जुगाड़ की लोकप्रिय सरकार

By: Oct 30th, 2019 12:05 am

अशोक गौतम

साहित्यकार

तमाम अल्पमत वाले हुनरबाजों ने एक बार फिर नेक इरादे से देश की जनता को स्थायी सरकार देने की मन ही मन शपथ खाई और अपनी-अपनी कुर्सी बनाने सजाने के लिए जो भी उन्हें जरूरी लगाए, प्रलोभन की जादुई पोटली में डाल अपनी अपनी जुगाड़ की स्थायी सरकार बनाने सत्ता की यात्रा पर निकल पड़े। देश तो उन्हें जैसे कैसे भी हो, चलाना ही चलाना था भाई साहब! ये वे सब जानते थे कि उनके बिना सब चल सकता है, पर उनके बिना देश एक कदम भी नहीं चल सकता।….और ये वे देश चलाने के लिए कुछ भी कर सकते थे।  देखते ही देखते इन्होंने उन्हें अपने पक्ष में लाने के लिए मत पूछो कैसे-कैसे प्रलोभन दिए? कोई  इधर बिका तो कोई उधर उठा। जहां जिसको ज्यादा लालच मिला, वह वहां बिका। जो नहीं बिके वे डराए गए। धमकाए गए। देश हित में स्थायी सरकार देने का दृढ़ संकल्प लिए उनके इनके द्वारा दिन के बारह बजे ही पुलिस की निगरानी में उठाए गए। वे जो कल तक सत्ता की चाबी अपनी जेब में लिए शेखी बघारते घूम रहे थे, वे ही आज मौन हो औरों की सत्ता के ताले की चाबी हो गए। वे ये सब देख हैरान! अरे! सत्ता के लिए इतना जुगाड़! सत्ता से उनके देश के नेताओं को इतना प्यार? भूख और सत्ता में सब जायज है सर! …. इधर वे जुगाड़ में ही लगे रह गए और उधर उन्होंने जुगाड़ में सबसे आगे हो इधर उधर से समर्थन जुटा उठा कल प्रभु के सामने अपना बहुमत पेश कर, उन्हें साक्षी मान देश को लोकप्रिय सरकार देते जनता को तन-मन, निस्वार्थ भाव से खाने की कसम खाई तो उनको चक्कर आते-आते बचा। तब उन्हें संभालते व्यवहार विशारद ने उनसे पूछा,‘सरजी! क्या बात? मैं आपको कई दिनों से कह रहा हूं कि… किसी अच्छे से एम्स में जाकर एक बार अपने सारे टेस्ट करवा लो! एक उम्र के बाद अपने-अपने को समय-समय पर चेक करवाते रहना चाहिए। और हां! इनकी ज्यादा टेंशन मत लिया करो। उनकी ज्यादा टेंशन मत लिया करो। अभी चलो, दिल्ली चल कर मोहल्ला क्लीनिक में सारे टेस्ट करवा आते हैं, ‘यह सुन उन्होंने व्यवहार विशारद से कहा, ‘हे मेरे परम हितैषी व्यवहार विशारद! आई एम क्वाइट ओ के। मेरी टेंशन न लो। तुम्हें नहीं लगता कि ये अजरता अमरता का वरदान हम जैसों तक को भी कई बार अभिशाप नहीं बन जाता? ‘मैं कुछ समझा नहीं जहांपनाह?’ ‘देखो न! समय ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रहा है मेरे लोकप्रिय देश में स्वार्थ त्यों-त्यों कितना ऊंचा सिर कर सगर्व कुर्सियों पर विराज रहे हैं?’ ‘सर ये कलियुग है कलियुग! ऐसे में कम से कम सत्ता में सात्विकता की बात तो मत ही सोचो। यहां सब जुगाड़ पर ही चला है। हमारे देश में जुगाड़ ही महान है। हर अल्पबुद्धिजीवी से लेकर आत्मशुद्धिजीवी तक सब जुगाड़ के माहिर हैं। सर! जो इस देश के जीव के दिमाग की डिक्शनरी में जुगाड़ शब्द न होता तो सोचो तब हमारे देश का क्या होता? सरकार बन गई न? अब आपकी आधी टेंशन खत्म! चलो, सरकार के शपथ समारोह में जाने की तैयारी करते हैं। इस बहाने थोड़ा चेंज भी हो जाएगा। प्रभु! डांट टेक इट सिरीयसली! लोकतंत्र में बहुधा लोकप्रिय सरकारें ऐसे ही ले देकर बनती हैं।’  


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