श्रीमद्भगवद गीता के ज्ञान को समझें छात्र

दुर्योधन अर्थात मोह को अंत में भीम अर्थात भाव ही खत्म करता है। यही गीता समझाना चाहती है, इसीलिए तो गीता हम सबको मिली। वरना अर्जुन तक ही रह जाती। याद रहे कि भगवद गीता का अर्थ मन के स्तर पर है। यह एक सार्वभौमिक ग्रंथ है। इसका स्थान धर्म विशेष से ऊपर है, यह हर समय और स्थान पर प्रत्येक मानव जीवन के लिए प्रासंगिक है। भगवान श्रीकृष्ण का संदेश न केवल हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का मार्गदर्शन करता है, बल्कि हमारे आध्यात्मिक उत्थान और हमारे अस्तित्व के अंतिम लक्ष्य, ईश्वर से मिलन की ओर भी ले जाता है। कॉलेज छात्रों को और हमारे युवा अध्यापकों को, और यहां तक कि नौकरशाहों, राजनेताओं को, ऐच्छिक तौर पर श्रीमद्भगवद गीता के भाव का ज्ञान विशेष रूप से उपयोगी होगा, क्योंकि इनके सामने उनका पूरा जीवन पड़ा है। वे इस ज्ञान को आत्मसात कर लीडरशिप के गुण पैदा कर सकते हैं…

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के तहत एक कॉलेज ने फैकल्टी सदस्यों और शोधार्थियों के लिए ‘श्रीमद्भगवद गीता : ज्ञानोदय और प्रासंगिकता’ पर एक सर्टिफिकेट/रिफ्रेशर कोर्स शुरू किया है। दि टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, रामानुजन कॉलेज में भगवद गीता की शिक्षाओं पर आधारित 20 दिन का सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम 22 दिसंबर से शुरू हुआ है और 10 जनवरी 2024 तक चलेगा। इसमें 18 व्याख्यान सहित 20 सत्र होंगे। कॉलेज द्वारा जारी एक कॉन्सेप्ट नोट के अनुसार, कहा गया है, ‘श्रीमद्भगवद गीता जीवन के लिए एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक है जो कत्र्तव्य, धर्म और आत्म-बोध के मार्ग पर महत्वपूर्ण, समयातीत सीखों को अपने में समाहित किए हुए है। इससे जुडक़र प्रतिभागी न केवल अपनी आध्यात्मिक समझ को समृद्ध करेंगे बल्कि भारत की सांस्कृतिक और दार्शनिक विरासत से भी परिचित होंगे।’ भारत के सबसे प्रामाणिक ग्रंथों में से एक श्रीमद्भगवद गीता को दुनिया भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में वैकल्पिक या नियमित पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाया जा रहा है। कई स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने गीता को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है। भारत में शीर्ष रैंकिंग वाले पेशेवर संस्थान जैसे आईआईटी, आईआईएम और बिट्स-पिलानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और विदेशों में ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालय और सेटन हॉल सहित कई अन्य लोग मानविकी और सामाजिक विज्ञान में अन्य पाठ्यक्रमों के अलावा गीता पढ़ाते रहे हैं। वे अधिकतर मानते हैं कि यह पाठ्यक्रम उनके छात्रों के व्यक्तित्व विकास और पेशेवर क्षमता में मदद करता है। गीता मूल रूप से श्रीकृष्ण, जो ईश्वर के अवतार हैं और अर्जुन, जो महाभारत के युद्ध में धर्मी पक्ष के प्रमुख योद्धा हैं, के बीच एक संवाद है। धर्मग्रंथ की आवश्यक शिक्षाएं व्यक्तिगत इच्छाओं और हमारे कार्यों या कार्य के परिणामों के आंतरिक त्याग का प्रचार करती हैं।

इस तरह का त्याग समभाव की ओर ले जाता है, ईश्वर के प्रति हमारे पूर्ण समर्पण को पूरा करता है और विभाजित अहंकार से मुक्ति का समर्थन करता है, जो हमें एकता लाता है। बीसवीं सदी के प्रमुख योगियों में से एक, श्री अरबिंदो इसे इस प्रकार कहते हैं : ‘गीता हमें कार्यों और प्रकृति की पूर्ण ऊर्जाओं के बीच भी आत्मा की स्वतंत्रता का वादा करती है, यदि हम अपने संपूर्ण अस्तित्व की अधीनता को स्वीकार करते हैं जो अलग करने और सीमित करने वाले अहंकार से अधिक है।’ भगवद् गीता का मर्म महत्वपूर्ण है। इसकी व्याख्या अनेक प्रकार से की जाती है। मेरे निजी विचार के अनुसार, एक महाभारत का युद्ध हर मनुष्य को अपने जीवन में लडऩा है। जब तक नहीं लड़ोगे तब तक मुक्त नहीं होंगे। परंतु यह युद्ध लडऩा कहां है? तो श्रीकृष्ण ने 13वें अध्याय में बताया कि यह शरीर ही वह क्षेत्र है जहां यह युद्ध होता है। अब प्रश्न है कि शरीर में किससे युद्ध करना है? तो शरीर में दो सेनाएं हैं। एक पांडव अर्थात पुण्यमयी और एक कौरव अर्थात पापी। इनमें प्रत्येक योद्धा उपस्थित है। और वो इस प्रकार है : अभिमन्यु अर्थात अभय मन।

वह मन जिसमें अब भय नहीं हो। जो भय से मुक्त है। अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र है। अर्जुन से उत्पन्न हुआ है। अर्जुन का अर्थ है- अनुराग। मनुष्य का इष्ट के प्रति राग ही अनुराग कहलाता है। उसी अनुराग से अभिमन्यु अर्थात अभय मन होता है। ध्यान रहे कि मन तो पहले ही है, परंतु पहले उसमें भय था। परंतु अनुराग ने उसे अभय बना दिया। जब भक्ति करते हैं तो मन भय से परे कर दिया जाता है। अब भय तो उस मन में है ही नहीं। उधर देखें तो भीष्म का अर्थ है- भ्रम। यहां बड़ा भयंकर योद्धा है। समस्त कौरवों का सेनापति है। यह भ्रम ही है। मनुष्य को जब तक इस संसार के मायाजाल का पता नहीं लगता तब तक भ्रम बड़ी तबाही करता है। परंतु अनुराग अर्थात अर्जुन उसे अपने धनुष से बाणों की शैय्या पर लिटा देता है। धनुष का अर्थ है- ध्यान। अनुरागी व्यक्ति ध्यान के द्वारा अपने भ्रम को हटा देता है। परंतु उसके बाद सेनापति होते हैं द्रोण। द्रोण का अर्थ है- द्वैत। जब तक यह लगता है कि मैं ईश्वर से अलग हूं, उसे ही द्वैत कहते हैं। यह बड़ा षड्यंत्रकारी है। अलग-अलग व्यूह बनाता है। चक्रव्यूह भी बनाता है। और इसके चक्रव्यूह में अभिमन्यु अर्थात अभय मन फंस जाता है। और मारा जाता है। वर्तमान में हमारा मन भय में रहता है। जब यह अभय हो जाएगा तो बड़ा जबरदस्त हो जाएगा। परंतु द्वैत इसे फंसा लेगा। द्वैत खत्म कर देगा। द्रोण का पुत्र है अश्वत्थामा। अर्थात- आसक्ति। यह अंत तक रहता है। अश्वत्थामा अर्थात आसक्ति अमर है। किसी वस्तु में लगाव होना ही आसक्ति है। इसे मारा नहीं जा सकता, परंतु निष्क्रिय किया जाता है। इधर पांडवों में पांच पांडव हैं जिनके मतलब कुछ इस प्रकार हैं : पांडु पुत्र पांच हंै। पांडु का अर्थ है- पुण्य। पांडु की पत्नी कुंती है। कुंती का अर्थ है : कत्र्तव्य। जब कुंती (कत्र्तव्य) का पांडु (पुण्य) के साथ सम्बन्ध होता है तो युधिष्ठिर रूपी धर्म, भीम यानी भाव, अर्जुन यानी अनुराग, नकुल यानी नियम और सहदेव यानी सत्संग, इन सब का जन्म होता है।

उधर धृतराष्ट्र अर्थात अज्ञान से दुर्योधन अर्थत मोह उत्पन्न होता है। यह मोह ही सबका राजा है। मनुष्य के अंदर होने वाले युद्ध में यही बड़ा प्रबल है। परंतु जब अनुराग अर्थात अर्जुन मनुष्य में प्रकट होता है तो स्वयं श्री कृष्ण अंतरात्मा से उसका मार्गदर्शन करते हंै। उसे बार-बार ह्रदय में होने वाले युद्ध के लिए प्रेरित करते हंै। दुर्योधन अर्थात मोह को अंत में भीम अर्थात भाव ही खत्म करता है। यही गीता समझाना चाहती है, इसीलिए तो गीता हम सबको मिली। वरना अर्जुन तक ही रह जाती। याद रहे कि भगवद् गीता का अर्थ मन के स्तर पर है। यह एक सार्वभौमिक ग्रंथ है। इसका स्थान धर्म विशेष से ऊपर है, यह हर समय और स्थान पर प्रत्येक मानव जीवन के लिए प्रासंगिक है। भगवान श्रीकृष्ण का संदेश न केवल हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का मार्गदर्शन करता है, बल्कि हमारे आध्यात्मिक उत्थान और हमारे अस्तित्व के अंतिम लक्ष्य, ईश्वर से मिलन की ओर भी ले जाता है। कॉलेज छात्रों को और हमारे युवा अध्यापकों को और यहां तक कि नौकरशाहों, राजनेताओं को, ऐच्छिक तौर पर श्रीमद भगवद् गीता के भाव का ज्ञान विशेष रूप से उपयोगी होगा, क्योंकि इनके सामने उनका पूरा जीवन पड़ा है। वे इस बहुमूल्य ज्ञान को आत्मसात कर कामयाबी के लिए जरूरी लीडरशिप के गुण पैदा कर सकते हैं और इसकी आध्यात्मिक शक्ति और प्रकाश से समृद्ध होकर अपना जीवन जी सकते हैं।

डा. वरिंद्र भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


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