सद्गुरु का धन्यवाद

By: Nov 4th, 2023 12:20 am

बाबा हरदेव

गतांक से आगे…

सद्गुरु वही देता है जो तुम्हारे पास है ही, सदा शाश्वत से है, सनातन से है, कुछ नया नहीं देता। सद्गुरु तुमसे वही छीन लेता है जो तुम्हारे पास है ही नहीं। नींद छीन लेता है, जगा देता है, अहंकार छीन लेता है, अहंकार झूठा है। सद्गुरु सत्य, श्रद्धा, प्रेम बांटता है, झोली खुशियों से भर देता है। सद्गुरु तुम्हें मुक्ति देना चाहता है, स्वतंत्रता देना चाहता है, तुम्हारे सारे बंधन तोडऩा चाहता है। ऐसा गीत देना चाहता है जिसे तुम गुनगुना सको। निरंकारी मिशन के प्रथम सद्गुरु बाबा बूटा सिंह जी भी ऐसे ही सडक़ पर चलते-चलते लोगों को झकझोर देते थे। शाम का समय था। सडक़ से गुजर रहे थे, तो देखा एक आदमी लालटेन जला रहा था। बाबा बूटा सिंह जी ने पूछा, अरे भाई! ये क्या कर रहे हो? आगे से उस आदमी ने उत्तर दिया शाम हो गई है लालटेन जला रहा हूं। बाबा बूटा सिंह जी ने कहा, भाई साहब ध्यान से बात सुनो, तुम्हारे जीवन की भी एक दिन शाम हो जाएगी। अपने जीवन की लालटेन को भी जला लो, फिर ऐसा समय नहीं मिलेगा, अभी समय है। अपने जीवन को रोशन कर लो। एक दिन बाबा बूटा सिंह जी कहीं जा रहे थे, अचानक वर्षा होनी शुरू हो गई। अब बाबा बूटा सिंह जी इधर-उधर देखने लगे कि अब कहां खड़ा होऊं?

तभी एक साइकिल की दुकान नजर आई जिसके आगे तिरपाल लगी हुई थी। बाबा बूटा सिंह जी उस तिरपाल के नीचे जाकर खड़े हो गए। बाबा बूटा सिंह जी सफेद उजले वस्त्र पहने हुए थे, उन्हें देखकर दुकानदार ने उन्हें दुकान के अंदर आने को कहा। आगे से बाबा जी ने कहा, अरे भाई आप मुझे अंदर तो बला रहे हो लेकिन देखो, मैं अंदर आ गया तो कभी बाहर नहीं जाऊंगा। क्योंकि मेरे पास एक ऐसी पावन पवित्र दात है, जिसे पाकर तुम आनंद से भर जाओगे। तुम सदा के लिए मेरे हो जाओगे। मैं तुम्हारा बन जाऊंगा। सडक़ पर चलते एक मनुष्य से बाबा जी ने पूछा, भाई साहब कहां जा रहे हो? उसने कहा घर। बाबा बूटा सिंह जी ने कहा, तुम्हें अपने घर का पता है? जिस दिन संसार से जाओगे उस दिन कौन से घर जाओगे, क्या पता है? नहीं पता है तो मुझसे पूछो। आज समय है, जान लो। सद्गुरु सत्य के साथ जोडऩे के लिए हर प्रयास करते हैं। आज मानव बहुत दुखी है, सुखी कैसे हो, यही प्रयास हो रहा है। यूं तो संसार में अनेक प्रकार के गुरु हैं। गुरु और सद्गुरु में ये ही फर्क है। गुरु लालच देता है कि तेरी मुराद पूरी होगी। तुझे ये मिल जाएगा, तुझे वो मिल जाएगा। गुरु सोना देता है लेकिन सद्गुरु पारस देता है। देखने को तो पारस पत्थर है। कोई रंग नहीं, कोई रूप नहीं, पत्थर तो पत्थर लगता है। सद्गुरु कहते हैं, शिष्य इससे अपने जीवन को सोना बना सकता है, चमकदार बना सकता है। जीवन को और कीमती बना ले, शुद्ध सोना बना ले, इस पारस से जितना भी चाहे उतना सोना बना ले। ये कीमती पारस है। पारस को पाकर शिष्य ने सद्गुरु का धन्यवाद किया। घर जाकर पारस को एक कपड़े में लपेटा और लोहे के डिब्बे में रख दिया कि बड़ा कीमती है। -क्रमश:


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