अन्याय के खिलाफ लड़ते जिला परिषद कर्मी
सुक्खू को चाहिए कि जिला परिषद कैडर को खत्म करके कर्मचारियों का समायोजन मूल विभाग में कर दें…
अन्याय से विद्रोह उपजता है और विद्रोह से अव्यवस्था। कुछ ऐसी ही हालत आजकल प्रदेश के ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग की हो रखी है, जहां जिला परिषद कैडर के लगभग 3400 कर्मचारी अपनी मांगों के न माने जाने के कारण कलम छोड़ो हड़ताल पर हैं। परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास के कार्य पूरी तरह से ठप्प पड़ चुके हैं। प्रदेश की जनता से सीधे तौर पर जुड़े इस विभाग के कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से वित्त आयोग व मनरेगा से जुड़े कार्य तो प्रभावित हुए ही हैं, इसी के साथ ग्राम सभा को चलाने में, जन्म व मृत्यु के प्रमाणपत्र व शादियों के पंजीकरण सहित कई अन्य कार्यों में भी लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जायज मांगों को भी न माने जाने से कुपित जिला परिषद कैडर के कर्मचारी और अहम की पराकाष्ठा के रथ पर सवार प्रदेश सरकार के बीच यह टकराव निश्चित रूप से चिंताजनक है। हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की मुख्य रूप से तीन मांगें हैं। पहली यह कि छठे वेतन आयोग के लाभ जो प्रदेश के अन्य कर्मचारियों को वर्ष 2016 से मिल रहे हैं, वह लाभ उन्हें अभी तक नहीं मिल रहे हैं। दूसरा, इन कर्मचारियों के पदोन्नति के लिए कोई नियम नहीं है। उदाहरण के लिए पंचायत सचिव के रूप मे भर्ती हुआ एक कर्मचारी 35-36 वर्ष की सेवा के पश्चात भी पंचायत सचिव के रूप में ही सेवानिवृत्त हो जाता है, जबकि ग्रामीण विकास विभाग में भर्ती एक पंचायत सचिव बीडीओ व एसईबीपीओ के पद तक पहुंचता है। तीसरा, जिला परिषद कैडर के कर्मचारी अभी तक ओपीएस की सुविधा से वंचित हैं। कहने के लिए तो 15-16 मांगें हैं, पर गहराई से इस मामले को समझा जाए तो इन कर्मचारियों की सिर्फ एक ही मांग है कि जिला परिषद कैडर को खत्म करके इन कर्मचारियों का समायोजन ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग में किया जाए।
समस्या के समाधान से पूर्व हमें ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग की कार्यप्रणाली को समझना होगा। प्रदेश में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज यूं तो दो अलग-अलग विभाग हैं, पर गांवों के विकास का साझा उद्देश्य होने के कारण दोनों विभाग मिलकर कार्य करते हैं। ग्रामीण विकास विभाग में इस समय 1130 तथा पंचायती राज विभाग में 440 कर्मचारी कार्यरत हैं। पंचायती राज में थ्री टायर सिस्टम (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद) को लागू करने की एवज में केंद्र सरकार से मिलने वाली ग्रांट का लाभ उठाने के लिए प्रदेश सरकार ने वर्ष 1996 में पंचायती राज विभाग में एक अलग कैडर का निर्माण किया। वर्ष 1999 से लेकर अब तक इस विभाग में लगभग सभी भर्तियां इसी कैडर में होती हैं। इस कैडर में लगभग 3500 कर्मचारी हैं। ये कर्मचारी ही इन दोनों विभागों के कार्यों को धरातल पर अमलीजामा पहना रहे हैं।
जिला परिषद कैडर के कर्मचारी कहने के लिए तो पंचायती राज विभाग के कर्मचारी हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। भर्तियां तो इन कर्मचारियों की पंचायती राज विभाग के द्वारा ही की जाती हैं, पर उसके पश्चात इन्हें जिला परिषद कैडर में डाल दिया जाता है। स्वायत्त कैडर होने के कारण जिला परिषद के कर्मचारियों को वेतन सरकारी ट्रेजरी से नहीं निकलता है। पदोन्नति के नियम न होने के कारण पंचायत सहायक व पंचायत सचिव वर्षों से एक पद पर हैं। जबकि ग्रामीण विकास और पंचायती राज में इन्हीं के साथ लगे पंचायत सचिव उन विभागों में बीडीओ तक भी पहुंच गए हैं। और सबसे बड़ा अन्याय उस समय नजर आता है, जब वाटर शेड कार्यक्रम से ग्रामीण विकास विभाग में समायोजित कनिष्ठ अभियंता, जिला परिषद कैडर के कनिष्ठ अभियंताओं से काफी जूनियर होने के बाद भी ज्यादा वेतन ले रहे हैं, जबकि दोनों का कार्य समान ही है।
जिला परिषद कैडर के कर्मचारियों से हो रहे अन्याय से राजनेता परिचित नहीं हैं, ऐसा भी नहीं है। गत वर्ष इन्हीं मांगों को लेकर जब ये कर्मचारी धरने पर बैठे थे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री ने छठे वेतन आयोग के सभी लाभ देने की घोषणा की थी। पर वो उन्होंने पूरी नहीं की। प्रदेश की 90 फीसदी जनता को प्रभावित करने वाले इस कर्मचारी वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस भी भला कैसे पीछे रहती। उस समय इन कर्मचारियों की हड़ताल को प्रदेश भर के कांग्रेस नेताओं ने समर्थन दिया। वर्तमान मुख्यमंत्री ने नादौन में कर्मचारियों की हड़ताल में शामिल होकर तत्कालीन जयराम सरकार को इनकी मांगें न मानने पर ‘नालायक सरकार’ का तगमा भी दिया था और इसे छोट्टी सी विसंगति करार देते हुए कांग्रेस की सरकार बनने के एवज में पहली कैबिनेट की बैठक में सभी मांगों का पूरा करने का वायदा किया था, पर ये अलग बात है कि 333 दिन बीत जाने के बाद भी इन कर्मचारियों की एक भी मांग पूरी नहीं हुई है।
क्या जिला परिषद कैडर के कर्मचारियों की मांगें उनके कार्यों के अनुरूप हैं या फिर वो कुछ ज्यादा ही मांग रहे हैं, इसके लिए हम लोक निर्माण विभाग के साथ उनका तुलनात्मक अध्यन भी कर लेते हैं। क्योंकि दोनों विभाग कमोबेश एक ही तरह के कार्य करते हैं। प्रदेश में लोक निर्माण विभाग का कुल बजट 5000 करोड़ रुपए है जबकि ग्रामीण विकास व पंचायती राज का 1916 करोड़ रुपए है। इसके अतिरिक्त पर्यटन, भाषा एवं संस्कृति, सांसद व विधायक निधि सहित 23 अन्य विभागों के कार्य भी इसी विभाग को करने होते हैं। अनुमानत: प्रति वर्ष 3000 करोड़ रुपए के कार्य जिला परिषद कैडर के कर्मचारियों के माध्यम से किए जाते हैं। पीडब्ल्यूडी के पास 2 ईएनसी, 7 चीफ इंजीनियर, 21 आरटीटेक्ट, 37 एसई, 117 एक्सईएन, 370 एसडीओ व 1081 जेई हैं। वहीं जिला परिषद कैडर में मात्र 3 एक्सईएन, 30 एसडीओ और 207 जेई हैं जो सारे टेक्निकल कार्य देख रहे हैं।
व्यवस्था परिवर्तन के नारे के सहारे सत्ता में आई सरकार के लिए अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त शुरुआत अगर कहीं हो सकती है तो वो ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ही हो सकता है। इस विभाग में व्यवस्था परिवर्तन का सीधा अर्थ है कि प्रदेश की ग्रामीण आधारभूत ढांचे में परिवर्तन और ग्रामीण जनता को सीधा लाभ पहुंचाना, पर यह तब तक संभव नहीं है जब तक विभाग में अनियमितताओं को ठीक न किया जाए। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को चाहिए कि पंजाब व हरियाणा की तर्ज पर जिला परिषद कैडर को खत्म करके सभी कर्मचारियों का समायोजन मूल विभाग में कर दें और टेक्निकल कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी करें, अन्यथा व्यवस्था परिवर्तन का नारा शब्दों तक ही सीमित रह जाएगा।
प्रवीण कुमार शर्मा
सतत विकास चिंतक
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