भाजपा में रंगते नेता-कार्यकर्ता

By: Mar 30th, 2024 12:05 am

भर्तृहरि मेहताब बीजू जनता दल के संस्थापक सदस्य हैं और कटक से छह बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं। अब उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है। संभवत: वह अपनी परंपरागत सीट से ही, भाजपा उम्मीदवार के तौर पर, चुनाव में उतरेंगे। भाजपा ओडिशा की 21 लोकसभा सीटों में से 18 पर प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। भर्तृहरि को अब राजनीति में और क्या हासिल करना था कि उन्हें अपनी राजनीतिक निष्ठाएं बदलनी पड़ीं? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मेहताब मौजूदा दौर को ओडिशा की राजनीति में ‘परिवर्तन काल’ मान रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या अब बीजू पटनायक की विरासत और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की सत्ता का पटाक्षेप होने वाला है? हमें तो यह इतना आसान नहीं लगता, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी को वहां अपनी स्वीकृति स्थापित करनी है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बीच संवाद का एक सिलसिला चला था, जिसके संकेत थे कि भाजपा और बीजद में एक बार फिर गठबंधन हो सकता है। बहरहाल ऐसा न तो बीजद और न ही पंजाब में अकाली दल के साथ हो सका। दोनों ही क्षेत्रीय दल अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल से भाजपा के सहयोगी थे, लेकिन अब वे अलग-अलग चुनाव मैदान में हैं। ‘इस्पात किंग’ ओपी जिंदल की पत्नी एवं हरियाणा की पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल ने भी जीवन के अवसान-काल में, कांग्रेस के प्रति, अपनी राजनीतिक निष्ठाएं बदलीं और भाजपा में शामिल हो गईं। उनका अपना राजनीतिक प्रभाव आज भी है।

सांसद रहे उनके पुत्र नवीन जिंदल ने भी कांग्रेस का दामन छोड़ कर भाजपा से जुडऩे का निर्णय पहले ही कर लिया था। भाजपा ने इस आयातित नेता को कुरुक्षेत्र संसदीय सीट पर अपना प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। आम आदमी पार्टी के इकलौते लोकसभा सांसद सुशील कुमार रिंकू ने भी भाजपा के पाले में ज्यादा सुरक्षित महसूस किया है, लिहाजा अब वह जालंधर से भाजपा उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं। बहरहाल भाजपा में शरण लेने और उसके रंग में रंगने वालों की सूची बहुत लंबी है। महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण का उदाहरण अभूतपूर्व-सा है। ऐसा नहीं है कि लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है, तो राजनेता और उनके कार्यकर्ता पालाबदली में जुटे हैं। कमोबेश भाजपा में शामिल होने का सिलसिला तो 2014 से जारी है, जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री चुने गए थे। इधर यह सिलसिला कुछ तेज हुआ है। कांग्रेस, सपा, बसपा, आप और अन्य क्षेत्रीय दलों के हैवीवेट नेता, छिटपुट नेता, सांसद या विधायक आदि अपनी बुनियादी राजनीतिक विचारधाराओं को छोड़ कर भाजपा की शरण में आ रहे हैं। जाहिर है कि वे प्रधानमंत्री मोदी को ही अपना नेता मान रहे हैं और अब संघवादी सोच की राजनीति करने को तैयार हैं। नेताओं और दलों की कोई विचारधारा होती भी है अथवा नहीं? एक रपट के अनुसार, दूसरे दलों के 80,000 से अधिक राजनेता और उनके कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। यह आंकड़ा बेहद असामान्य है और बढ़ भी सकता है। भाजपा ने बाकायदा ‘ज्वाइनिंग कमेटी’ बना रखी है।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, राजीव चंद्रशेखर और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद आदि कमेटी के निर्णायक सदस्य हैं। शायद यह रपट भी इसी कमेटी के अधीन बनाई गई होगी! भाजपा भी प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक करिश्मे से संचालित पार्टी है, जहां उम्मीदवार का प्रभाव सीमित होता है। नवीन पटनायक से ममता बनर्जी तक, जगनमोहन रेड्डी से केजरीवाल तक नेतृत्व का ही प्रभाव रहता है, जो अंतत: वोट को आकर्षित करता है। भाजपा ने इस आम चुनाव में अभी तक एक-तिहाई सांसदों के टिकट काट दिए हैं। कहीं, कोई असंतोष या विरोध नहीं है। जो भाजपा में आयातित नेता हैं, उन्हें भी एहसास होगा कि सांसद या मंत्री पद थाली में सजा-सजाया मिलने वाला नहीं है। उसके बावजूद वे भाजपा में शामिल होते जा रहे हैं।


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