कला और आस्था का घोतक है केरल का थेय्यम नृत्यानुष्ठान

By: Jul 27th, 2019 12:07 am

केरल सांस्कृतिक विविधता एवं प्राकृतिक सुंदरता के मामले में अत्यधिक समृद्ध राज्य है। यहां के लोग विरासत में मिली परंपरागत लोक तथा शास्त्रीय शैलियों को भविष्य के लिए संजोकर रखने में विश्वास रखते हैं। इससे यह बात प्रमाणित हो जाती है कि यहां के निवासी कितने कला प्रेमी व प्रायोगिक विचारधारा के हैं। कासरगोड जिला के नीलेश्वर नामक स्थान पर एक मंदिर में धार्मिक समारोह थैय्यम मनाया जाता है। प्रांगण के चारों तरफ श्रद्धालुओं तथा कला प्रेमियों की भीड़ होती है। विशेष प्रकार की कलात्मक पोशाक में सुसज्जित थैय्यम कलाकार मंदिर के चारों तरफ दौड़ लगाते हुए उपस्थित जनसमूह को आशीर्वाद देने लगा तथा दैवीय शैली में लोगों को चारों दिशाओं में जाकर प्रवचन देने लगा तथा वाद्यों की थाप पर मनमोहक भाव भंगिमाओं का प्रदर्शन करने लगा। वास्तव में थैय्यम, तैय्यम या थियम केरल प्रदेश के उत्तर मालाबार क्षेत्र का एक  प्रमुख पूजा नृत्यानुष्ठान है। यह नृत्य अनुष्ठान मुख्य रूप से केरल के कासरगोड, कन्नूर, वायनाड, कोषक्किोड और कर्नाटक के सीमावर्ती इलाके कोडगु में एक पंथ या समुदाय के द्वारा हजारों वर्ष पुरानी विधाओं और विधियों के माध्यम से निष्पादित किया जा रहा है। यहां के निवासी थैय्यम कलाकार को भगवान का प्रतिरूप मानते हैं तथा उनसे संपन्नता तथा आरोग्यता का आशीर्वाद लेते हैं। एक अन्य दंतकथा के अनुसार थैय्यम के उदभावक के रूप में मनक्काडन गुरुक्कल को माना जाता है। गुरुक्कल वन्नान जाति से संबंधित एक उच्च श्रेणी के कलाकार थे। चिरक्कल प्रदेश के राजा ने एक बार उन्हें उनकी दिव्य शक्तियों की परीक्षा लेने के लिए अपनी राज्यसभा में बुलवाया। राज्यसभा की तरफ  यात्रा के दौरान राजा ने उनके लिए कई रुकावटें पैदा की, लेकिन गुरुक्कल प्रत्येक रुकावट को दूर कर उनकी सभा में उपस्थित हो गए। उनकी दिव्य शक्तियों से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें कुछ देवताओं की पोशाक बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी, जिसका प्रयोग सुबह नृत्यानुष्ठान में किया जाना था। गुरुक्कल ने सूर्योदय से पहले ही 35 अलग-अलग तरह की मनमोहक पोशाकें तैयार कर लीं। उनसे प्रभावित होकर राजा ने उन्हें ‘मनक्काडनÓ की उपाधि से सम्मानित किया। वर्तमान में उनके द्वारा प्रचलित शैली से तैयार की गई पोशाकें ही थैय्यम कलाकारों द्वारा पहनी जाती हैं। थैय्यम नृत्यानुष्ठान की प्रथम विधि को तोट्टम कहा जाता है। यह नृत्य साधारण सी पोशाक तथा अल्प शृंगार के साथ मंदिर के गर्भगृह के सामने किया जाता है। इसमें कलाकार देवी या देवता के चामत्कारिक कार्यों का गान करते हुए थैय्यम के इतिहास पर आधारित जोशीला नृत्य करता है। यह गायन तथा नृत्य अत्यधिक ऊर्जावान तथा उत्साह से भरपूर होता है। तोट्टम प्रदर्शन के पश्चात थैय्यम के मुख्य प्रकार के प्रदर्शन के हेतु कलाकार विदाई ले कर चला जाता है तथा मुख्य क्रिया की तैयारी में जुट जाता है। इस  नृत्यानुष्ठान की तैयारी मुख के शृंगार से शुरू की जाती है। पूरे चेहरे पर विभिन्न प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करते हुए वीर रस से प्रेरित आकृतियां बनाई जाती हैं। मुख की रंगाई करते समय विभिन्न रेखाएं खींची जाती हैं। मुख अलंकार तथा पोशाक कलाकार द्वारा प्रस्तुत की जा रही कहानी एवं उसके इतिहास पर निर्भर करती है। पहनी गई पोशाक से यह मालूम हो जाता है कि थैय्यम की किस शैली तथा भावों का प्रदर्शन किया जा रहा है। टी चामुंडी नामक थैय्यम अत्यंत कठिन एवं जोखिम भरा माना जाता है। इस का प्रस्तुतिकरण करना प्रत्येक कलाकार के लिए अत्यधिक चुनौतीपूर्ण एवं साहसिक कार्य होता है। इस प्रदर्शन के दौरान कलाकार को जलते हुए अंगारों के बीच जाकर नंगे पांव नृत्य करना होता है। इसके दौरान उसकी पोशाक जिसे नारियल के पत्तों के पतले-पतले रेशे निकालकर बनाया जाता है। इश रेशों को कलाकार की कमर में चारों तरफ अत्यंत मनमोहक अंदाज में बांध दिया जाता है। इस नृत्यानुष्ठान के दौरान इस पोशाक को भी आग लगा दी जाती है। कलाकार इस नृत्य के दौरान अपने हाथों में भी दो जलती हुई मशालें पकड़कर नृत्य करता है। थैय्यम के प्रत्येक प्रकार में कलाकार स्वयं ही अपनी पोशाक तैयार करता है।

– डा. राकेश के चौहान


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