मोक्ष धाम गया

By: Sep 5th, 2020 12:25 am

ज्ञान और मोक्ष की प्रदाता भूमि गया में पितरों को पिंडदान देने की पुरातन परंपरा के अनुसार पितृपक्ष का विशेष महत्त्व है। वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है। मान्यता के मुताबिक पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि तथा महालय में उनका विधिवत श्राद्ध करे। मान्यता के अनुसार पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। ऐसे तो देश के हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थानों में भगवान पितरों के श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं, लेकिन गया में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान तो भगवान राम ने भी किया है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। आचार्यों के मुताबिक जनमानस में यह आम धारणा है कि परिवार से कोई एक ही गया जाता है। वहां जाकर पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से सात पीढि़यों का उद्धार होता है। गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है।

विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं और किंवदंतियों के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे।

इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर से यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस की जगह आगे चलकर गया बनी, परंतु गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने (मुक्ति) वाला बना रहे। जो भी लोग यहां पर किसी का तर्पण करने की इच्छा से पिंडदान करें, उन्हें मुक्ति मिले। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं। कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था, इनमें से अब 48 ही बची हैं। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं।


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