अनंत राम को नहीं मिला वांछित सम्मान

देश का गौरव बढ़ाने वाली खेल प्रतिभाओं की नजरअंदाजी खेलों के साथ उभरते खिलाडिय़ों के भविष्य के लिए भी नुकसानदायक साबित होती है। अत: शासन-प्रशासन व खेल मंत्रालय को इस विषय पर संज्ञान लेना होगा। कै. अनंत राम की खेल विरासत को सहेजने के प्रयास होने चाहिए…

पेरिस के सोरबोन में 23 जून 1894 के दिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की स्थापना हुई थी। अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर खेलों में खिलाडिय़ों की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से 23 जून 1948 को अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। ओलंपिक दिवस के अवसर पर वीरभूमि की शिनाख्त वाले राज्य हिमाचल प्रदेश की खेल संस्कृति से मुखातिब होना जरूरी है। कड़े परिश्रम से अपने खेल जीवन की शुरुआत करने वाले हर खिलाड़ी का ख्वाब ओलंपिक महाकुंभ में अपने देश का प्रतिनिधित्व करना होता है। सैन्य पृष्ठभूमि के धरातल हिमाचल के सैनिकों ने मैदाने जंग में उत्कृष्ट वीरता का प्रदर्शन करके विक्टोरिया क्रॉस व परमवीर चक्र तथा अशोक चक्र जैसे आलातरीन सैन्य पदक अपने नाम करके राज्य का गौरव बढ़ाया है तो वहीं अंतरराष्ट्रीय खेल मुकाबलों व ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करके पदक देश के नाम किए हैं। कैप्टन वीरेंद्र सिंह थापा ‘अर्जुन अवार्ड’ ‘गोरखा रेजिमेंट’ ने 1980 के ‘मॉस्को’ ओलंपिक में बाक्सिंग में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। कै. विजय कुमार ‘डोगरा रेजिमेंट’ ने 2012 के लंदन ओलंपिक में शूटिंग में ‘रजत’ पदक जीत कर देश का परचम लहराया था। मगर ओलंपिक महाकुंभ में किसी हिमाचली खिलाड़ी द्वारा पदार्पण का सम्मान बिलासपुर जिला के कैप्टन अनंत राम ‘वीएसएम’ को प्राप्त है। कै. अनंत राम ‘एपीटीसी’ ने भारतीय सेना की तरफ से 1956 के ‘मेलबॉर्न’ ओलंपिक में ‘जिम्नास्टिक’ में भारत का प्रतिनिधित्व करके देश का गौरव बढ़ाया था।

1960 के रोम ओलंपिक में जिम्नास्टिक इवेंट को शामिल नहीं किया गया था। सन् 1964 के ‘टोक्यो’ ओलंपिक में अनंत राम ने एक बार फिर देश का प्रतिनिधित्व करके अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था। भारतीय जिम्नास्टिक संघ की स्थापना साल 1951 में हुई थी। सन् 1952 के ‘हेलसिंकी’ ओलंपिक में वीर सिंह व खुशी राम ने जिम्नास्टिक में भारत का पहली बार प्रतिनिधित्व किया था। 1956 मेलबोर्न ओलंपिक में तीन खिलाड़ी तथा 1964 के टोक्यो ओलंपिक में छह खिलाडिय़ों ने जिम्नास्टिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। ओलंपिक खेलों में जिम्नास्टिक में भारत का दो मर्तबा प्रतिनिधित्व करने वाले कै. अनंत राम एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं। 1964 के टोक्यो ओलंपिक में भारतीय जिम्नास्टिक दल की कमान भी अनंत राम के पास थी। 1956 के मेलबॉर्न ओलंपिक में अनंत राम, प्रीतम सिंह व शाम लाल भारतीय जिम्नास्टिक टीम के सदस्य थे। 1956 ओलंपिक के जिम्नास्ट शाम लाल को खेल मंत्रालय ने सन् 1961 में ‘अर्जुन अवार्ड’ से नवाजा था। शाम लाल जिम्नास्टिक में देश के प्रथम अर्जुन अवार्डी थे, मगर दो ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनंत राम अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर भारत का गौरव बढ़ाने के बावजूद खेल सम्मान से महरूम रह गए। सन् 1964 के टोक्यो ओलंपिक के बाद अनंत राम की खेल विरासत जिम्नास्टिक भी गुमनामी के दौर में चली गई। सन् 2016 के ‘रियो’ ओलंपिक में ‘दीपा कर्माकर’ ने महिला वर्ग में भारतीय जिम्नास्टिक को वैश्विक खेल पटल पर पहचान दिलाने की कोशिश की थी। ज्ञात रहे सन् 1974 के तेहरान एशियाई खेलों में जिम्नास्टिक को पहली बार शामिल किया गया था।

इसलिए अनंत राम को एशियाई खेलों में जिम्नास्टिक का प्रदर्शन करने का मौका नहीं मिला। 1960 के रोम ओलंपिक में कुश्ती में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय सेना के पहलवान कैप्टन ‘सज्जन सिंह’ को खेल मंत्रालय ने सन् 2021 में ‘ध्यान चंद लाईफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से नवाजा था। भारतीय कुश्ती के लिए बेहतरीन योगदान देने वाले सेना के पहलवान कै. ‘चांदरूप’ को राष्ट्रपति ने सन् 2010 में ‘द्रोणाचार्य’ अवार्ड से सम्मानित किया था। हरियाणा राज्य से ताल्लुक रखने वाले सेना के कई अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों को सेना से सेवानिवृत्ति के बाद हरियाणा सरकार ने अपने खेल विभागों में तैनात करके उन खिलाडिय़ों के खेल हुनर का पूरा लाभ उठाया तथा सम्मानित भी किया, लेकिन जिम्नास्टिक के पुरोधा कै. अनंत राम के अंतरराष्ट्रीय खेल अनुभव व खेल हुनर का लाभ लेने में खेल मंत्रालय, खेल संघ व खेल विभागों तथा हिमाचल की सरकारों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। अनंत राम को अंतरराष्ट्रीय खेल शौहरत के अनुरूप सम्मान भी नहीं मिला, नतीजतन दो बार के ओलंपियन जिम्नास्ट को गुमनाम जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ा। सन् 1950 का दशक जब मुल्क गुरबत से जूझ रहा था, खिलाड़ी तमाम खेल सुविधाओं से वंचित थे। उस दौर में विश्व के सबसे भव्य खेल आयोजन ओलंपिक में जिम्नास्टिक जैसे खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। विडंबना है कि खेल मैदानों पर खून पसीना बहाकर पदक जीतने के लिए आखिरी क्षण तक पूरा दम लगाकर जद्दोजहद करने वाले होनहार खिलाडिय़ों के बजाय मैदाने सियासत के माहिर खिलाड़ी सियासतदान हर जगह सुर्खियों में रहते हैं।

आजादी के बाद से खेल मंत्रालयों से लेकर खेल संघों तक सियासतदानों का ही कब्जा है। देश के लिए मेडल जीतने की खेल रणनीति के बजाय चुनाव जीतने व खेल संघों पर अपनी हुकूमत बरकरार रखने की नीति को ही तवज्जो दी जाती है। अंतरराष्ट्रीय खेल पटल पर पदक जीतने की मजबूत दावेदारी पेश करने के लिए खेलों के बुनियादी ढांचे को सुविधाओं से लैस करके विश्वनीय खेल तंत्र विकसित करने की जरूरत है। बहरहाल जिम्नास्टिक स्पर्धा में चार बार के राष्ट्रीय चैंपियन तथा विश्व के सबसे बड़े खेल महाकुंभ ओलंपिक में भारत का दो बार प्रतिनिधित्व करने वाले दिग्गज जिम्नास्ट अनंत राम का राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान होना चाहिए। देश का गौरव बढ़ाने वाली खेल प्रतिभाओं की नजरअंदाजी खेलों के साथ उभरते खिलाडिय़ों के भविष्य के लिए भी नुकसानदायक साबित होती है। अत: शासन-प्रशासन व खेल मंत्रालय को इस विषय पर संज्ञान लेना होगा। युवा खिलाडिय़ों के लिए प्रेरणास्रोत जिम्नास्टिक के कुशल महारथी कै. अनंत राम की खेल विरासत को सहेजने के प्रयास होने चाहिए।

प्रताप सिंह पटियाल

स्वतंत्र लेखक


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