तोता उड़, मैना उड़, महंगाई…

By: Dec 24th, 2019 12:05 am

अजय पाराशर

लेखक, धर्मशाला से हैं

पंडित जॉन अली बचपन से ही तितलियां उड़ाने में माहिर थे। जब छोटे थे, ढेर सारी तितलियां पकड़ते, थोड़ी देर उनसे खेलते, बतियाते और फिर उड़ा देते। उनकी इस अदा से भले ही उनके अम्मी-अब्बू परेशान थे, लेकिन अपने दोस्तों में वह खूब वाहवाही लूटते। जब बड़े हुए तो उन्होंने तरह-तरह के  पक्षी पकड़ना शुरू कर दिए, तोता कभी मैना, बुलबुल तो कभी बटेर, लेकिन आदत अब भी वैसी ही बनी रही। जिसे कड़ते, उसके साथ जी भर बतियाते, खेलते। फिर खुली हवा में छोड़ देते। जिंदगी कितनी बेहरम है, इसका  पता उन्हें तब चला जब बीए पास करने के बाद वह अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करने लगे। अब उनकी समझ में आने लगा था कि पहले से उड़ने वालों को पकड़ कर दोबारा तो उड़ाया जा सकता है, लेकिन जो अभी चलना ही सीख रहे हों, उन्हें उड़ाना कितना मुश्किल है। पहले तो उसे खड़ा होना सिखाना पड़ता है, उड़ाना तो इसके बाद का अमल है। उन्हें लगा कि अगर नौकरी की तो सारी उम्र खड़ा होना ही सीखते रहेंगे, न ही खुद उड़ने का मौका मिलेगा और न ही किसी को उड़ा सकेंगे। सो उन्होंने लोगों को उड़ाने वाली इंडस्ट्री में उतरने का फैसला कर डाला। अम्मी-अब्बू के लाख समझाने के बावजूद वह इस धंधे में उतर गए। पहले- पहल, उन्होंने उस संस्था के लिए काम करना शुरू किया जो गरीब और वंचित लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए कार्यरत थी। यह संस्था सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में काम करती थी। इसके बावजूद आधी आबादी अब भी अनपढ़ और बीमार थी, लेकिन पंडित जी जिस इलाके में जाते, अपने धुंआधार भाषण से लोगों को शिक्षित और सेहतमंद बना आते। उनकी तितलियां उड़ाने की कला से खुश होकर संस्था ने उन्हें अपना स्टार प्रचारक नियुक्त कर दिया। बस अब पंडित जी का इतना ही काम था कि जहां भी जाओ, धुंआधार प्रचार करो और आगे बढ़ जाओ। न बजट का झंझट, न टारगेट का। संभालने के लिए बाकी फौज तो थी ही, लेकिन तमाम भाग-दौड़ का नतीजा वही रहा, चार कदम आगे, दो कदम पीछे। वैसे, सरकार चाहती भी यही थी क्योंकि अगर समस्याएं खत्म हो जातीं तो इलेक्शन में वायदों की तितलियां कैसे उड़तीं? करीब चार दशकों के इस संघर्ष के बाद उनकी संस्था ने अपनी राजनीतिक  पार्टी गठित करने का ऐलान कर दिया।  पंडित जी की निष्ठा, कर्मठता और कर्त्तव्य रायणता को देखते हुए उनके दल ने उन्हें चुनाव से पूर्व ही अपना भावी मुख्यमंत्री घोषित करते हुए सूबे की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। पंडित जी और उनके दल को दो-तिहाई बहुमत मिलने के बाद राज्य में उनके दल की सरकार बन गई। चार साल तक उनका दल और सरकार उनके लिए तितलियां और पक्षी पकड़ते रहे और  पंडित जी सब उड़ाते रहे, लेकिन समस्याएं जस की तस बनी रहीं। लोगों में धीरे-धीरे असंतोष फैलने लगा। एक साल बाद चुनाव सिर पर थे। उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई रूठी हुई माशूका की तरह काबू में नहीं आ रही थी। सभी चीजों के दाम प्याज की तरह हाथ से निकले जा रहे थे। निराश होकर पंडितजी अपने सरकारी लॉन में बैठ कर महंगाई उड़ाने का अभ्यास कर रहे थे, ‘‘तितली उड़, तोता उड़, मैना उड़……।’’ उन्हें ऐसा करता देख छज्जे से उनकी बीवी जोर से चीखीं, ‘‘ पंडित जी, फिलवक्त तो मुझे बाबा प्रचारक दास का यह दोहा याद आ रहा है, तितली उड़ाए उड़ गई, उड़ती रही बटेर। महंगाई कभू न उड़ी, बैठी रही मुंडेर।’


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App