गीता रहस्य

By: Oct 28th, 2023 12:14 am

स्वामी रामस्वरूप
जहां यह संपूर्ण विश्व नहीं है वहां भी परमेश्वर व्यापक होकर स्थित है। हम इसी अद्भुत परमेश्वर की उपासना करने आए हैं। प्रस्तुत श्लोक में कहा कि (न अंतम न मध्यम न पुन: तव आदिम) अर्थात हे परमेश्वर मैं तुम्हारा अंत, मध्य एवं आदि नहीं देखता…
गतांक से आगे…
इस आलौकिक रूप को योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज ने अर्जुन को अपने भौतिक शरीर में दिखाया, क्योंकि परमेश्वर जैसा पिछले श£ोक में वेदमंत्रों में बताया, वह योगियों के शरीर में ही प्रकट होता है। यह वैदिक सत्य है कि निराकार परमेश्वर जन्म-मरण से परे है और कभी शरीर धारण नहीं करता, इसलिए ईश्वरीय वाणी वेद ने उसे ‘अज’ एक पात, आदि अलौकिक गुणों से सुशोभित किया है। ईश्वर को विश्वरूप इसलिए कहा है, क्योंकि वह विश्व के कण-कण में बसा हुआ है। क्योंकि सर्वव्यापक होना उसका स्वाभाविक गुण है और दूसरा यजुर्वेद मंत्र 40/6 आदि के अनुसार सारा विश्व परमेश्वर के अंदर आश्रय लिए हुए है। वही परमेश्वर योगेश्वर श्रीकृष्ण महाराज के अंदर प्रकट है और इस प्रकार श्रीकृष्ण महाराज अर्जुन को अपने शरीर में विश्वदर्शन करा रहे हैं।

यजुर्वेद मंत्र 31/4 में इस विश्वरूप का इस प्रकार वर्णन है। श£ोक 11/6 में अर्जुन श्रीकृष्ण महाराज से बोला है ‘सहस्रशीर्षा पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्रपात। स भूमिम सर्वत स्पृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम’। (सहस्रशीर्षा) जिस परमेश्वर के असंख्य सिर हैं, असंख्य आंखें हैं, असंख्य पांव हैं, पूर्ण परमेश्वर अर्थात जो सब प्रकार से, ज्ञान, कर्म आदि से पूर्ण है और सब संसार में व्यापक है, वह सब ओर से संपूर्ण भूमि को व्याप्त करके अर्थात सर्वव्यापक होकर दस अंगुलियां ( ऽ स्थूल एवं ऽ सूक्षम भूत) वाले जगत को लांघ कर स्थित है। अर्थात जहां यह संपूर्ण विश्व नहीं है वहां भी परमेश्वर व्यापक होकर स्थित है। हम इसी अद्भुत परमेश्वर की उपासना करने आए हैं। प्रस्तुत श£ोक में कहा कि (न अंतम न मध्यम न पुन: तव आदिम) अर्थात हे परमेश्वर मैं तुम्हारा अंत, मध्य एवं आदि नहीं देखता। इस विषय में यजुर्वेद मंत्र 32/2 में कहा। – क्रमश:


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