प्रदेश में अपग्रेड होंगी 14 सब्जी मंडियां

By: Sep 18th, 2019 12:12 am

फल सब्जी उगाकर हिमाचल की इकोनॉमी को चलाने वाले लाखों किसानों के लिए लंबे समय बाद उम्मीदों भरी खबर है। हिमाचल मार्केटिंग बोर्ड 35 करोड़ की लागत से जल्द दो नई सब्जी मंडियां खोलने वाला है,जबकि 14 अन्य मंडियों को अपग्रेड करने की योजना पर तेजी से काम होने वाला है। इनमें शिमला जिला के मेहंदली में 20 करोड़ रुपए की लागत से बड़ी मंडी बनने जा रही है। इसी तरह की मंडी कुल्लू के बंदरोल में बड़ी वेजिटेबल मार्केट बनेगी, जिसपर 15 करोड़ रुपए खर्च होंगे। मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन बलदेव भंडारी ने का दावा है कि इस सबके अलावा 96 करोड़ की लागत 14 अन्य मंडियां जल्द अपग्रेड की जाएंगी।  यह कार्य इस साल नवंबर माह में शुरू होने की उम्मीद है। बलदेव भंडारी ने हाल ही में करसोग मंडी का भी दौरा किया है। वह लगातार हर जिला में मंडियों का दौरा करके कमियों को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश भर में किसानों को उनकी फसल के उचित दाम दिलाने के प्रयास जारी है। नई सब्जी मंडियां बनाई जाएंगी, वही पुरानी का कायाकल्प होगा। किसानों की आय डबल करने का लक्ष्य जरूर हासिल होगा।

प्रदेश में जिलावार मंडियों के हालात

* कांगड़ा – कांगड़ा, नगरोटा बगवां, जसूर, बैजनाथ, जयसिंहपुर, ज्वालामुखी

* ऊना- ऊना- संतोषगढ़

* कुल्लू – भुंतर, खेगसू, पतलीकूहल, चौरी बिहाल, बंजार

* चंबा- बालू

* बिलासपुर- बिलासपुर और नम्होल

* हमीरपुर- हमीरपुर-जाहू,नादौन

* मंडी- मंडी, धनोटू, टकोली, जोगिंद्रनगर

* शिमला- ढली, ठियोग, नेरवा, कोटी, रोहड़ू, रामपुर, खड़ापत्थर

* सिरमौर- पांवटा साहिब, ददाहू, सतौन, सराहन, बागथन, नाहन, खेड़ी

* सोलन- सोलन,चक्की का मोड़, धर्मपुर, बनालग, नालागढ़, कंडाघाट, अर्की, कुनिहार, सपरून, जगजीतनगर, सराहन, रामशहर।

 शकील कुरैशी, शिमला, नरेंद्र शर्मा, करसोग

ऑस्ट्रेलिया इज़रायल में खेती की प्रेक्टिस क्र पाएंगे हिमाचली छात्र

अगर यह प्रोजेक्ट सही तरीके से सिरे चढ़ता है,तो इससे हिमाचल समेत देश भर के छात्रों और वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी

प्रो. अशोक कुमार

इजरायल, यूके, ताइवान और आस्ट्रेलिया जैसे देश खेती में औरों से कहीं आगे हैं। वहां हाइटेक मशीनों से खेती एक आसान कार्य बन गया है।  वहां की हाइटेक तकनीकों को अपनाने के लिए हिमाचल कृषि विश्वविद्यालय नया प्रोजेक्ट शुरू करने वाला है। इससे एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के छात्र इन देशों का भ्रमण करके वहां प्रैक्टिकल कर पाएंगे।  इस दिशा में भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ने  कृषि विश्वविद्यालय के लिए 22.66 करोड़ रुपए मंजूर किया है। इसके तहत छात्र और वैज्ञानिव विदेशों में तीन माह तक प्रैक्टिस कर पाएंगे। यही नहीं फसलों में कीट, खरपतवार नाश और अंग्रेजी खाद पर निर्भरता कम करने के लिए भी इस योजना का बजट खर्च किया जाएगा।   

–  जयदीप रिहान, पालमपुर

पांवटा में फल फूल रहा एप्पल प्लांट

पौधा अमूमन ठंडे इलाकों में फ ल देने के लिए तीन से चार साल लगाता है, वही पौधा यदि पांवटा जैसे गर्म इलाके में नर्सरी में लगाया जाए तो वह एक से डेढ़ साल में फल देने लायक बन सकता है…

बागबान सेब के पौधों से कम समय मेें अधिक आय कमा सकते हैं। यानी जो पौधा अमूमन ठंडे इलाकों में फ ल देने के लिए तीन से चार साल लगाता है, वही पौधा यदि पांवटा जैसे गर्म इलाके में नर्सरी में लगाया जाए तो वह एक से डेढ़ साल में फल देने लायक बन सकता है। यह नया फार्मुला प्रयोग के बाद ब्लू पिं विजन कमेटी पांवटा साहिब ने सामने लाया है।  यह एक तरह का क्रेच जैसा सिस्टम है। इसके तहत किसानों को एक या दो वर्ष के लिए गोद यानी रखरखाव के लिए दे सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कामकाजी परिवार अपने बच्चों को कुछ समय आंगनवाड़ी, क्रेच या बोर्डिंग स्कूल में भेज देते हैं। कमेटी के संयोजक अनिंद्र सिंह नौटी बताते हैं कि पूरे विश्व में उन्नत सेब उत्पादक किसान नर्सरी से ही दो या तीन या इससे भी अधिक वर्ष के बड़े पौधे लेते हैं। जिसको अंग्रेजी भाषा में फेदर्ड प्लांट कहा जाता है यानी जिसमें तना, शाखाएं और फल के बीमे (ट बड्स) पूर्ण विकसित हो चुकी होती हैं ताकि उनको बागीचों में लगाने के साथ उसी वर्ष में फल दे सके और बागबान की आमदनी शुरू हो जाए। भारत में अभी कुछ ही नर्सरी हैं जो फैदर प्लांट पैदा कर रही हैं, लेकिन उनकी मात्रा बहुत सीमित है और मांग या जरूरत उसे हजारों गुना अधिक है।

-दिनेश पुंडीर, पावंटा साहब

हिमाचल को क्या अब गुजरात से सीखनी पड़ेगी बागबानी

सुनने में जरूर अटपटा लग रहा है, लेकिन यह सच है कि हिमाचल से एक हजार बागबान गुजरात में बागबानी की ट्रेनिंग पर जा रहे हैं। यही नहीं, वे राजस्थान और गुरुकुल का भी दौरा करेंगे। अब भले ही कई लोगों को इस बात पर भरोसा न हो, लेकिन कृषि मंत्री रामलाल मारकंडेय की अगवाई में चल रहे विभाग ने यह महत्त्वपूर्ण फैसला ले लिया है। उम्मीद करनी चाहिए कि इससे प्रदेश के बागबानों का भला होगा। शिमला में सेब बागबानों को अब जीरो बजट खेती के बारे में ट्रेनिंग देने का प्रोसेस शुरू हो गया है। कृषि विभाग इस साल एक हजार बागबानों को गुजरात, राजस्थान, व गुरुकुल में ट्रेनिंग के लिए भेंजेगे। इसके लिए विभाग ने बागबानों से आवेदन भी मांग लिए हैं। जीरो बजट खेती के तहत  उन बागबानों को कृषि विभाग बाहरी राज्य में भेजेगा, जो एक साल से प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। खास बात यह है कि कृषि विभाग ने प्लान बनाया है कि प्राकृतिक खेती के तहत एक हजार बागबानों को ट्रेनिंग दी जाएगी, वहीं यह बागबान उसके बाद दूसरों को भी सेब पैदावार प्राकृतिक रूप से करने की सलाह देंगे।

सिटी रिपोर्टर, शिमला

जवाली-नूरपुर और फतेहपुर में सूख गए नलकूप

कांगड़ा जिला में जवाली, नूरपुर और फतेहपुर हलके किसान बहुल हैं। यहां पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने सिंचाई के लिए नलकूप लगाए थे। ये नलकूप खेती में कारगर साबित हो रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे इनका रखरखाब कम हो गया। आज कोई भी इनकी सुध नहीं ले रहा। जहां किसान हताश हैं, वहीं बेशकीमती सरकारी संपत्ति बर्बाद होने को है। जवाली की सिद्धाथा, चलबाड़ा, खरोटा, समलाना, भनेई, मेरा, भरमाड़, कंदोर, रैहन, हरनोटा, लारथ, वरोह, नकोदर, राजा का तालाब, नेरना, देहरी, सुजला, गोलवां, बांसा दा मोड़, झांजबा, आदि जगहों पर ये नलकूप लगे हैं। आईपीएच के पास स्टाफ  का अभाव होने का खामियाजा जनता को भुगतना शुरू हो चुका है। पंप ऑपरेटर के पद खाली पड़े होने से कुछेक नलकूपों में सिर्फ  दिन के समय ही किसानों को पानी की सुविधाएं मिल पा रहा है। खास बात यह भी कि जब पूर्व में धूमल मुख्यमंत्री थे, तो फतेहपुर के लिए नाबार्ड से 45 ट्यूबवेल के लिए करोड़ों रुपए मंजूर हुए थे। नाबार्ड और प्रदेश सरकार की ओर से साझा बजट करके इन्हें तैयार किया जाना था। प्रदेश सरकार ने नाबार्ड का पैसा खर्च करके काम शुरू करवा दिया, मगर अपने हिस्से का बजट खर्च न किया। इस कारण ये नलकूप सफेद हाथी बनकर रह चुके हैं। विधानसभा चुनावों में भाजपा ने वादा किया था कि इन नलकूपों को सुधारा जाएगा, लेकिन यह सब मीठी गोली से ज्यादा कुछ नहीं निकला।

 सुखदेव सिंह, नूरपुर

बंदरों की नसबंदी का ड्रामा न करे सरकार

हिमाचल में बेलगाम बंदरों ने सात लाख किसानों की नाक में दम कर रखा है। लाखों किसानों ने खेती छोड़ दी है। सरकार चाहे भाजपा की हो या फिर कांग्रेस की, अब तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं हो पाया है। ये आरोप हिमाचल  किसान सभा ने हिमाचल और केंद्र सरकारों पर लगाए हैं। नाहन में सभा के राज्य अध्यक्ष कुलदीप तंवर ने अपनी ने बताया  कि सरकारें गंभीर होतीं, तो आज प्रदेश की 2300 पंचायतों में किसान यूं त्राहिमाम न करते। सरकारों की बेरूखी से आज  साढ़े छह लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर हो चुकी है। क्या हिमाचल और केंद्र सरकारें बताएंगी कि कैसे हर साल 400 से 500 करोड की फसलों को जंगली जानवर ओर बंदर उजाड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब कई इलाके वर्मिन घोषित हैं, तो बंदरों की  नसबंदी का ड्रामा क्यों हो रहा है। असल में कैंपा योजना का फंड नसबदी पर बर्बाद किया जा रहा है। बंदरों के दो ही इलाज हैं, पहला वैज्ञानिक ढंग से कलिंग और दूसरा विदेशों को निर्यात।

सुभाष शर्मा, नाहन

मशरूम उगाने वाले फार्मर्ज के लिए नया पोर्टल  

फार्मर्ज की इसी रूचि को भांपते हुए खुंब अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट  ने अनूठी मुहिम छेड़ी है।  निदेशालय ने यहां  सालाना राष्ट्रीय मशरूम मेले का आयोजन किया, जिसमें  देशभर के 17 राज्यों से आए फार्मर्ज ने टिप्स लिए, साथ ही अपने अनुभव भी साझा किए…

हिमाचली किसान-बागबानों में मशरूम को लेकर दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। मार्केट में अच्छा रेट मिलने के कारण हर गांव में कोई न कोई किसान मशरूम उत्पादन से जुड़ रहा है। फार्मर्ज की इसी रूचि को भांपते हुए खुंब अनुसंधान निदेशालय चंबाघाट  ने अनूठी मुहिम छेड़ी है।  निदेशालय ने यहां  सालाना राष्ट्रीय मशरूम मेले का आयोजन किया, जिसमें  देशभर के 17 राज्यों से आए फार्मर्ज ने टिप्स लिए, साथ ही अपने अनुभव भी साझा किए। मेले में एक से बढ़कर एक प्रदर्शनी सजी थी, जिसका फार्मर्ज ने भरपूर लाभ उठाया।  इस बार मेले की खास बात यह रही हां   निदेशालय ने फार्मर्ज की सुविधा के लिए ई-लर्निंग पोर्टल भी लॉच किया गया।  इस बहुभाषी पोर्टल से देशभर के फार्मर्ज नई तकनीक से अपना नोलेज बढ़ा पाएंगे। इस मौके पर 7 उत्पादकों को उत्कृष्ट किसान अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। गौर रहे कि प्रदेश में सालाना 6312 मीट्रिक टन से ज्यादा मशरूम प्रोडक्शन होती है। यह इसका करोबार करोड़ों में हो रहा है।

 जय ठाकुर और सौरभ शर्मा ,सोलन

चैकपोस्ट पर हो रही वसूली, तो एपीएमसी को बताएं

एपीएमसी चैक पोस्ट पर किसानों व बागबानों से किसी भी तरह का शुल्क नहीं बसूला जा रहा है। मंडी समिति की चैक पोस्ट पर व्यापारियों द्वारा किए जा रहे व्यापार से संबंधित फॉर्म चैक किए जा रहे हैं, ताकि दोषी व्यापारियों को जुर्माना लगाकर भविष्य में कार्य सुधार के लिए  हिदायतें दी जा रही है। एपीएमसी शिमला किन्नौर के चैयरमैन नरेश शर्मा ने बताया कि यदि किसी किसान व बागबान से कोई अधिकारी शुल्क मांगता है तो कोई भी किसान,बागबान अध्यक्ष मंडी समिति के मोबाईल  तथा सचिव मंडी समिति के मोबाईल नंबर पर कर सकता है।

इन दस्तावेजों को दिखाना जरूरी

* किसान पास बुक की छाया प्रति।

* किसान क्रेडिट कार्ड की छाया प्रति।

* स्थानीय पटवारी द्वारा जारी प्रमाण पत्र की छाया प्रति।

* स्थानीय ग्राम पंचायत प्रधान द्वारा जारी प्रमाण पत्र की छाया प्रति

* उद्दान कार्ड की छाया प्रति।

टेकचंद वर्मा, शिमला

किसान बागबानों के सवाल

  1. इस मौसम में कौन से बीज लगाएं ?

नरेंद्र, ऊना

  1. इस मौसम में कौन से फूल लगाए जा सकते हैं?

प्रवीन कुमार, बैजनाथ

जीरो बजट ने भगाई शरीर की एलर्जी

शिमला जिला में प्राकृतिक रूप से सेब की पैदावार करने वाले किसानों को इस बार बड़ी राहत मिली है। दावों पर यकीन करें,तो सेब की प्राकृतिक खेती से एलर्जी की कोई शिकायत नहीं हुई। यही वजह है कि कई बागबानों ने जीरो बजट खेती की विधि को सफल करार दिया है। कृषि विभाग ने हाल ही में सर्वे करवाया था, इस सर्वे में खुलासा हुआ कि सेब सीजन में कैमिकल का इस्तेमाल करने से हर साल फार्मर्ज को कई बीमारियां लगती थी, लेकिन इस बार जितने भी किसानों ने प्राकृतिक रूप से अपने सीजन को चलाया है, उनके शरीर में होने वाली एलर्जी की शिकायत इस बार नहीं हुई। अब यह दावा कितना सही है, इस पर तो बागबान ही कुछ कह सकते हैं।

प्रतिमा चौहान, शिमला

सीधे खेत से

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