हिमाचल – विधानसभा चुनाव : लोकतंत्र की मजबूती के लिए मतदान जरूरी

एक दिन अपने सभी निजी काम-धंधे छोडक़र शत-प्रतिशत मतदान को प्राप्त करने में प्रशासन का सहयोग करें…

भारतवर्ष दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है।स्वतंत्रता के पश्चात देश के प्रबुद्ध विचारकों, बुद्धिजीवियों, राजनेताओं एवं शिक्षाविदों ने इसकी राजनीतिक प्रणाली तथा व्यवस्था संचालन पर विचार किया तथा अपने संविधान का निर्माण किया। संविधान निर्माताओं ने अनेक देशों की राजनीतिक प्रणालियों का अध्ययन कर लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुना। लोकतंत्र में लोगों का, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए शासन होना विशेषता है। संविधान की लोकतांत्रिक व्यवस्था में सभी नागरिकों को मत देने का अधिकार सुरक्षित किया गया है। वास्तव में यही मत का अधिकार लोकतंत्र की ताकत है। इसी से ही लोकतंत्र मजबूत होता है। मतदान जन-जन की आत्मा की आवाज़ होता है। लोकतंत्र में वोट जनभावनाओं तथा जनाकांक्षाओं का संदेश होता है। इसी वोट की चोट से लोकतंत्र में चमक आती है। समझदार, जागरूक नागरिक अपने मत का प्रयोग कर समाज में सुख, समृद्धि, सौहार्द तथा विकास की इबारत लिखते हैं।

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव चर्मोत्कर्ष पर हैं। सभी राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय, प्रांतीय तथा स्थानीय नेता विभिन्न स्थानों पर लोगों को संबोधित कर रहे हैं। लोकलुभावन वादे किए जा रहे हैं। चारों ओर राजनीतिक दलों तथा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के झंडे, बैनर, बड़े-बड़े फ्लेक्स आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। गली, नुक्कड़, मुहल्ले तथा घर-परिवार में राजनीतिक मंथन उम्मीदवारों का विश्लेषण, सच और झूठ की परख, चर्चा, व्यंग्य, गर्मागर्मी, बहस, न जाने क्या-क्या। दिवाली जैसा उत्सव का माहौल बना हुआ है। चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों तथा उनके समर्थकों में जीतने की तीव्र इच्छा, धुकधुकी, भय, आक्रोश, असमंजस का भाव बना हुआ है। साम, दाम, दंड, भेद जैसे राजनीतिक अस्त्रों का प्रयोग हो रहा है। कोई मना रहा है, कोई मान रहा है तथा कोई आक्रोशित है। उम्मीदवार मतदाताओं को अपने लोकलुभावन वादों से आकर्षित कर रहे हैं। मतदाता खामोशी से तेल और तेल की धार देख रहे हैं। झूठ और सच के इस खेल में व्यंग्य बाण चल रहे हैं। आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है। कभी-कभी भाषा से नेताओं की जुबान भी फिसल रही है तथा कभी नेताओं का अमर्यादित आचरण भी देखने को मिल रहा है। व्यक्तिगत तथा सामाजिक सीमाओं को लांघा जाता है। एक-दूसरे का चरित्र हनन होता है। राजनीतिक निष्ठाओं को निभाया जा रहा है। ऐसे में कई बार परोक्ष रूप से छद्म वेश में अपनों को धोखा भी दे दिया जाता है। चुनाव की इस रूपांतरित बेला में राजनीतिज्ञों द्वारा सब कुछ जायज़ ठहराया जाता है। सामाजिक तथा राजनीतिक विलय की बेला में सब मान-मर्यादाएं ताक पर रख दी जाती हैं। राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता तथा सब कुछ जायज़ होता है।

यह ठीक है कि राजनीति हमारे जीवन का अटूट हिस्सा है, लेकिन चुनावी मंथन के पश्चात एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने वाले, चरित्र हनन करने वाले, मानहानि करने वाले लोग फिर से सब कुछ भूल कर गले लग जाते हैं, मानों कुछ हुआ ही नहीं हो। ऐसे में सभी को बहुत गम्भीरता से किसी भी बात को दिल पर नहीं लगाना चाहिए। इस चुनावी उत्सव का आनंद लेना चाहिए, लेकिन अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों की कीमत पर नहीं। व्यक्तिगत दुश्मनी तथा रंजिश नहीं होनी चाहिए। चुनाव की बेला में बहुत से लोगों को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अल्पकालिक रोजगार भी मिलता है। झंडे, बैनर, पोस्टर छापने, बनाने, दीवारों पर लगाने का कार्य, चुनाव लडऩे वाले राजनीतिक व्यक्तियों, दलों तथा प्रशासन द्वारा चुनावों के सभी संचालन के लिए टैक्सियां किराए पर ली जाती हैं जिससे वाहन मालिकों तथा ड्राइवरों को भी रोजगार मिलता है। तेजतर्रार, निष्ठावान तथा विश्वसनीय व्यक्तियों को चुनाव प्रबंधन का जिम्मा दिया जाता है। इस चुनावी उत्सव में प्रदेश के लोकगायकों तथा संगीतकारों तथा स्टूडियोज़ के मालिकों को भी रिकार्डिंग का कार्य मिलता है। प्रदेश के उभरते हुए लोकगायक लोकप्रिय, परम्परागत तथा क्षेत्रिय बोलियों में निबद्ध लोकगीतों पर आधारित चुनाव गीतों को अपनी आवाज़ दे रहे हैं। इससे जहां पर किसी चुनाव उम्मीदवार को वोट देने का आह्वान तथा उनके कार्यों का वर्णन होता है, वहीं पर स्थानीय भाषाओं में निबद्ध चुनावी गीतों के बहाने परम्परागत लोकगीतों की धुनें मतदाताओं के कानों में गूंज रही हैं। लोग किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी को मतदान करने का मन तो बना ही लेते हैं, साथ में वे अपने परम्परागत लोकगीतों का आनंद भी लेते हैं। यह चुनाव का उत्सव है, इसका आनंद लें। इस समय अपने व्यवहार तथा शब्दों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। शालीन तथा आदर्श व्यक्तित्व का परिचय दें। आपकी अमर्यादित भाषा तथा आचरण किसी को जीवन भर याद रह सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिज्ञों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

राजनीतिज्ञों के भी सभी से व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा सामाजिक सम्बन्ध होते हैं। चुनावी समय में हार-जीत में उनकी आक्रामकता का अनुसरण न करते हुए अपने निजी सम्बन्धों पर आंच न आने दें। यह हार-जीत कभी भी स्थायी नहीं होती। इस समाज को स्वस्थ, सुन्दर एवं सौहार्दपूर्ण बनाने में सभी को प्रयास करना चाहिए। इस समय सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अपने विवेक, बुद्धि तथा आत्मा की आवाज़ पर अपने क्षेत्र के विकास तथा राष्ट्र निर्माण की नीतियों पर अपनी मोहर लगाएं। सच्चे-पक्के, ईमानदार, शिक्षित, चरित्रवान, देशभक्त, भरोसेमंद, समाज सेवा को समर्पित तथा अहंकार रहित व्यक्तियों का चयन कर उन्हें अपने मत का दान करें। एक समझदार मतदाता को चाहिए कि चुनाव की इस बेला में रुपया-पैसा, धन तथा शराब आदि के प्रलोभन में न आएं। कानूनी रूप से प्रलोभन देने तथा स्वीकार करने वाला बराबर का दोषी होता है। यह चुनावी उत्सव पांच वर्षों के बाद आता है तथा आगामी पांच वर्षों के विकास की इबारत लिखने के काम आता है। इस अवसर का बहुत ही समझदारी से प्रयोग करना चाहिए। अपने क्षेत्र, जि़ला, प्रदेश तथा देश के विकास के लिए मात्र एक दिन अपने सभी निजी काम-धन्धे छोडक़र मतदान कर शतप्रतिशत मतदान को प्राप्त करने में प्रशासन का सहयोग करें। हिमाचल निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाताओं की सुविधा के लिए पुख्ता प्रबंध किए हैं। समय पर आवेदन करने वाले अस्सी वर्ष से अधिक आयु के तथा शारीरिक रूप से अक्षम मतदाताओं को घर पर ही मतदान की सुविधा मिलेगी। समझदार मतदाताओं को चाहिए कि वे अपनी बुद्धि तथा विवेक का प्रयोग कर अच्छे, ईमानदार, शिक्षित तथा चरित्रवान नेताओं का चुनाव कर प्रदेश तथा देश में सुख-शांति, समृद्धि और विकास की इबारत लिखें। यह लोकतंत्र की मजबूती एवं खुशहाली के लिए अतिआवश्यक है।

प्रो. सुरेश शर्मा

लेखक घुमारवीं से हैं


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