बूढ़ी दिवाली मेला

By: Dec 9th, 2023 12:21 am

कुल्लू जिले में छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध निरमंड का चार दिवसीय ऐतिहासिक और धार्मिक जिला स्तरीय बूढ़ी दिवाली मेला 12 से 15 दिसंबर तक आयोजित होगा। मेले के आयोजन को लेकर निरमंड प्रशासन और मेला कमेटी ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। भूतेश्वर महादेव ढरोपा देवता के सान्निध्य में आयोजित होने वाले मेले में इस बार दो अन्य देवताओं को भी निमंत्रण दिया गया है। 12 दिसंबर की रात्रि को प्राचीन संस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। इस दौरान मशालें जलाकर प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। 13 दिसंबर को बूढ़ी दिवाली का शुभारंभ होगा। 15 दिसंबर को बूढ़ी दिवाली मेले का समापन होगा। स्थानीय स्कूली बच्चों के अलावा महिला मंडल प्रस्तुतियां देंगे। तीन सांस्कृतिक संध्याओं का भी आयोजन होगा। इसके अलावा महिला मंडलों की लोकनृत्य प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाएगा। मेले के दौरान महिला मंडलों की रस्साकशी प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया जाएगा। बूढ़ी दिवाली में पहली बार स्मारिका का विमोचन होगा। इसमें छोटी काशी निरमंड के संपूर्ण इतिहास को प्रकाशित किया जा रहा है।

बर्फ से लदी वादियों के बीच होता है आयोजन- हिमाचल प्रदेश के जिन इलाकों में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, वह इलाके बहुत ठंडे हैं, एक माह बाद जब वहां बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है, तब तक सारी वादियां बर्फ से ढंक चुकी होती हैं, आज भी इन इलाकों का संपर्क बाकी दुनिया से कट जाता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक जब तक बर्फ नहीं हटाई जाती तब तक बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह कटा रहता है।

ऐसे हुई परंपरा की शुरुआत- लोगों के मुताबिक बर्फबारी की वजह से कुछ समय तक यहां के लोग बाकी दुनिया से कटे रहते हैं, ऐसा कहा जाता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम जब अयोध्या लौटे थे, उसकी खबर हिमाचल के कई इलाकों तक एक माह बाद पहुंची थी, खबर पहुंचते ही यहां के लोग उत्साह में झूमने लगे थे और मशालें जलाकर खुशी का इजहार किया था, तभी से वहां बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हो गई।

खूब होता है नाच-गाना- बूढ़ी दिवाली, असल में दिवाली की अमावस्या से अगली अमावस्या को मनाई जाती है, इस त्योहार पर लोग नाटियां, स्वांग के साथ परोकडिय़ा गीत, विरह गीत भयूरी, रासा गाते हैं और हुडक़ नृत्य करके जश्न मनाते हैं, कुछ गांवों में बूढ़ी दिवाली के त्योहार पर बढ़ेचू नाच की भी परंपरा है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर क्षेत्र के तमाम गांव ऐसे हैं जहां एक सप्ताह से ज्यादा समय तक बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। समूचे देश में दिवाली कार्तिक माह की अमावस्या को मनाई जाती है, लेकिन राजगढ़, नौहराधार, हरिपुरधार, रेणुका व शिलाई आदि क्षेत्र में दिवाली का पर्व ठीक एक महीने बाद मनाया जाता है। इस त्योहार को बूढ़ी दिवाली या मशराली कहा जाता है। बूढ़ी दिवाली का शुभारंभ ग्राम देवता की पूजा व मशाल यात्रा के साथ होता है। माना जाता है बूढ़ी दिवाली पर बुरी आत्माओं को गांवों से बाहर खदेडऩे के लिए मशाल यात्रा निकाली जाती है। मान्यता है कि गिरिपार क्षेत्र में सत्युग से लेकर बूढ़ी दिवाली की रिवायत चली आ रही है। बूढ़ी दिवाली पर्व की शुरूआत पोष माह की अमावस्या की रात को गांव के सांझे प्रांगण में अलाव जलाकर और अगली सुबह मशाल यात्रा निकालकर होती है। इन 7 दिनों तक घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। बता दें, सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र आज भी अपनी प्राचीन परंपराओं को बखूबी से निभा रहा है। यहां 154 से अधिक पंचायतों में बूढ़ी दिवाली मनाने की अनूठी परंपरा है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App