प्रजातंत्र की चाट-पकौड़ी

By: Mar 21st, 2019 12:07 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की कंपनी का बनाया पुल उत्तर प्रदेश में ढह गया, साठ से अधिक लोग मारे गए, लेकिन कोई अंगुली नहीं उठी, कोई जांच नहीं हुई। जीवन बीमा निगम के फंड का दुरुपयोग, रिजर्व बैंक के फंड का दुरुपयोग और अब शेष सरकारी बैंकों तथा नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के संसाधनों का दुरुपयोग एक बहुत बड़ा घोटाला है। अर्थव्यवस्था सचमुच बुरे हाल में है, बेरोजगारी हद से ज्यादा है, सरकार आंकड़ों में गोलमाल कर रही है और मोदी पूरे विश्वास के साथ झूठ बोलते हैं। खुद पर, अन्य मंत्रियों, भाजपा नेताओं पर लगे आरोपों का मोदी कोई जवाब नहीं देते…

खबर है कि जेट एयरवेज के सिर्फ 41 विमान उड़ान भरने के लिए बचे हैं, इसके कर्मचारियों को दिसंबर से ही पूरा वेतन नहीं मिल रहा है। अतः इसके पायलटों ने अब वेतन न मिलने की स्थिति में सोमवार से हड़ताल पर जाने की धमकी दे रखी है। मानसिक तनाव में चल रहे इंजीनियरों से अनजाने में कोई लापरवाही हो जाए, तो यात्रियों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है, जो किसी बड़े हादसे का कारण बन सकता है। उल्लेखनीय है कि जेट एयरवेज देश की दूसरी सबसे बड़ी विमानन कंपनी है। चुनाव का समय है और प्रधानमंत्री नहीं चाहते हैं कि ऐसे समय हजारों लोग बेरोजगार हो जाएं और इस कारण उन्हें चुनाव जीतने में कोई परेशानी आ जाए। इसलिए सरकारी बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे जेट एयरवेज के कर्ज को इक्विटी में बदल दें। सरकार के 49 प्रतिशत स्वामित्व वाले नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड को भी जेट एयरवेज में हिस्सेदारी खरीदने को कहा गया है। यह अत्यंत आश्चर्य का विषय है कि जब स्वयं बैंक दबाव में हैं, ऐसे में इनके संसाधनों का दुरुपयोग करके एक प्राइवेट एयरलाइन को दिवालिया होने से बचाने की कोशिश की जा रही है। हम नागरिकों को सरकार से तो शिकायत है ही, विपक्ष का हाल सरकार से भी बदतर है। कांग्रेस सिर्फ राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने पर आमादा है।

पक्के कांग्रेसियों के अलावा यह शायद ही किसी अन्य को स्वीकार होगा। अगर हम राहुल गांधी को अपरिपक्व न भी कहें, तो भी उन्हें प्रधानमंत्री पद के काबिल मानना मुश्किल लगता है। राहुल गांधी निश्चय ही कई घोषणाएं कर रहे हैं, लेकिन वे घोषणाएं देश की समस्याओं के समाधान के बजाय मतदाताओं के लिए लॉलीपाप ज्यादा लगते हैं। स्वर्गीय कांशी राम ने बहुजन समाज पार्टी की नींव रखी थी, तो उद्देश्य यह था कि दलित और वंचित वर्ग के लोग कंबल और शराब या कुछ रुपयों के बदले वोट न बेचें, बल्कि वोट की ताकत को समझें, लेकिन मायावती के उदय के बाद पार्टी का चरित्र बदल गया और मायावती करोड़ों में पार्टी की उम्मीदवारी के टिकट बेचने लग गईं। वह दलितों के लिए कोई ठोस काम या ठोस नीति बनाने में असफल रही हैं, हालांकि उनके मुख्यमंत्रित्व काल के बारे में यह कहा जाता है कि वह अपराधियों पर नकेल कस कर रखती थीं। सन् 2014 के चुनाव के समय उनकी सोशल इंजीनियरिंग की कला काम नहीं आई, इसीलिए अब उन्होंने अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से गठबंधन करके दलितों, यादवों और मुसलमानों के वोट एक साथ जोड़ने का प्रयास किया है। यह फार्मूला उत्तर प्रदेश तक ही सीमित रहेगा, क्योंकि उत्तर प्रदेश से बाहर समाजवादी पार्टी का कोई आधार नहीं है। महागठबंधन में कई अंतर्विरोध हैं और यह उस संतरे की तरह हैं, जिस पर से सत्ता का छिलका उतर जाए, तो हर फांक अलग हो जाती है। विपक्ष की सबसे बड़ी कमी यह है कि उसके पास अपनी कोई मौलिक नीति नहीं है, कोई नेरेटिव नहीं है, जो मतदाताओं को आकर्षित कर सके। तीन राज्यों में भाजपा की हार के बाद से कांग्रेस सहित सारा विपक्ष अति आत्मविश्वास में लगभग बौराया हुआ है। सबको लगता है कि भाजपा विरोधी वोटों का विभाजन न हो, तो वे जीतेंगे ही। इसके बावजूद उनके गहरे अंतर्विरोध के कारण उनमें समन्वय की कमी स्पष्ट नजर आती है। राहुल गांधी सिर्फ राफेल पर अटके हुए हैं और बहुत सी अन्य घटनाओं को, जिन्हें मुद्दा बनाया जा सकता था, सही ढंग से उठा नहीं पा रहे हैं। शेष विपक्ष का भी यही हाल है। ऐसा लगता है मानो विपक्ष ने मोदी के सामने हथियार डाल दिए हों। केंद्र में सत्ता में आने के बाद भाजपा ने हर प्रदेश में जमीन खरीदकर अपने कार्यालय बनाए हैं और उनमें उच्च तकनीक की वीडियो कान्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है। भाजपा के पदाधिकारी हर प्रदेश की इकाइयों के संपर्क में हैं और भाजपा ने मतदाताओं से संपर्क के कई कार्यक्रम चला रखे हैं। मोदी की खासियत यह हैं कि वह खुद या सरकार पर लगे आरोपों का जवाब नहीं देते, बदले में सवाल पूछते हैं,  विपक्ष के भ्रष्टाचार की बातें करते हैं और देश की हर समस्या के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराते हैं। सोशल मीडिया पर तो लंबे समय तक यह मजाक चलता रहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, देश के सोलहवें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काम नहीं करने दे रहे, वरना वह देश को पैरिस बना ही देते। राफेल मामले में अब भी रोज नए तथ्य सामने आ रहे हैं।

व्यापम का घोटाला तो जग जाहिर था ही, मोदी के सत्ता में आने के बाद जय शाह की कंपनी की कल्पनातीत बढ़ोतरी पर कोई जांच नहीं हुई। एक केंद्रीय मंत्री के बेटे की कंपनी का बनाया पुल उत्तर प्रदेश में ढह गया, साठ से अधिक लोग मारे गए, लेकिन कोई अंगुली नहीं उठी, कोई जांच नहीं हुई। जीवन बीमा निगम के फंड का दुरुपयोग, रिजर्व बैंक के फंड का दुरुपयोग और अब शेष सरकारी बैंकों तथा नेशनल इन्वेस्टमेंट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के संसाधनों का दुरुपयोग एक बहुत बड़ा घोटाला है। इसी तरह निजी विदेशी कंपनियों को आधार कार्ड से नागरिकों के विवरण बेचने की छूट एक बड़ा अपराध है। अर्थव्यवस्था सचमुच बुरे हाल में है, बेरोजगारी हद से ज्यादा है, सरकार आंकड़ों में गोलमाल कर रही है और मोदी पूरे विश्वास के साथ झूठ बोलते हैं। खुद पर, अन्य मंत्रियों, भाजपा नेताओं पर लगे आरोपों का मोदी कोई जवाब नहीं देते। पांच साल में एक बार भी वह पत्रकारों से रू-ब-रू नहीं हुए, अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ता के एक सवाल ने उन्हें इतना असहज कर दिया कि ऐसी गोष्ठियों के लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं से 48 घंटे पहले सवाल भिजवाने का नियम बनवा लिया। मोदी सवालों से बचते हैं और ‘चाय वाला’ तथा ‘चौकीदार’ जैसे विशेषणों की चाट-पकौड़ी से जनता को भरमाए हुए हैं। हर वर्ग के मतदाताओं का एक बड़ा भाग उनका अंधसमर्थन कर रहा है, तो मैं यह मानता हूं कि हम इसी काबिल हैं कि नेता लोग झूठ बोलें, हमें लूटें, रोटी की जगह स्वादिष्ट चाट-पकौड़ी परोस कर हमें भरमाए रखें और हम उन्हें ईश्वर का वरदान मान लें, अपना और देश का सौभाग्य मान लें। आज हमें गंभीरता से सोचना है कि प्रजातंत्र में नागरिकों के अधिकार क्या हों, अधिकारियों और नेताओं की जवाबदेही कैसे तय हो, ताकि प्रजातंत्र सिर्फ चाट-पकौड़ी के नारों तक ही सीमित न रहे, बल्कि एक समर्थ और मजबूत प्रजातंत्र बन सके।

ई-मेलः indiatotal.features@gmail


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