श्रद्धा और सम्मान

By: Jun 17th, 2020 11:08 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

गाड़ी से उतरकर स्वामी जी ने सभी लोगों का हाथ जोड़कर अभिनंदन किया। स्वागत समिति के प्रमुख नरेंद्र नाथ सेन तथा उनके सहयोगी किसी तरह भीड़ में से रास्ता बनाकर स्वामी जी तक पहुंचे और श्रद्धास्वरूप उनके गले में पुष्पमालाएं पहनाई गईं। स्टेशन से बाहर निकलकर सेवियार दंपति समेत स्वामी जी, चार घोड़ों वाली बग्घी पर सवार हुए। हजारों आंखें श्रद्धा और सम्मान के साथ उनको देख रही थीं। कलकत्ता शहर दुल्हन की भांति सजा हुआ था। यहां भी युवकों ने घोड़ों को गाड़ी से खोल दिया और खुद खींचने लगे। यहां से वहां तक का पूरा मार्ग सजा हुआ था। वह शोभायात्रा रिपन कालेज में पहुंची। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों से कुछ देर बातचीत करने के बाद स्वामी जी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अपने गुरुभाइयों  के साथ पशुपति नाथ महादेव के भवन में गए। वहां से तीसरे पहर काशीपुर के श्री गोपाल लाल शील के बागीचे वाले मकान में आ गए। स्वागत समिति के अधिकारियों ने उनके साथ आए विदेशी शिष्यों को रहने के लिए मकान की व्यवस्था की। पूरे दिन यहां भी लोगों की और भीड़ इकट्ठा रहती थी। कोई दर्शन करने आ रहा था, तो कोई शास्त्रचर्चा के लिए। रात के समय आलय बाजार में आश्रम में जाकर वे गुरुभाइयों के साथ भविष्य के कार्यों की योजना पर विचार विमर्श करते थे। अनेक नगरों से आने वाले निमंत्रणों की भरमार थी, लेकिन स्वामी जी का विचार सर्वप्रथम कलकत्ता में केंद्रित संगठन बनाने और प्रचार प्रसार की दिशा निश्चित करने का था। 28 फरवरी को कलकत्ता के लोगों की तरफ से सर राजा राधाकांत देव शोभा बाजार स्थिति विशाल प्रांगण में एक अभिनंदन सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में कलकत्ता के खास लोग, विद्वान अधिकारी तथा विश्वविद्यालय के विद्यार्थी उपस्थित थे। इस सभा के अध्यक्ष विनयकृष्ण देव ने अभिनंदन पत्र पढ़कर सुनाया तथा उसे रजत पाठ में रखकर स्वामी जी को समर्पित किया। अभिनंदन के बाद स्वामी जी का व्याख्यान हुआ। रामकृष्ण परमहंस की जन्मतिथि पर उत्सव की तैयारियां दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में चल रही थीं। निश्चित तिथि पर स्वामी जी अपने शिष्यों के साथ वहां पहुंचे। भीड़-भाड़ और कोलाहल की वजह से कोशिश करने के बावजूद भी वहां भाषण  नहीं कर पाए, लेकिन इस दिन स्वामी जी काफी हद तक प्रसन्न दिखाई दे रहे थे। कुछ दिन बाद स्टार रंगमंच से उनका एक व्याख्यान हुआ, जिसका मुख्य विषय था, वेदांत। इसके पश्चात स्वामी जी भाषणों से कुछ उदास से हो गए थे। वे जानते थे कि भाषणों से उत्पन्न उत्तेजना स्थायी नहीं होती। अब फिर वे व्यक्ति निर्माण के महत्त्वपूर्ण कार्य में प्रवृत्त हुए। जीव में ही ब्रह्म को देखने के स्वामी जी के उपदेश को लेकर उनके कई गुरुभाई सहमत नहीं थे। वे परंपराचित संन्यास को अपना साधन मानते थे। स्वामी जी का कहना था कि अगर हम लोगों ने युगधर्म की निंदा की तो श्रीरामकृष्ण परमहंस का प्रयोजन पूरा नहीं होगा। कर्मयोग द्वारा कोटि-कोटि मानवों को ज्ञान का प्रकाश देना होगा। तभी उनमें ज्ञान उजागर किया जा सकता है।


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