असुर गुरु शुक्राचार्य
हमारे ऋषि-मुनि, भागः 9
गुरु जब ध्यान लगाकर बैठे, तो असुरों की चालाकी समझ गए। उन्होंने राख बने कच को कहा, चिंता मत कर। मैं तुझे ऐसी विद्या देता हूं कि तुम जीवित हो सको। मेरे पेट को फाड़ कर बाहर आने की तुम्हें अनुमति है। इससे मेरी मृत्यु हो जाएगी। तुम बाहर आकर मुझे जीवित कर देना। ऐसा ही हुआ। कच तथा शुक्राचार्य दोनों पुनः जीवित थे तथा असुर इसे देखकर बेहद दुःखी हुए। कोई विकल्प न था…
गतांक से आगे…
महर्षि भृगु के वंशज हैं, शुक्राचार्य। भृगु के पुत्र ‘कवि, कवि के पुत्र शुक्राचार्य। आप असुरों के गुरु हैं। योगविद्या के महाज्ञाता। भले ही इन पर असुरों की पूरी जिम्मेवारी थी, फिर भी स्वयं भगवान के प्रिय भक्त बने रहे। असुरों की रक्षा, समृद्धि, विजयश्री आदि के प्रति सचेत रहते हुए गुरु शुक्राचार्य असुरों को भी धार्मिक कार्यों की ओर सदा प्रवृत्त किया करते। असुरों के प्रसिद्ध नाम हैं प्रह्लाद, विरोचन, बलि आदि जिन्हें गुरु शुक्राचार्य ने ही ईश्वरभक्त बनाया व असुरों के अनेक याग, यज्ञ आयोजित करवाए।
विशेष गुण
देवताओं के गुरु बृहस्पति के पास भी मृतसंजीवनी विद्या नहीं थी, जो कि शुक्राचार्य के पास थी। युद्ध में मृत हुए असुर को वे पुनः जीवित भी कर लिया करते। बृहस्पति इस विद्या को पाने के लिए कई बार हाथ-पांव मारते रहे। एक बार तो उन्होंने अपने पुत्र ‘कच’ को शुक्राचार्य के पास भेजकर इस विद्या को सीखने का बहुत प्रयास भी किया। जब शुक्राचार्य को पता चला कि वह बृहस्पति का बेटा है, तो उन्होंने उसे पूरा प्रेम दिया। मृतसंजीवनी विद्या भी भली प्रकार सिखा दी। कोई द्वेष नहीं दिखया।
असुरों द्वारा वैर
जब असुर जान गए कि बृहस्पति पुत्र ‘कच’ को उनके गुरु ने मृत्यु पर विजय पाने की पूरी शिक्षा दे दी है,तब तो वह बहुत दुःखी हुए। कई बार छिप-छिपकर कच पर आक्रमण कर उसे मार देते रहे तथा शुक्राचार्य अपनी पुत्री देवयानी के कहने पर कच को संजीवनी विद्या दे जीवित कर देते थे।एक अवसर पाकर असुरों ने कच को चोरी से मारा। उसके शरीर को जला दिया। राख को ले जाकर गुरु की सुरा में मिलाकर निश्चिंत हो गए। अब कच की राख भी नहीं बची। जो थी, वह शुक्राचार्य के पेट में थी।
गुरु शुक्राचार्य का चमत्कार
गुरु जब ध्यान लगाकर बैठे, तो असुरों की चालाकी समझ गए। उन्होंने राख बने कच को कहा, चिंता मत कर। मैं तुझे ऐसी विद्या देता हूं कि तुम जीवित हो सको। मेरे पेट को फाड़ कर बाहर आने की तुम्हें अनुमति है। इससे मेरी मृत्यु हो जाएगी। तुम बाहर आकर मुझे जीवित कर देना। ऐसा ही हुआ। कच तथा शुक्राचार्य दोनों पुनः जीवित थे तथा असुर इसे देखकर बेहद दुःखी हुए। कोई विकल्प न था।
नई मर्यादा
गुरु शुक्राचार्य ने उसी दिन नई मर्यादा की घोषणा की। इसके अनुसार कोई भी मंदबुद्धि ब्राह्मण भूलकर भी मदिरा का सेवन नहीं करेगा। जो इस मर्यादा का उल्लंघन करेगा, उसका पूरा धर्म नष्ट हो जाएगा तथा उसे ब्रह्महत्या का पाप लगेगा। इससे मर्यादा स्थापित हुई।
बलि को किया था इनकार
बलि ने जब यज्ञ किया और भगवान ने ‘वामन अवतार’ धारण कर भूमि मांगी, तो शुक्राचार्य ने बलि को भूमिदान देने से मना कर दिया। वह वास्तविकता जान गए थे। पर गुरु की बात न मानने के कारण बलि को अपना सब कुछ गंवाना पड़ा।
पुत्री देवयानी बनी नक्षत्र
शुक्राचार्य असुर गुरु की एक पुत्री देवयानी का विवाह ययाति से हुआ था। माना जाता है कि यह देवयानी अभी आकाश में एक नक्षत्र के रूप में स्थित है। यही वर्षा तथा हर प्रकार के मौसम की सूचना दिया करती है।
– सुदर्शन भाटिया
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