घोषणा पत्रों का चाट-मसाला
पीके खुराना
राजनीतिक रणनीतिकार
असल जीवन में डॉन जैसे अपराधी या तो पुलिस के हाथों मारे जाते हैं या फिर उनके प्रतिद्वंद्वी उनकी हत्या कर देते हैं और बहुत बार तो खुद उनके साथियों में से ही कोई उनकी जीवन लीला समाप्त कर देता है। अपराध फिल्मों में दर्शकों के लिए चाट-मसाला खूब होता है। भरपूर एक्शन, रोमांस, नायक द्वारा अपनाई गई जीत की अनूठी रणनीति और भव्य सेट दर्शकों को वह सब कुछ देते हैं, जिसे पाने के लिए वे फिल्म देखने जाते हैं। इन फिल्मों में कोई संदेश नहीं होता और मनोरंजनप्रिय जनता को संदेश की आवश्यकता भी नहीं है। इसी संदर्भ में हम राजनीतिक दलों के घोषणापत्र को देखें, तो लगता है कि सब तरफ चाट-मसाला है, मनमोहक नारे हैं, जनता को लुभाने के लिए खूब सारे लॉलीपॉप हैं, लेकिन उनमें कहीं कोई सत्व नहीं है। जैसे अपराध फिल्मों में संदेश नहीं होता, वैसे ही चुनावी घोषणा-पत्रों में सत्व नहीं होता, मसाला होता है…
एक जमाने में बॉलीवुड में सुपरहिट रही पटकथा लेखकों सलीम-जावेद की जोड़ी ने जिन यादगार फिल्मों की पटकथा लिखी, उनमें एक फिल्म ‘डॉन’ भी थी। अमिताभ बच्चन अपनी जवानी में जब करियर के शिखर पर थे, तो ‘डॉन’ उनकी सुपरहिट फिल्मों में से एक थी। बाद में जब यह जोड़ी टूटी, तो इस जोड़ी के एक हिस्सेदार जावेद अख्तर के सुपुत्र फरहान अख्तर ने इस फिल्म का दूसरा संस्करण, यानी ‘डॉन-2’ बनाई, जिसमें किंग खान के नाम से मशहूर शाहरुख खान नायक थे। यह फिल्म भी उसी तरह सुपर-डुपर हिट रही। खबर है कि अब फरहान अख्तर ‘डॉन-3’ की तैयारी कर रहे हैं। असल जीवन में डॉन जैसे अपराधी या तो पुलिस के हाथों मारे जाते हैं या फिर उनके प्रतिद्वंद्वी उनकी हत्या कर देते हैं और बहुत बार तो खुद उनके साथियों में से ही कोई उनकी जीवन लीला समाप्त कर देता है। अपराधी अमर नहीं होते, अपराधी प्रेरणा का स्रोत नहीं होते, अपराधी जननायक नहीं होते, फिर भी अपराध जगत से जुड़ी फिल्में न केवल खूब बनती हैं, बल्कि चलती भी हैं। इसका कारण है कि अपराध फिल्मों में दर्शकों के लिए चाट-मसाला खूब होता है।
भरपूर एक्शन, रोमांस, नायक द्वारा अपनाई गई जीत की अनूठी रणनीति और भव्य सेट दर्शकों को वह सब कुछ देते हैं, जिसे पाने के लिए वे फिल्म देखने जाते हैं। इन फिल्मों में कोई संदेश नहीं होता और मनोरंजनप्रिय जनता को संदेश की आवश्यकता भी नहीं है। इसी संदर्भ में हम राजनीतिक दलों के घोषणापत्र को देखें, तो लगता है कि सब तरफ चाट-मसाला है, मनमोहक नारे हैं, जनता को लुभाने के लिए खूब सारे लॉलीपॉप हैं, लेकिन उनमें कहीं कोई सत्व नहीं है। जैसे अपराध फिल्मों में संदेश नहीं होता, वैसे ही चुनावी घोषणा-पत्रों में सत्व नहीं होता, मसाला होता है। सन् 2014 के लोकसभा चुनावों के समय भाजपा और कांग्रेस ने क्रमशः राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चुनाव लड़ा था। ये दोनों राष्ट्रीय दल अब भी इन्हीं दो महानुभावों के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं, तो क्या यह देखना समीचीन नहीं होगा कि इन दलों ने इस बार चुनाव घोषणा-पत्र में इन पांच सांलों में अपनी किस उपलब्धि को इस घोषणा-पत्र में जिक्र के लायक समझा है? यानी, उनके अपने चुनाव घोषणा-पत्र के पैमाने पर इन पांच सालों में उनकी उपलब्धियां क्या रही हैं?
कांग्रेस के पास तो फिर बहाना है कि वह सत्ता में नहीं है, उसके पास न संख्या बल है न अधिकार, लेकिन भाजपा के पास तो कोई बहाना नहीं है। फिर भी कांग्रेस को पूर्णतः दोषमुक्त करना संभव नहीं है। भाजपा की बात करने से पहले यही समझते हैं कि कांग्रेस ने इस दौरान क्या गलती की है? कांग्रेस एक राष्ट्रीय दल है। इसके लोग लंबे समय तक सत्ता में रहे हैं। उन्हें विभिन्न मंत्रालयों, उनके कामकाज के तरीकों, उनकी खूबियों-खामियों की पूरी जानकारी है। इसके बावजूद क्या ऐसा हुआ कि कांग्रेस के नेतागण सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के कामकाज की समीक्षा करते, उनकी नीतियों की समीक्षा करते और अपनी वैकल्पिक नीति जनता के सामने रखते। विपक्ष का काम सरकार की कमियों को उजागर करना है, तो क्या कांग्रेस इसमें कामयाब रही? सुरक्षा से जुड़े मुद्दों, चाहे वह रक्षा मंत्रालय की खरीद रही हो या आतंकवादियों के आक्रमण, उस पर कांग्रेस ने खूब शोर मचाया। किसानों की आत्महत्याओं की भी चर्चा गर्मागर्म रही। महंगाई और बेरोजगारी का विरोध भी खूब हुआ। नोटबंदी और जीएसटी पर सवाल उठाए गए। थोड़ी देर के लिए मोदीकेयर का भी विरोध हुआ, लेकिन किसी अन्य मंत्रालय के बारे में कांग्रेस ने कोई सार्थक टिप्पणी नहीं की। शोर-शराबे और विरोध के बीच कांग्रेस ने यह नहीं बताया कि वह महंगाई पर कैसे काबू पाएगी, आतंकवाद को रोकने के लिए उसके पास क्या नुस्खा है, रोजगार का सृजन कैसे होगा आदि-आदि। कांग्रेस का जो घोषणा-पत्र आया है उसमें सत्ता में आने के बाद मार्च 2020 तक यानी अगले दस महीनों में 22 लाख सरकारी पदों पर नियुक्तियां करने के अलावा 10 लाख युवाओं को पंचायतों में नौकरी देने के वादा किया गया है। कांग्रेस कोई विश्व रिकार्ड बनाने की जुगत में है क्या?
गरीबी की समस्या के हल के लिए कांग्रेस ने वंचितों को 72,000 रुपए सालाना देने का वादा किया है। यह योजना कब शुरू होगी, कब तक चलेगी, कैसे चलेगी, इसका कोई ठोस विवरण नजर नहीं आता। किसानों की सहायता के लिए लागू बीमा योजना अथवा कर्जमाफी योजना में उन्हें 18 रुपए, 29 रुपए और ऐसी ही हास्यास्पद राशियों के चेक देने के बहुत से किस्से मौजूद हैं। आगे क्या होगा कहना मुश्किल है। चुनाव घोषणा-पत्र के मामले में भाजपा का हाल तो और भी बुरा है। सन् 2014 के चुनाव घोषणा-पत्र से 2019 के चुनाव घोषणा-पत्र की तुलना करें, तो इसमें से सभी मुख्य वादे और मुद्दे गायब हैं, जिन्हें भुनाकर भाजपा सत्ता में आई थी। मंदिर वहीं बनाएंगे की जिद करने वाला दल अब राम मंदिर बनाने के लिए सभी संवैधानिक विकल्पों की खोज की बात कर रहा है। गोरक्षा के नाम पर लिंचिंग तक पर उतर आने वाले दल के इस घोषणा-पत्र में गाय का जिक्र तक नहीं है। दो करोड़ नौकरियां देने के वादे को लेकर बैकफुट पर आ चुकी भाजपा ने इस बार यह तो कहा कि रोजगार सृजन के लिए 100 लाख-करोड़ का निवेश किया जाएगा, लेकिन नौकरियों को लेकर किसी संख्या का ऐलान नहीं किया है। भाजपा का यह घोषणा-पत्र कांग्रेस के घोषणा-पत्र के जवाब में बनाया गया लगता है, जिसमें कांग्रेस से आगे बढ़कर बड़े लॉलीपॉप देने का सपना है।
सर्जिकल स्ट्राइक से खुश मोदी ने इस घोषणा-पत्र को, नोटबंदी और जीएसटी की कोई बात नहीं की, गरीबी, भुखमरी, पलायन आदि से परे हट कर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व पर केंद्रित किया है। अपने कट्टर हिंदू समर्थकों को खुश करने के लिए तीन तलाक के मुद्दे को शामिल किया है। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित धारा 35-ए खत्म करने की कोशिश का भी वादा किया है, लेकिन भाजपा अपना एक झूठ चालाकी से छिपा गई है। वह पहले तीन साल यहां सरकार में शामिल थी, फिर राज्यपाल शासन था और अब सीधे केंद्र सरकार का शासन है, भाजपा ने इस दौरान इसे खत्म करने की कोशिश क्यों नहीं की? लब्बोलुआब यह है कि दल कोई भी हो, उसे वोट लेने से मतलब है। विकास गया भाड़ में।
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