शांत कर्मों के लिए सौम्य मंत्रों का प्रयोग

By: Aug 24th, 2019 12:25 am

मंत्र दो प्रकार के होते हैं- पहला, आग्नेय मंत्र एवं दूसरा, सौम्य मंत्र। जिन मंत्रों में पृथ्वी, अग्नि और आकाश तत्त्व के वर्ण अधिक होते हैं, वे आग्नेय मंत्र होते हैं तथा जो मंत्र जल एवं वायु तत्त्व से युक्त होते हैं, वे सौम्य मंत्र कहलाते हैं। आग्नेय मंत्रों के साथ ‘नमः’ लगाने से वे सौम्य बन जाते हैं तथा सौम्य मंत्रों के साथ ‘फट्’ लगाने से वे आग्नेय बन जाते हैं। पुरुष देवता या उग्र देवता के लिए आग्नेय मंत्रों तथा स्त्री देवता के लिए सौम्य मंत्रों का व्यवहार किया जाता है। मारण, उच्चाटन, विद्वेषण और शत्रु-दमन आदि कर्मों के लिए आग्नेय मंत्रों तथा शांत कर्मों के लिए सौम्य मंत्रों का प्रयोग किया जाता है…

-गतांक से आगे…

आठों बीज मंत्र (जिनके संबंध में आगे बताया गया है), दस महाविद्याओं व आठ सिद्ध देवियों (रक्तकाली, महिषमर्दिनी, त्रिपुरा, दुर्गा, बाला, प्रत्यंगिरा, स्वप्नावती और मधुमती) के मंत्र, शिव जी का पंचाक्षरी मंत्र (ओउम नमः शिवाय) एवं श्रीराम का मंत्र (ओउम रां रामाय नमः) स्वयं सिद्ध तथा शुभ फलदायक हैं। मंत्र दो प्रकार के होते हैं- पहला, आग्नेय मंत्र एवं दूसरा, सौम्य मंत्र। जिन मंत्रों में पृथ्वी, अग्नि और आकाश तत्त्व के वर्ण अधिक होते हैं, वे आग्नेय मंत्र होते हैं तथा जो मंत्र जल एवं वायु तत्त्व से युक्त होते हैं, वे सौम्य मंत्र कहलाते हैं। आग्नेय मंत्रों के साथ ‘नमः’ लगाने से वे सौम्य बन जाते हैं तथा सौम्य मंत्रों के साथ ‘फट्’ लगाने से वे आग्नेय बन जाते हैं। पुरुष देवता या उग्र देवता के लिए आग्नेय मंत्रों तथा स्त्री देवता के लिए सौम्य मंत्रों का व्यवहार किया जाता है। मारण, उच्चाटन, विद्वेषण और शत्रु-दमन आदि कर्मों के लिए आग्नेय मंत्रों तथा शांत कर्मों के लिए सौम्य मंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

द्विविधो हि मंत्रः कूटरूपोअकूटरूपश्च।

संयुक्तः कूट इति व्यवहृियते उत्तरोअकूट इति।।

तंत्रों में कूट और अकूट दो प्रकार के मंत्र माने गए हैं। जिस मंत्र में अनेक वर्ण परस्पर संयुक्त हों, वह कूट मंत्र और जिसमें कूट के रूप में वर्ण का संयोग न होकर सामान्य वर्ण योजना हो, वह अकूट मंत्र कहलाता है, यथा- ओउम एं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै। महाकवि दंडी ने एक स्थान पर कहा है :

उदमंधं तमः कृत्स्नं जायेत भुवन-त्रयम।

यदि शब्दाहव्यं ज्योतिरासंसारान्न दीप्यते।।

यदि शब्द रूपी दीपक का प्रकाश न हो तो यह संसार अंधकारमय हो जाए। शब्द ब्रह्म की महिमा अपार है। विज्ञान ने भी अनेक परीक्षणों द्वारा शब्द तत्त्व की महत्ता को स्वीकार किया है। जब कुछ विशेष शब्दों की वर्ण योजना किसी वैज्ञानिक पद्धति से की जाती है तो उन्हें मंत्र कहते हैं। प्रत्येक वर्ण की शक्ति तथा प्रभाव अलग-अलग होता है। यहां प्रत्येक वर्ण के विषय में बताया गया है ः

अ – मृत्युनाशक (वासुदेव स्वरूप, ह्रस्व स्वर)

आ – आकर्षण करने वाला (स्त्रीलिंग, दीर्घ स्वर)

इ – पुष्टिकारक (नपुंसक लिंग, ह्रस्व स्वर)

ई – आकर्षण करने वाला

उ – बल प्रदान करने वाला

ऊ – उच्चाटन करने वाला

ऋ – लोभ तथा स्तंभन करने वाला

लृ – विद्वेषण उत्पन्न करने वाला


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