राइक के कारण हुई है। हमें सिर्फ यह याद रखना होगा कि सर्जिकल स्ट्राइक का निर्णय हमारी ओर से पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए एक कदम मात्र था, यह कोई संपूर्ण हल नहीं है। दो-दो सर्जिकल स्ट्राइक्स के बावजूद न तो आतंकवादी घटनाएं रुकी हैं और न ही पाकिस्तान की ओर से सीमा के उल्लंघन की घटनाओं में कोई कमी आई है।

नोटबंदी के समय दावा किया गया था कि इससे पाकिस्तान की ओर से आने वाला धन बंद हो जाएगा, हमारे देश के पत्थरबाजों को मुख्यधारा में लौटना पड़ेगा। पहली बार की सर्जिकल स्ट्राइक के समय फिर कहा गया कि हमने सीमा के साथ लगे उनके आतंकवादी कैंप को नष्ट कर दिया है, अब आतंकवादी घटनाओं पर अंकुश लगेगा। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार बनाते वक्त भी दिलासे दिए गए कि पाकिस्तान से बातचीत के हिमायती एक बड़े प्रादेशिक राजनीतिक दल को मुख्यधारा में लाने से अलगाववाद पर अंकुश लगेगा, यही तर्क फिर दोहराया गया जब गठबंधन की सरकार टूटी। दिलासों का क्रम यहीं नहीं रुका। जम्मू-कश्मीर में पहले राज्यपाल का शासन और फिर सीधे केंद्र सरकार का शासन भी आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में कामयाब नहीं हो पाया है और अब दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी हमारे सामने वही सवाल है कि  ‘आगे क्या’? एक और बात पर ध्यान देना आवश्यक है। बालाकोट हमले के बाद आतंकवादियों की संख्या को लेकर फौज ने कभी कोई दावा नहीं किया। इसलिए यदि कोई सवाल उठाए जा रहे हैं, तो वे फौज के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यदि राजनीतिक नेताओं ने कोई दावा किया है, तो उसकी पड़ताल का मतलब सेना की कार्रवाई पर शक करना कदापि नहीं है, सेना और सरकार दो अलग चीजें हैं। सरकार की किसी बात पर सवाल उठाना एक अलग बात है और सेना की बहादुरी पर शक करना बिलकुल अलग चीज है। हम सब भारतीय अपनी सेनाओं की वीरता के कायल हैं और पूरे देश का समर्थन उनके साथ है। यह स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है कि पाकिस्तान के खिलाफ वर्तमान सैनिक कार्रवाई के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इच्छाशक्ति का परिचय दिया है, लेकिन साथ ही वे इसे एक विशुद्ध राजनीतिक मुद्दा बनाकर वोट हथियाने के हथियार में बदलने के दोषी भी हैं, वरना ऐसा कैसे संभव था कि पटना में प्रधानमंत्री चुनावी रैली के लिए तो पहुंच गए, पर सीमा पर शहीद हुए वीर सैनिक के सम्मान के लिए उनके पास समय नहीं था? भावनाओं में बहने के बजाय हमें सरकार के हर कदम का विश्लेषण तर्क की कसौटी पर कसना चाहिए। मोदी ने अपने शपथ समारोह में नवाज शरीफ को न्योता दिया, फिर एक बार वह अचानक पाकिस्तान पहुंचे, जम्मू-कश्मीर में साझा सरकार बनाकर आतंकवाद पर अंकुश की कोशिश की, यह प्रयोग भी सफल न होने पर सरकार से बाहर हुए, पाकिस्तान पर दो-दो बार सर्जिकल स्ट्राइक की। ये सभी कदम इस बात के प्रमाण हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के अंकुश के लिए प्रयास जारी रखे। इसके लिए मोदी की प्रशंसा होनी चाहिए। दूसरा पहलू यह है कि सरकार की सारी कोशिशों के बावजूद आतंकवाद की घटनाओं पर कोई प्रभावी अंकुश नहीं लग पाया है, जो इस बात का प्रमाण है कि मोदी और उनके सलाहकार जम्मू-कश्मीर के हालात को सही ढंग से समझने और उनका हल ढूंढने में नाकाम रहे हैं, जिससे प्रदेश की स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हुई है। इन कार्रवाइयों और नीतियों पर सवाल उठाना देशद्रोह नहीं है। मोदी की नीतियों की आलोचना देशद्रोह नहीं है। मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन वह देश नहीं हैं, देश उनसे बहुत-बहुत बड़ा है। मोदी की आलोचना देश की आलोचना नहीं है। देशभक्ति अपनी जगह है और मुद्दे अपनी जगह। मुद्दों को लेकर सवाल करने का हक हर किसी को है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। चुनाव सामने आने पर मोदी अब रेवडि़यां बांट रहे हैं, हर वर्ग को लालीपॉप दे रहे हैं, पर उनके शासनकाल में यह स्पष्ट हो गया है कि उनके पास रोजगार सृजन के लिए कोई कारगर नीति नहीं है।

महंगाई पर अंकुश लगाने का कोई उपाय नहीं है, किसानों को राहत पहुंचाने की घोषणाएं कागजी हैं, छोटे व्यापारियों को अपना व्यापार जमाए रखने में दिक्कतें आ रही हैं। ई-कामर्स और आनलाइन शॉपिंग के कारण पारंपरिक व्यवसाय बदहाल हैं, तो सरकार की नीतियों के कारण ई-कामर्स उद्यमी भी सांसत में हैं। विकास की बातें कहीं पीछे छूट गई हैं और धर्म और फौज के नाम पर चुनाव जीतने की कोशिशें हैं। विपक्ष की हर आलोचना को पाकिस्तान से जोड़ना एक ऐसी विनाशकारी प्रथा है, जो देश और समाज के लिए हितकारी नहीं है। यह सिर्फ एक चुनावी साजिश है और इसका भरपूर विरोध होना चाहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई का स्वागत है, परंतु वह एकतरफा ही नहीं होनी चाहिए। मोदी यदि भ्रष्टाचार का उन्मूलन चाहते हैं, तो फिर जय शाह के खिलाफ भी जांच होनी चाहिए, उस पर भी सीबीआई के छापे पड़ने चाहिएं। जिस केंद्रीय मंत्री के बेटे की कंपनी का बनाया पुल उत्तर प्रदेश में गिर गया और 60 लोग मर गए, उसकी जांच होनी चाहिए, येदियुरप्पा के भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए, रेड्डी भाइयों के खिलाफ जांच होनी चाहिए। गोमांस अगर मुद्दा है, तो वह मुद्दा गोवा में क्यों नहीं है, असम में क्यों नहीं है, उत्तर-पूर्व के शेष राज्यों में क्यों नहीं है? आमिर खान की ‘पीके’ पर ऐतराज है, तो परेश रावल की ‘ओएमजी’ पर क्यों नहीं है? मुद्दों पर सवाल देशद्रोह नहीं है और यह दोहराने में कोई हर्ज नहीं है कि देशभक्ति अपनी जगह है और मुद्दे अपनी जगह। मुद्दों पर सवाल होना चाहिए, ताकि कोई सत्ताधारी तानाशाह न बन जाए। इसी में देश का भला है।

ई-मेलः indiatotal.features@gmail


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