जंगलों में दिखने लगी गुच्छी, मौसम की सताई गुच्छी के लिए टॉनिक साबित हुई है बारिश
स्टाफ रिपोर्टर-भुंतर
मौसमी बदलावों और जलवायु परिवर्तन की जद में आई हिमाचली ग्रामीणों की आर्थिकी की रीढ़ मशरूम प्रजाति की बूटी गुच्छी का उत्पादन आरंभ हो गया है। कुल्लू सहित अन्य स्थानों पर गुच्छी उगनी आरंभ भी हो गई है। लिहाजा, आने वाले दिनों में अब ग्रामीण इसकी खोज के लिए जंगलों में डटने वाले हैं। राज्य के ग्रामीणों को हर साल अनुमानित 50 से 80 करोड़ तक की आमदनी प्रदान करने वाली इस बूटी के अस्तित्व पर ग्रामीण संकट मान रहे है। कुल्लू, मंडी, चंबा, शिमला, सिरमौर आदि जिलों के उपरी ईलाकों में पाई जाने वाली इस प्रजाति को आमदनी का जरिया मानने वाले ग्रामीणों और विशेषज्ञों के अनुसार पिछले डेढ़ से दो दशकों की तुलना में इस बूटी का समय करीब दो माह तक खिसक गया है तो कम बारिश और बर्फ से उत्पादन कम हो रहा है।
पिछले साल के बाद इस साल भी हालांकि बारिश कमइ हुई है और ऐसे में कुछ उत्पादन कम होने की संभावना है। अनेक प्रकार की दवाईयों में प्रयोग होने वाली गुच्छी एक दशक पहले तक भरपूर मात्रा में पायी जाती थी लेकिन पिछले कुछ सालों से इसका उत्पादन प्रभावित हो रहा है। सर्दियों में अच्छी बारिश और बर्फ होने पर ही इसका अच्छा उत्पादन हो रहा है और नमी के गायब होते ही उत्पादन कम हो रहा है। जैव विविधता के तहत विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों पर अध्ययन करने वाले जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण और विकास संस्थान ,मौहल की राज्य ईकाई के वैज्ञानिकों के अनुसार इस पर भी नजर रखी जा रही है। वैज्ञानिक डॉ सरला शासनी के अनुसार गुच्छी ग्रामीणों की आय का बड़ा साधन है लेकिन मौसम पर निर्भर रहती है।
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