दुष्ट संग नहीं देहि विधाता

By: Mar 13th, 2020 12:05 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

रामचरितमानस में तुलसीदास जी स्पष्ट रूप से कह गए हैं कि ‘दुष्ट संग नहीं देहि विधाता’, लेकिन किया क्या जा सकता है। दुष्टों की भरमार है। जहां जाओ वही इसी श्रेणी के लोगों की जमात बैठी हुई है। सज्जन का जीना मुहाल है और दुर्जन गुलाब जामुन खा रहे हैं। परेशान होकर आदमी स्थितियों का पुनरावलोकन करता है और दुष्टों से बचने का प्रयास करता है। हनुमान जी सीता माता की खोज करते हुए लंका में पहुंचे तो उनके मुख से विभीषण का निवास स्थान देखकर यही निकला कि ‘यहां कहां सज्जन कर वासा।’ वही बत्तीस दांतों के मध्य जीभ वाली स्थिति। जब भी किसी को मंत्री मंडल में फेरबदल करना पड़ता है, सोचते हैं कुछ भले आदमी मिल जाएंगे, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। एक नागनाथ तो दूसरा सांपनाथ। दुष्टों से भला आदमी बच नहीं सकता। प्रभु से यही कामना करता है कि उसे दुष्ट की संगत नहीं मिले। पर यह कैसे संभव हो सकता है। कदम-कदम पर दुष्टता का नंगा तांडव हो रहा है। रक्तबीज की तरह दुष्ट उठ खड़े होते हैं। आफिस में मैं मेरे सात्विक तरीके से काम करता हूं तो वे ही लोग आते हैं-‘आदमी हो या नामर्द, सदैव विनम्रता से झुके रहते हो। तुम्हारी यह विनम्रता हमें पसंद नहीं है, या तो अपना रवैया बदलो वरना ठीक नहीं होगा। आखिर क्यों समय पर आते और जाते हो? क्यों तमाम कार्य का निष्पादन यथासमय कर देते हो। रिश्वत भी नहीं खाते। यह भी कोई जीवन है?’ मैंने कहा-‘यह मेरी जीवन शैली है और आप लोग मुझे इस पर बदस्तूर चलने दें। मैं इससे हट नहीं सकता।’ लेकिन वे कब मानने वाले थे। बड़ी मुश्किल से उन दुष्टों को चाय समोसा खिलाकर निजात पाई। यही हाल मोहल्ले का है। दीपक जी फाटे में पैर उलझाते फिरते हैं। किसी के घर से जरा सा पानी बाहर आ गया तो बात का बतंगड़ बनाकर मोहल्ला विकास समिति की बैठक आहूत कर लेंगे। समझाओ तो अडि़यल टट्टू की तरह अड़ जाएंगे। मैंने एक दिन दीपक जी से कहा-‘अमां यार एक ही मोहल्ले में रहते हो और हर किसी से संबंध खराब करने पर तुले रहते हो। थोड़ा धीर-गंभीर रहो। सबको अपना समझो। हरवक्त गुस्सैल भूमिका ठीक नहीं होती। अब बताओ मलकानी के घर का बाल्टी-दो बाल्टी पानी बाहर आ भी जाता है तो उसमें अपना जाता क्या है? मलकानी अभी मकान का पूरा काम नहीं करवा पाया है। बाद में तो पानी अपने आप बंद हो जाएगा।’ दीपक जी बात का मर्म समझने के एवज मुझसे उलझ गए-‘अरे यार तुम उसके हिमायती बनकर आए हो क्या? मलकानी कितना पाजी है, यह मैं जानता हूं। मोहल्ले में ऐसा नहीं रखें तो कल मुझे ही निगल जाएगा और यह मलकानी की वाइफ  बड़ी तेज है। मेरी वाइफ  के मुंह लग गई तो उल्टा-सीधा बोलने लगी। सच कहता हूं उसका मोहल्ले में जीना हराम कर दूंगा। तुम अपना काम करो-बीच में पंगा मत लो।’ मैं चुप हो गया और उनकी दृष्टता को विनम्रता से नमस्कार कर घर में घुस गया।


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