दस-दस-दस का चमत्कार

By: Feb 16th, 2023 12:06 am

डेल कार्नेगी की पुस्तक ‘हाउ टु विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल’, राबर्ट कियोसाकी की पुस्तकें ‘रिच डैड, पुअर डैड’ तथा ‘कैशफ्लो क्वाड्रैंट’ और सूज़ी वेल्च की ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ उन विश्व प्रसिद्ध पुस्तकों में से हैं जो हमारा जीवन संवार सकती हैं, बल्कि जीवन बदल सकती हैं। इन सभी पुस्तकों के हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध हैं और मैं सबको सलाह देता हूं कि वे अपनी खुद की बेहतरी के लिए इन पुस्तकों को एक बार अवश्य पढ़ें ताकि उनका जीवन खुशहाल हो, वे परिवार के साथ सामंजस्य बिठा सकें और देश के लिए उपयोगी नागरिक साबित हों…

हाल ही में मैंने प्रसिद्ध काउंसलर सूज़ी वेल्च की लोकप्रिय पुस्तक ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ एक बार फिर पढ़ी। सूज़ी वेल्च ने अपनी इस शानदार पुस्तक में बहुत साधारण ढंग से जीवन की एक बड़ी समस्या का हल सुझाया है। यह तरीका इतना अनूठा और कारगर है कि इसने कई जिंदगियां बदल दी हैं। मैनेजमेंट के विद्यार्थी के रूप में मुझे यह पढ़ाया गया है कि सही निर्णय लेने का एक ही ढंग है, और वह है कि निर्णय लिए जाएं, असफलता के डर से डर कर खाली न बैठा जाए बल्कि काम किया जाए। यह एक अच्छी सलाह है क्योंकि डर के मारे काम ही न करना किसी समस्या का हल नहीं है। एक अत्यंत सफल उद्योगपति से जब पूछा गया कि वे हर बार सही निर्णय कैसे ले लेते हैं तो उन्होंने कहा कि इसमें उनका ‘अनुभव’ सहायक होता है और जब उनसे अगला सवाल किया गया कि अनुभव कैसे प्राप्त किया जाए तो उनका उत्तर था ‘गलत निर्णय लेकर’। इससे हमें दो बातें सीखने को मिलती हैं।

पहली, हमें असफलता के भय से सोचते ही नहीं रहना चाहिए और नि_ले नहीं बैठना चाहिए, और दूसरी, यदि निर्णय गलत हो जाए तो उससे सीख लेनी चाहिए और आगे बढ़ जाना चाहिए। ‘मूव ऑन’, यानी पिछली बातें छोड़ो और आगे बढ़ो। यह एक जाना-माना तथ्य है कि अक्सर हम जो निर्णय लेते हैं वे भावावेश यानी भावनाओं के आवेश में लिए गए निर्णय होते हैं। इसीलिए विद्वजन कहते हैं कि हमें बहुत खुशी की अवस्था में, बहुत दुख की अवस्था में अथवा बहुत गुस्से की अवस्था में कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए क्योंकि तब हम तर्क से नहीं सोचते, भावनाओं से सोचते हैं और ऐसे निर्णय ले लेते हैं जिनके लिए हम बाद में जीवन भर पछताते रह जाते हैं। अक्सर हम जब निर्णय लेते हैं तो हमें मालूम नहीं होता कि निर्णय सही है या गलत, और उसका हम पर तथा हमारे आसपास की दुनिया पर क्या असर होगा। अक्सर हम अपने दिल, दिमाग, अनुभव और जोखिम लेने के साहस पर निर्भर करते हुए कोई निर्णय लेते हैं। ऐसे निर्णय सही अथवा गलत होने की संभावना बराबर-बराबर की होती है, यानी निर्णय के सही या गलत होने की कोई तार्किक या वैज्ञानिक प्रक्रिया के अभाव में हम निर्णय तो लेते हैं, पर यह नहीं जानते कि असल में वह निर्णय कितना सटीक है। हम सिर्फ आशा करते हैं कि वह निर्णय सही होगा और प्रार्थना करते हैं कि निर्णय सचमुच सही ही हो, लेकिन सूज़ी वेल्च की पुस्तक ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ इससे भी आगे बढक़र निर्णय लेने की प्रक्रिया में हमारी सहायता करती है और हमें कदरन सही निर्णय लेने की प्रक्रिया सिखाती है। सूज़ी वेल्च अपनी पुस्तक ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ में इसे बड़े सहज ढंग से समझाती हैं।

सूज़ी का कहना है कि जब भी हम कोई निर्णय लेना चाहें तो हमें यह सोचना चाहिए कि हमारे निर्णय का अगले दस मिनट में क्या असर होगा, फिर सोचना चाहिए कि उसका अगले दस महीनों में क्या असर होगा और फिर यह कि हमारे निर्णय का अगले दस सालों में क्या असर होगा। दस मिनट का महत्व इस रूप में है कि हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे किसी भी निर्णय पर हमसे जुड़े लोगों की फौरी प्रतिक्रिया क्या होगी, उसका हमारे आसपास के लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और खुद हमारे जीवन पर उसका क्या असर होगा, दस माह का मतलब है कि हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि निकट भविष्य में हमारे निर्णय का असर क्या होगा, और दस साल की महत्ता इस रूप में है कि अंतत: हमें यह भी सोचना चाहिए कि दूरस्थ भविष्य में उसका क्या प्रभाव रहेगा। यदि हम अपने हर निर्णय को इस प्रक्रिया से सही और गलत की कसौटी पर कसना शुरू कर दें तो निर्णय लेने की प्रक्रिया ज्यादा तर्कसंगत और सटीक हो जाएगी और निर्णय भी ऐसे होंगे कि उनसे सबका ज्यादा से ज्यादा भला हो सकेगा। आइए, अब इस प्रक्रिया के सहारे हम अपनी कुछ आदतों को परखें और देखें कि हम अपने निर्णय लेने की क्षमता को कैसे सुधार सकते हैं। हमें अपने जीवन में ऐसे बहुत से लोगों से पाला पड़ता है जो मामूली सी बात पर भी इतनी शिद्दत से झगड़ लेते हैं कि हर कोई अचंभा मान जाए। जिस चीज पर किसी का ध्यान भी न जाए, उस नगण्य चीज पर भी वे झगड़े को इतनी कलात्मक ऊंचाई तक ले जाते हैं कि दुनिया के बड़े से बड़े झगड़ची भी दांतों तले उंगली दबा लें। कुछ लोग आदतन शरारती होते हैं, कुछ अपना महत्व जताने के लिए शरारती बन जाते हैं और कुछ लोग परिस्थितिवश शरारत करते हैं।

कभी स्थितियां विकट होती हैं और हमें समझ नहीं आता कि क्या करें या कभी हमारे पास कई ऐसे विकल्प होते हैं जिनमें से सबसे लाभदायक विकल्प चुनना आसान नहीं होता, और इन सबसे कठिन वह स्थिति है जब हम संभावित विकल्पों के बारे में नहीं सोच पाते और परेशान हो जाते हैं। दस-दस-दस की प्रक्रिया ऐसी स्थितियों में हमारी सहायता कर सकती है और हम ज्यादा से ज्यादा विकल्पों के बारे में सोच कर उनके लाभ और हानियों का विश्लेषण करते चलते हैं और फिर अपने लिए सर्वाधिक उपयोगी विकल्प का चुनाव करने का प्रयत्न करते हैं। दस-दस-दस की प्रक्रिया कठिन स्थितियों में बहुत प्रभावी साबित हुई है और इसने विश्व भर में बहुत से लोगों का जीवन आसान बनाया है। कभी हमें काम और परिवार के बीच संतुलन के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुनना होता है, कभी कैरिअर के लिए समझौते करने होते हैं तो देखना होता है कि हम किस हद तक लचीले हों और कहां मना कर दें, कभी किसी मित्र और धर्मपत्नी अथवा प्रेयसी की मांगों का संतुलन तो कभी धन और शौक के बीच का चुनाव करना हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। इनमें से कोई भी निर्णय आसान नहीं है और यदि हम दस-दस-दस की प्रक्रिया न अपनाएं तो सारा कुछ रामभरोसे होता है जबकि दस-दस-दस की प्रक्रिया अपनाकर हम अपनी निर्णय प्रक्रिया को कदरन सुरक्षित और सटीक बना सकते हैं। यही इस प्रक्रिया का महत्व है। सूज़ी वेल्च की ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ की निर्णय प्रक्रिया यहां हमारे काम आ सकती है जिससे हम ऐसे निर्णय लें जो अब भी हमारा हित करें और दूरगामी भविष्य में भी हमारे लिए लाभदायक हों। कहा जाता है कि एक पुस्तक कई मित्रों की सलाह के बराबर होती है। लेखक अपने जीवन भर का अनुभव पुस्तक में निचोड़ देता है और कुछ ही समय में हम उस पुस्तक से वह ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं जो लेखक को भी वर्षों के संघर्ष से मिला था। पुस्तकें इस रूप में बहुत उपयोगी हैं। डेल कार्नेगी की पुस्तक ‘हाउ टु विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल’, राबर्ट कियोसाकी की पुस्तकें ‘रिच डैड, पुअर डैड’ तथा ‘कैशफ्लो क्वाड्रैंट’ और सूज़ी वेल्च की ‘दस मिनट, दस महीने, दस साल’ उन विश्व प्रसिद्ध पुस्तकों में से हैं जो हमारा जीवन संवार सकती हैं, बल्कि जीवन बदल सकती हैं। इन सभी पुस्तकों के हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध हैं और मैं सबको सलाह देता हूं कि वे अपनी खुद की बेहतरी के लिए इन पुस्तकों को एक बार अवश्य पढ़ें ताकि उनका जीवन खुशहाल हो, वे परिवार के साथ सामंजस्य बिठा सकें और देश और समाज के लिए उपयोगी नागरिक साबित हों।

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

ई-मेल: indiatotal.features@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App