बुद्धिमता मन से परे

By: Oct 28th, 2023 12:14 am

श्रीश्री रवि शंकर

ज्यादा जरूरी क्या है वस्तुएं इंद्रियां मन या बुद्धि? इंद्रिय के साधन से इंद्रियां अधिक जरूरी हैं। टेलीविजन से तुम्हारी आंखें अधिक जरूरी हैं, संगीत या ध्वनि से तुम्हारे कान अधिक जरूरी हैं। स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों या आहार से जिह्वा अधिक जरूरी है। हमारी त्वचा, जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं उससे अधिक जरूरी है। लेकिन मूर्ख सोचते हैं कि इंद्रिय सुख देने वाली वस्तुएं इंद्रियों से अधिक जरूरी हैं। उन्हें मालूम है कि अत्यधिक टीवी देखना आंखों के लिए अच्छा नहीं है, फिर भी वे परवाह नहीं करते और लंबे समय के लिए टेलीविजन देखते रहते हैं। उन्हें मालूम है उनकी शरीर प्रणाली को अत्यधिक खाना नहीं चाहिए, लेकिन वे शरीर से आहार को अधिक महत्त्व देते हैं। बुद्धिमान वह है जो इंद्रियों की तुलना में मन की ओर अधिक ध्यान देता है। यदि मन का ध्यान नहीं रखा, केवल इंद्रिय सुख के साधन व इंद्रियों पर ही ध्यान रहा, तो तुम अवसाद में उतर जाओगे।

वस्तुओं के प्रति तुम्हारी लालसा तुम्हारे मन से अधिक आवश्यक है। तुम्हारी बुद्धि, बुद्धिमता मन से परे है। यदि तुम केवल मन के अनुसार चलोगे तो तुम डांवाडोल स्थिति में रहोगे। जीवन में तुम्हारी कोई प्रतिबद्धता नहीं रहेगी तुम और भी दुखी हो जाओगे। जो वस्तु मन की इस प्रकृति को मिटा सकती है, वह है अनुशासन। तुम्हारा मालिक तुम पर दबाव डालता है, तुम्हें इतने दिन काम करना है, सप्ताह के पांच दिन। यदि ये दबाव न हो, तो तुम कभी काम नहीं करोगे। बुद्धि मन से अधिक जरूरी है क्योंकि बुद्धि ज्ञान की मदद से निर्णय लेती है। कहती है, ये अच्छा है, ये करना चाहिए, ये नहीं करना चाहिए। बुद्घिमान बुद्धि का अनुसरण करेंगे, मन का नहीं। बुद्धिमता ये है कि तुम भावनाओं की परवाह नहीं करते, क्योंकि वे हमेशा बदलती रहती हैं।

लोग बैठ कर कहते रहते हैं, ओह! मुझे अच्छा लग रहा है, ओह! मुझे बुरा लग रहा है, मुझे ऐसा लग रहा है, मुझे वैसा लग रहा है। तुम अपने लिए नरक बना लेते हो। तुमने भूतकाल में कुछ लोगों को दुखी किया है और वह दु:ख तुम अभी अनुभव कर रहे हो। इस अनुभव को झेलो, उससे भागो मत। जीवन प्रतिबद्धता से चलता है। तुम्हारा जीवन इस ग्रह पर किसी कल्याणकारी हेतु के लिए समर्पित है। ये तुम में निर्भयता, ताकत, शांति, स्थिरता, जोश, सब कुछ तुम्हारे भीतर से बाहर ले आता है। औरों की चिंता करो, भावनाओं की ज्यादा परवाह मत करो। किसी भी बात के लिए विलाप करने मत बैठे रहो। इस संसार की कोई भी वस्तु की कीमत तुम्हारे आंसुओं के बराबर नहीं है। अगर तुम्हें आंसू बहाने ही हैं, तो वे कृतज्ञता के, विस्मय के, प्रेम के मीठे आंसू होने चाहिए। निरर्थक बात के लिए रोना उचित नहीं है। हमारा जीवन इसके लिए नहीं बना है। हमें यह समझना चाहिए। किसी पद में लिखा है कि चंदन को जितना घिसा जाए, उसमें से उतनी ही अधिक सुगंध उभरती है, सोने पर जितनी चोट लगाई जाए, वह उतना ही अधिक चमकता है, गन्ने को जितना अधिक निचोड़ा जाए, उसमें से उतना ही अधिक मीठा रस निकलता है।

जीवन को ऐसे रखना चाहिए। तुम्हारी भावनाएं तुम्हें कमजोर बनाती हैं और यही तुम्हें सशक्त बनाती हैं। जब तुम्हारी भावनाएं सकारात्मक हों तो वे तुम्हें सत्य, सूक्ष्म और कोमलता के प्रति संवेदनशील बनाती हैं और गहरे ध्यान में ले जाती हैं। लेकिन वही भावनाएं जब रूखी हों, तुम्हारे मन और शरीर को नष्ट कर देती हैं। भावना तुम्हारी शत्रु और मित्र दोनों हैं। वह भावना जो तुम्हें भीतर से कोमल बनाए, वह तुम्हारी मित्र है, जो भावना तुम्हें भीतर से रूखा बना दे, तुम्हारी शत्रु है। जब हम अपनी भावनाओं की परवाह नहीं करते और भावनाओं की चिंता नहीं करते, तब हम ज्ञान में अधिक स्थापित होते हैं और ज्ञान में स्थापित हो कर तुम आत्मा की ओर जाते हो।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App