प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेवार कौन?

हिमाचल प्रदेश में पिछले एक दशक से प्राकृतिक आपदाएं बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही हैं। इसके कुछ कारणों का भी पता लगाना समय की सबसे बड़ी मांग बनता जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में दो वर्षों में भूस्खलन के मामलों में छह गुना वृद्धि दर्ज की गई है। राज्य में 2020 में भूस्खलन के महज 16 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2022 में यह मामले छह गुना बढ़ गए…

हिमाचल प्रदेश अपने प्राकृतिक तथा स्वास्थ्यवर्धक वातावरण के लिए विश्व-विख्यात है। हिमाचल प्रदेश का अधिकांश भाग सुंदर, सौम्य, गगनचुंबी पहाड़ों व कल-कल करती बहती नदियों के कारण हर किसी का मन मोह लेता है। लेकिन बरसात के महीनों में इन पहाड़ों में भारी बारिश के कारण भूस्खलन तथा पानी का जलस्तर बढऩे के कारण अनेकों आपदाएं मानव जीवन को लील लेती हैं। 8, 9 तथा 10 जुलाई 2023 को हिमाचल प्रदेश में भयंकर बारिश हुई जिसके कारण प्रदेश को जान-माल के साथ करोड़ों रुपए का नुकसान भी झेलना पड़ा। सबसे ज्यादा रौद्र रूप ब्यास नदी ने धारण किया। इसके समीप बसे कुल्लू से लेकर मंडी तक के स्थानीय जनमानस को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। कुल्लू जिला में ब्यास नदी के समीप बने फोरलेन, अन्य मार्ग तथा स्थानीय लोगों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। वहीं मंडी में वर्ष 1877 में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बनाए गए विक्टोरिया ब्रिज को भी इतिहास में पहली बार ब्यास नदी के जल ने छू लिया। पर्यटकों तथा व्यवसायियों को भी इस आपदा में अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ा।

आखिरकार हिमाचल प्रदेश में पिछले एक दशक से प्राकृतिक आपदाएं बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही हैं। इसके कुछ कारणों का भी पता लगाना समय की सबसे बड़ी मांग बनता जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में दो वर्षों में भूस्खलन के मामलों में छह गुना वृद्धि दर्ज की गई है। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में वर्ष 2020 में भूस्खलन के महज 16 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2022 में यह मामले छह गुना बढक़र 117 हो गए। विभाग के मुताबिक राज्य में 17120 भूस्खलन संभावित स्थल हैं, जिनमें से 675 स्थल महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचों और बस्तियों के पास हैं। ये स्थल चंबा (133), मंडी (110), कांगड़ा (102), लाहौल और स्पीति (91), ऊना (63), कुल्लू (55), शिमला (50), सोलन (44), बिलासपुर (37), सिरमौर (21) और किन्नौर (15) में हैं। हिमाचल प्रदेश के चंबा, किन्नौर, कुल्लूृ, ऊना, मंडी, सिरमौर और शिमला जिले फ्लैश फ्लड, भूस्खलन, बादलों के फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं। हिमाचल प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति तथा किन्नौर में सबसे ज्यादा भूस्खलन की घटनाएं देखने को मिलती हैं। हर वर्ष प्रदेश सरकार तथा आम जनमानस को करोड़ों रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है। ऐसे में बढ़ती भूस्खलन की घटनाओं का विश्लेषण करना अनिवार्य हो गया है। वर्तमान समय में हिमाचल के लोगों का रहन-सहन, खानपान, आवागमन तथा पहनावा आधुनिकता की चकाचौंध का मोहताज होता जा रहा है। आज प्रदेश के पहाड़ों को कुछ चंद जरूरतों को पूरा करने के लिए बेरहमी से कुरेदा जा रहा है।

प्रदेश में असंख्य हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, फोरलेन का निर्माण तथा हर गांव, कस्बे, शहर में पहाड़ों को चीरने-फाडऩे की प्रक्रिया तीव्र गति से आगे बढ़ रही है। हर कोई इन पहाड़ों को चीर करके अपनी सुख-सुविधाओं को बढ़ाने में लगा है। सरकार इस प्रक्रिया को विकास का नाम देती है, वहीं आम जनता इस प्रक्रिया को अपनी सुख-सुविधाओं की बुनियादी जरूरत बताती है। जब पहाड़ों के बीच से सडक़ मार्ग, हाइड्रो प्रोजेक्ट तथा सुरंगों के निर्माण के दौरान अत्यधिक विस्फोट किए जाते हैं जिससे पहाड़ जर्जर हो जाते हैं और बरसात के समय में जब उनमें थोड़ा सा पानी अंदर घुसता है तो वे भूस्खलन का रूप धारण करके प्रदेश के जनमानस के लिए आपदा पैदा करते हैं। इस समस्या को एक अनपढ़ व्यक्ति भी बड़ी सरलता से समझने में सक्षम है। लेकिन इस प्रदेश के कर्णधार इस बात को समझने के लिए कतई भी राजी नहीं हैं। इन पहाड़ों को कुरेदने से अच्छा होता आवागमन के अन्य विकल्पों को तलाशा जाता तथा पहाड़ों के साथ कम से कम छेडख़ानी की जाती। हिमाचल प्रदेश में रेल मार्ग, जल मार्ग तथा हवाई मार्ग के निर्माण को तवज्जो मिलनी चाहिए थी। लेकिन प्रदेश के कर्णधार सडक़ मार्ग पर ही अटल हैं, जिसके परिणाम घातक साबित हो रहे हैं। विकास की अंधी दौड़ कहीं न कहीं आज मानव जीवन के समक्ष अनेकों मानव जनित समस्याओं को उजागर कर रही है। वर्तमान समय में प्रदेश का जनमानस ऐसी परिस्थिति में आ गया है जहां पर उसे सिर्फ अपना जीवन सुरक्षित करना ही सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे में न तो विकास के इन मसीहाओं को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है, न ही बढ़ते जलवायु संकट को दोषी ठहराया जा सकता है। जितना हो सके, अपने जीवन को सुरक्षित करने के लिए यथासंभव सुरक्षित स्थानों की तरफ कूच करें अन्यथा प्रदेश का जनमानस अपनी जान से हाथ धोता रहेगा। दो दिन समाचार पत्रों की सुर्खियां, 4 दिन प्रदेश के नेताओं की शोक संवेदनाएं तथा 13 दिन तक रिश्तेदारों तथा धर्म कांड का प्रचलन देखने को मिलेगा।

उसके बाद ताउम्र के लिए आपके परिवार को घाव मिलेंगे। यह जीवन का आधारभूत सत्य है, इसे स्वीकार करना ही होगा। 21वीं सदी के मानव ने अनेकों सूचना प्रौद्योगिकी के यंत्रों के माध्यम से प्राकृतिक आपदाओं से जनमानस को बचाने की अनेकों नवीन तरीके इजाद किए हैं। इस कड़ी में आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा भूस्खलन की जानकारी देने वाला सेंसर वार्निंग सिस्टम इजाद किया है, जोकि भूस्खलन की घटनाओं से सूचित करने में सहायक साबित है। इस सिस्टम के माध्यम से अनेकों जनमानस की जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। इसके साथ सरकार को, प्रदेश में अवैज्ञानिक व अवैध खनन किसी भी सूरत पर न हो, इसके लिए कठोर कदम उठाने होंगे। पर्यावरणविदों के इस विचार पर भी गौर करना समय की मांग बन चुका है कि हिमालय के इलाकों में, खासतौर से सतलुज और चिनाब घाटी में कोई भी प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले इनसे पडऩे वाले दुष्प्रभावों पर अध्ययन किया जाना आवश्यक है।

कर्म सिंह ठाकुर

स्वतंत्र लेखक


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