भारतीय मुसलमान और तबलीगी

By: Apr 11th, 2020 12:06 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

तबलीगी जमात को इस प्रकार घिरते देख कर शरद पवार ने उसको देश के मुसलमानों के साथ जोड़ना बेहतर समझा होगा। शरद पवार को इससे बचना चाहिए था, लेकिन वे बच नहीं पाए। उनकी रणनीति दोहरी है…

शरद पवार का कहना है कि कोरोना संक्रमण को किसी मजहब से नहीं जोड़ना चाहिए। उनका कथन सही है। आखिर कोरोना किसी के शरीर में घुसने से पहले, उसका मजहब तो नहीं पूछेगा, लेकिन शरद पवार को ऐसा क्यों लगा कि कोरोना को किसी मजहब से जोड़ा जा रहा है। यद्यपि उन्होंने मजहब का नाम तो नहीं लिया, लेकिन उनका अभिप्राय शायद इस्लाम से ही रहा होगा, लेकिन कोई भी सरकारी एजेंसी संक्रमित लोगों की संख्या का आंकड़ा मजहब के अनुसार तो नहीं दे रही। महाराष्ट्र में तो उनकी और सोनिया गांधी की ही सरकार है। वह भी रोगियों का आंकड़ा मजहब के अनुसार नहीं दे रही। इलेक्ट्रॉनिक चैनलों में भी कहीं नहीं कहा जा रहा कि कोरोना के लिए देश के मुसलमान जिम्मेदार हैं। वहां तबलीगी जमात की चर्चा हो रही है,  मुसलमानों की नहीं। तब शरद पवार ने यह अद्भुत कल्पना कैसे की, कि कोरोना को इस्लाम या देश के मुसलमानों के साथ जोड़ा जा रहा है।

  शरद पवार को यह भ्रम शायद इसलिए हुआ क्योंकि मीडिया बार-बार बता रहा है कि तबलीगी जमात के मौलवी, जो पिछले कई दिनों से दिल्ली के एक मरकज में हिस्सा लेकर लौटे थे और उनमें से अनेक कोरोना से संक्रमित थे, वह देश के अनेक हिस्सों में गए ही नहीं बल्कि मस्जिदों में छिप गए। सरकार के बार-बार के आग्रह के बावजूद उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया। इसलिए मस्जिदों में उनके संपर्क में आने वाले अनेक लोग संक्रमित ही नहीं हुए बल्कि वे आगे और लोगों में भी संक्रमण फैलाते रहे । इसके चलते लोगों द्वारा समर्थित लॉकडाउन असफल होने लगा। सभी मीडिया केंद्र तबलीगी जमात की इस करतूत को देश की जनता को बताने लगे ताकि लोग जागरूक हो जाएं । शायद तबलीगी जमात को इस प्रकार घिरते देख कर शरद पवार ने उसको देश के मुसलमानों के साथ जोड़ना बेहतर समझा होगा । शरद पवार को इससे बचना चाहिए था, लेकिन वे बच नहीं पाए । उनकी रणनीति दोहरी है। पहले आम मुसलमान को यह विश्वास दिलाया जाए कि जब लोग तबलीगी जमात को कोरोना के संक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए, तो वे प्रकारांतर से आम मुसलमान को ही जिम्मेदार  ठहरा रहे होते हैं। जबकि ऐसा नहीं है । जब किसी भी तरह से   पवार देश के मुसलमानों को यह विश्वास दिला देंगे कि तबलीगी जमात को गाली का मतलब आम मुसलमान को गाली है,  तब वे दूसरा मोर्चा संभालेंगे। यानी मुसलमान को डरा कर फिर स्वयं को या अपनी पार्टी को मुसलमानों का रक्षक घोषित कर वोटों की एक मुश्त खेती शुरू कर देंगे। शरद पवार तो केवल एक प्रतीक हैं, देश के अनेक राजनीतिक दल अरसे से ऐसा ही कर रहे हैं और यही कारण है कि संकट काल में भी शाहीन बागों और तबलीगी जमातों पर नियंत्रण रख पाना मुश्किल हो जाता है। तमिलनाडु सरकार तो इससे भी दो कदम आगे बढ़ गई है। वहां के 834 मामलों में से 764 मामले तबलीगी जमात के कारण संक्रमित हैं, लेकिन सरकार तबलीगी जमात का नाम लेने को सांप्रदायिकता मान रही है। इसलिए वह कह रही है कि 764 व्यक्ति सिंगल सोर्स से संक्रमित हुए हैं। तमिलनाडु सरकार ऐसा क्यों मानती है कि तबलीगी जमात का नाम लेने से मुसलमान नाराज हो जाएगा। आम मुसलमान का जमात से क्या लेना देना है। यह शत-प्रतिशत शरद पवार वाला रास्ता है। देश के लोग कोरोना संक्रमण के लिए तबलीगी जमात को उत्तरदायी मान रहे हैं, मुसलमानों को नहीं, लेकिन शरद पवार समझते हैं कि तबलीगी जमात देश के सभी मुसलमानों की प्रतिनिधि हैं। जबकि ऐसा नहीं है। ऐसा भ्रम कांग्रेस को भी हो गया था कि मुस्लिम लीग देश के सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है, जबकि ऐसा नहीं था। परंतु कांग्रेस के इस भ्रम से देश का विभाजन जरूर हो गया था । इसलिए जरूरी है कि सबसे पहले तो शरद पवार इस भ्रम से बाहर निकलें और देश के मुसलमानों को इस विवाद में न घसीटें । उनको चाहिए कि वे तबलीगी जमात का पर्दाफाश करें, ताकि देश को जितना हो सके उतना कोरोना संक्रमण से बचाया जा सके, लेकिन आखिर प्रश्न है कि तबलीगी जमात इस देश में क्या कर रही है। जब सारी दुनिया कोरोना संकट से जूझ रही थी, तो लगभग पंद्रह सौ विदेशी तबलीगी मौलवी इस देश में क्या कर रहे थे। दरअसल तबलीगी जमात भारत के मुसलमानों को उस अरबी संस्कृति और जीवन शैली में डालना चाहती है, जो मक्का मदीना में हजरत मोहम्मद के दिनों में प्रचलित थी। भारत के मुसलमानों की समस्या यह है कि उन्होंने सल्तनत काल और मुगल काल में किन्हीं भी कारणों से अपना मजहब तो बदल लिया, लेकिन बहुत हद तक उन्होंने भारतीय जीवन शैली नहीं बदली। मेवाड़ में मीणा, राजस्थान में कायमखानी राजपूत,  हिमाचल प्रदेश में गुर्जर मुसलमान तो बन गए, लेकिन उन्होंने भारतीय जीवन शैली और संस्कार नहीं बदले। भारत में जो अरब से सैयद और मध्य एशिया से तुर्क,  खान आए, उनको इस बात का कष्ट ही रहा कि भारत के जाट, राजपूत, गुर्जर, ब्राह्मण और दूसरी अनेक जातियों के लोग मुसलमान तो बन गए, लेकिन किसी सीमा तक वे अरब के नहीं बन पाए। वैसे भी वे दिन-रात रटते रहे, पिदरम सुल्तान बूद, अर्थात हमारे पूर्वज हिंदुस्तान के सुल्तान थे । यह हिंदुस्तान का और हिंदुस्तान में मतांतरित होकर बने मुसलमानों का दुर्भाग्य था कि आज तक इन हिंदुस्तानी मुसलमानों का नेतृत्व इन्हीं सैयदों और खानों के मौलवियों के हाथ में रहा। कश्मीर विश्वविद्यालय श्रीनगर के एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री डा. बशीर अहमद डाबला ने भारत में मुसलमानों को लेकर एक दिलचस्प अध्ययन किया था । केस स्टडी के लिए उन्होंने  देश के एक राज्य जम्मू-कश्मीर को चुना था। उनके अनुसार देश में दो किस्म के मुसलमान हैं। सैयद और खान पहली किस्म  के हैं, लेकिन वे विदेशी मूल के हैं। दूसरे वे जो भारतीय मूल के हैं। उनके सर्वेक्षण के अनुसार जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों की कुल 1906 जातियां हैं। इनमें से 143 जातियां विदेशी मूल की हैं, जो अपने आपको भारतीय मुसलमानों से उच्च और श्रेष्ठ मानती हैं । यानी विदेशी मूल की ये जातियां राज्य  में कुल मिला कर साढ़े सात प्रतिशत हैं। यह आंकड़ा कमोबेश भारत के दूसरे राज्यों के लिए भी फिलहाल लिया जा सकता है। डाबला तो समाजशास्त्री थे,  इसलिए इससे आगे नहीं बढ़े। लेकिन दुर्भाग्य से इन्हीं सात-प्रतिशत विदेशी मूल के मौलवियों का भारत के शेष मुसलमानों पर गलबा है और ये बड़ी होशियारी से उन्हें सदियों पुराने अरबी अंधविश्वासों में उलझाए रखते हैं। ये किसी भी तरह भारतीय मुसलमानों को अरबी मुसलमान बनाना चाहते हैं। तबलीगी जमात 1926 से हिंदुस्तान में यही कर रही है। हजरत मोहम्मद के समय अरब में मूंछ किस प्रकार की होती थी। पाजामा टखनों के ऊपर तक होता था। टोपी कैसी और कैसे पहननी है, आधुनिक विज्ञान से कैसे दूर रहना है, डाक्टर के पास बिलकुल नहीं जाना क्योंकि कोई भी महामारी या बीमारी खुदा ही भेजता है, उसने जिस को मारना है, वह भला कैसे बच सकता है। मस्जिद में मर जाना, सबसे अच्छी मौत है, फरिश्ते खुद लेने के लिए आते हैं। संकट काल में ही निर्णय होता है कि मुसलमान का अल्लाह में यकीन है या नहीं । वर्तमान महामारी कहती है एक-दूसरे से दूर रहो, मिल कर नमाज मत पढ़ो। क्या सच्चा मुसलमान महामारी से डर कर मस्जिद में नमाज पढ़ना बंद नहीं कर देगा?

ईमेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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