बहस के मजमून बहुत हैं

By: Feb 21st, 2024 12:05 am

बजट के मजमून अब विपक्ष की कचहरी में गूंजने लगे, तो प्रदेश की चिंताएं समझी जानी चाहिएं। हालांकि बजट ने जनप्रतिनिधियों की खुशामद में वार्ड पंच से जिला परिषद तक सदस्यों के मानदेय को बढ़ा दिया या विधायक प्राथमिकता निधि को सींच दिया, लेकिन विपक्ष के पास पूछने और आपत्ति लगाने के लिए मजमून बहुत हैं। कुछ प्रश्नों की तासीर में महज विरोध है, तो कहीं जानकारियों के गुंबद तक गूंज पहुंच रही है। उदाहरण के लिए नाचन के विधायक ने सरकार से यह जानकारी ले ली कि प्रदेश में वैट लीजिंग पर 18 वोल्वो बसें आज भी चल रही हैं, लेकिन इनसे जुड़े कई सवाल अभी बाकी हैं। वैट लीजिंग के आधार पर गुणवत्ता के प्रश्न अगर पूछे जाएं तो वोल्वो बस सेवाओं का नाम बदनाम हो रहा है। पर्यटक स्थलों या एयरपोर्ट के लिए चल रहीं ऐसी बसों का हुलिया क्यों यात्री को निराश कर रहा है। प्रदेश में निजी वोल्वो सेवाओं के आगे एचआरटीसी क्यों हार रही, इसका भी तो जवाब चाहिए। बजट सत्र के माध्यम से हम प्रदेश, प्रदेश की प्राथमिकताएं, सत्ता-विपक्ष के द्वंद्व, सत्ता के विभिन्न पहलू और इनमें चमकते विधानसभा क्षेत्रों के इरादे देख सकते हैं। बहस से नीतियों के आगोश में बैठे सपने और सपनों का प्रदेश दिखाई देता है। ऐसे ही एक प्रश्न के उत्तर में शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर जब बताते हैं कि सुजानपुर के कालेज में पीजी कक्षाएं शुरू हो जाएंगी, तो सवाल यह कि मटौर या लंज के कालेज में क्यों नहीं। हम हर कालेज को पोस्ट ग्रेजुएट बना देंगे, लेकिन छात्र को अध्ययन के कक्ष में शायद ही स्तरोन्नत कर पाएंगे। हिमाचल में विश्वविद्यालयों, मेडिकल कालेजों और इंजीनियरिंग कालेजों की बाढ़ के बावजूद हमने हासिल क्या किया। एक प्रदेश जिसकी प्रति व्यक्ति आय देश की औसत से ऊपर और जो देश के प्रमुख राज्यों की कतार में कतई गरीब प्रांत नहीं है, लेकिन सरकार के आचरण में हम गरीबी का कालीन बिछाकर सरकारी धन से दस्तकारी कर रहे हैं। हैरानी यह कि पक्ष और विपक्ष के बीच गारंटियों की तकरार पर प्रदेश का भविष्य देखा जा रहा है, जबकि आत्मनिर्भरता के सवाल पर यह क्यों न पूछा जाए कि इस दरियादिली की जरूरत क्या है।

महिलाओं को पंद्रह सौ रुपए देने की गारंटी पूरी की जाए या हिमकेयर के भुगतान को बजट तुरंत पूरा करे। प्रदेश की प्राथमिकताओं में कब पक्ष-विपक्ष के सुर एक होंगे। बेशक हर विधायक को अपने विधानसभा क्षेत्र के हित में प्रश्न पूछने होंगे, लेकिन प्रदेश के सवालों का नेतृत्व कौन करेगा। आपदा ने पिछले बजट के कई तहखानों में सिर छुपाने की कोशिश की, लेकिन वहां राज्य के वित्तीय आचरण में इसके लिए कोई जगह नहीं थी। आज भी एफसीए केसों में हमारा विकास फंसा है, लेकिन राजनीतिक कारणों से कभी यह सोचा ही नहीं गया कि पर्यावरण एवं वन संरक्षण कानून के नाम पर प्रदेश से हो रही ज्यादतियों के लिए क्या करें। इस दौरान हिमाचल के हक अगर आज केवल कांग्रेस की थाली में गिने जाएं, तो कल भाजपा की अमानत भी हो सकते हैं। कभी तो विधानसभा की बहस केंद्र से उलझे हिमाचल के मामलात पर एकजुटता से आगे बढऩे के मतैक्य में ढूंढा जाए। बेशक विपक्ष ठेकेदारों की पेमेंट पर संजीदा होकर सरकार से पूछ रहा है, लेकिन सरकारी निर्माण की गुणवत्ता पर कब दोनों पक्ष गंभीरता से विचार करेंगे। दरअसल प्रदेश की प्रगति में कई माफियाओं के घर बन रहे हैं। एक नया समुदाय हिमाचल की आन, बान, शान का प्रतीक हो रहा है। इसमें सफल राजनीतिज्ञ, नौकरशाह और सरकार के कारिंदे हर सत्ता में पैदा हो रहे हैं। आज भी हिमाचल की आय का छबील लोगों को शराब पिला रहा है और इसी की वजह से मिल्क सैस 90 करोड़ की उगाही कर रहा है। कब हमारे बजट की अदालत में स्वावलंबन का पक्ष सिद्ध होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App