धार्मिक आडंबरों से दूर सृष्टि माता मंदिर

By: Mar 23rd, 2019 12:07 am

परिक्रमा पथ में जहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है, वहीं से सीढि़यां बाहर आती हैं, जिनके बायीं ओर ब्रह्मकुंड स्थापित है जहां आपको हर ओर ओम की मधुर ध्वनि का आभास होगा। मंदिर के बाहर स्थापित देव स्तंभ देव शक्तियों का प्रतीक है। इसे राम स्तंभ और अशोक स्तंभ भी कहा जाता है…

गतांक से आगे…

मंदिर की छत में शीशे के लघुतम टुकड़ों को बहुत बारीकी से इस तरह मढ़ा गया है ताकि वे सितारों की तरह चमके और बह्मांड की तरह लगे। परिक्रमा पथ में जहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है, वहीं से सीढि़यां बाहर आती हैं, जिनके बायीं ओर ब्रह्मकुंड स्थापित है, जहां आपको हर ओर ओम की मधुर ध्वनि का आभास होगा। मंदिर के बाहर स्थापित देव स्तंभ देव शक्तियों का प्रतीक है। इसे राम स्तंभ और अशोक स्तंभ भी कहा जाता है। तारादेवी और फायल निवासियों का मानना है कि इसे कालांतर में काली के मोड़ के नाम से जाना जाता रहा है। यहां बान का एक विशाल वृक्ष मौजूद था, जिसके मूल खोखल में मां दुर्गा की एक लघु प्रतिमा, छोटा सा त्रिशूल और कई प्रकार के सिक्के विद्यमान थे। आसपास झाडि़यों में छोटी-छोटी झंडियां लगी रहती थीं। ग्रामीण यहां आकर मां दुर्गा की पूजा करते और हर मास संक्रांति को देव पंचायत होती। वर्ष 1970 में यहां लोक निर्माण विभाग की कर्मशाला का जब निर्माण शुरू हुआ, तो बान के पेड़ को काट दिया गया और वहां मौजूद दुर्गा की प्रतिमा, त्रिशूल और अन्य सामान को हटा कर एक पाजे के पेड़ पर लटका दिया गया। उसके बाद कई अप्रिय घटनाएं होने लगीं। उन दिनों बुजुर्ग लोग दैनिक वेतन पर यहां कार्यरत थे, उनमें एक श्री मोलू राम थे, जो समीप के गांव फायल के निवासी थे। वे कहा करते थे कि यह काली मां का स्थान है इसलिए यहां ज्यादा छेड़छाड़ ठीक नहीं है। कर्मचारियों ने प्रतिमास प्रसाद बनाने का निर्णय लिया और यह सिलसिला चलता रहा। यदि किसी मास ऐसा न किया जाता, तो कुछ अनहोनी घट जाती। यहीं से मां सृष्टि माता के मंदिर निर्माण की नींव पड़नी आरंभ हुई। धार्मिक वृत्ति के स्वामी श्री रमेश ठाकुर के माता-पिता बचपन में ही गुजर गए थे। उन्होंने अंक ज्योतिष के साथ-साथ अनेक देव-कलाओं का भी अध्ययन और साधना की है। वर्ष 1975 से ही उन्हें स्वप्न में एक साधु दिखाई देते थे, जो कहते कि वे महर्षि जमदग्नि हैं और भगवान परशुराम जी के पिता हैं। महर्षि उन्हें कहते कि तुम सृष्टि माता के मंदिर का निर्माण करो जो मेरी आराध्य मां है। इस पर रमेश जी कहते कि उनके पास न तो धन है और न ही पक्की नौकरी है। महर्षि बोलते कि समय आने पर वे सब कुछ बता देंगे। रमेश ठाकुर बताते हैं कि स्वप्न में ही महर्षि ने उन्हें कहा कि तुम मंदिर बनाने के लिए न तो मना करना और न ही समय आने तक इस भेद को खोलना। मैं स्वयं समय पर सब कुछ स्पष्ट कर दूंगा और ऐसे लोगों को भेजूंगा जो स्वयं मंदिर निर्माण में सहयोग करते जाएंगे। महर्षि ने रमेश जी को बताया कि उन्होंने मलाणा की पहाडि़यों पर घोर तप किया है जिस वजह से वहां के लोग उन्हें जमलु देवता के नाम से जानते हैं। श्री रमेश ठाकुर आगे बताते हैं कि स्वप्न में ही महर्षि ने यह मार्गदर्शन दिया कि वे किसी को शूद्र नहीं मानते। उनके सभी प्रिय हैं। अठारह करोड़ देवी-देवता मुझे मानते हैं और मैं सृष्टि को मानता हूं। मैं सभी विद्याएं तुझे सिखाऊंगा और 20 वर्ष बाद यह कार्य आरंभ होगा। संयोग देखिए कि श्री रमेश ठाकुर लोक निर्माण विभाग में वर्ष 1980 में स्थायी नौकरी में नियुक्त हो गए और वर्ष 1995 में वे तारादेवी स्थित कर्मशाला में आ गए। यहां आने के बाद उन स्वप्नों का सिलसिला फिर शुरू हो गया और रमेश अपने स्टाफ  से जिक्र करते रहे कि उन्हें यहां एक भव्य मंदिर दिखाई देता है। जिसके शिखर पर पांच कलश स्थापित हैं। भीतर परिक्रमा पथ में चार प्रतिमाएं विराजमान हैं। बाहर देव स्तंभ है और साथ ब्रह्मकुंड स्थापित हैं। बहुत से महात्मा और साध्वियां भगुए व पीले वस्त्र पहने मां का मंगल गान कर रही होती हैं, लेकिन उनके चेहरे नहीं दिखते और इस तरह रमेश जी अपने को सबसे पीछे बैठे व उन्हें निहारते पाते थे। सबसे पहले रमेश ठाकुर ने विश्वकर्मा की विराट प्रतिमा स्थापित की, जिसकी उन्होंने स्वयं विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। वे बताते हैं कि उन्हें स्वप्न में ऐसे मंत्रों का ज्ञान हुआ, जिन्हें कभी कहीं पढ़ा भी नहीं था। उसके बाद अनेक कठिनाईयों और संघर्ष करते हुए उन्होंने मंदिर परिसर का निर्माण अपने स्टाफ  और यजमानों के सहयोग से वर्ष 2000 में शुरू किया। मंदिर की प्रतिष्ठा अप्रैल 2013 में हुई और उसके बाद इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक पहुंचती रही। आज मां सृष्टि माता के यजमान हजारों की संख्या में हैं।

 – एस आर हरनोट, शिमला


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