होली पर सजे बाजार, हर्बल गुलाल की बढ़ी मांग

By: Mar 23rd, 2024 12:59 am

पांवटा साहिब में होली के त्योहार पर सजी दुकानें, मुखौटों और पिचकारियों ने बढ़ाई दुकानों की रोनक

कार्यालय संवाददाता-पांवटा साहिब
रंगों का त्योहार होली खेलने को बेचैन पांवटा साहिब शहर के लोगों का इंतजार दो दिन बाद खत्म हो जाएगा। हालांकि होली पर मस्ती और एक-दूसरे को रंग लगाने के लिए लोग अभी से तैयारियों में जुट गए हैं। बाजार में रंगों की दुकानें भी सज गई हैं। इस बार लोगों में होली खेलने के लिए हर्बल गुलाल की मांग ज्यादा है। कलर की बिक्री बहुत ही कम हो रही है। शहर के मुख्य बाजारों में भी लगने वाली दुकानों पर पक्का रंग बहुत कम ही बिकता नजर रहा है। अधिकांश दुकानों पर गुलाल ही देखने को मिल रही है। बाजार में बिक रही अलग-अगल खुशबू वाली गुलाल की मांग भी अधिक है। व्यापारियों के अनुसार होली पर अब अधिकांश व्यापारी सहित आमजन भी अच्छी क्वालिटी वाली गुलाल की मांग कर रहे हैं। होली पर्व नजदीक आते ही शहर सहित गांवों में भी फाल्गुनी गीतों की गूंज सुनाई देने लगी है। साथ ही बाजार में पारंपरिक रस्म निभाने के लिए नन्हे दूल्हों की पगडिय़ों समेत कई सामान से दुकानें सजी हुई हैं। कई दुकानों पर नन्हें बालकों के लिए विभिन्न रंगों के डिजाइनों में नन्हें दूल्हों के कपड़े, पगडिय़ां, जूते, धोती, कमीज सहित कई आकर्षक सामग्री सजने लगी हैं। शहर में तिलक होली मनाने के लिए शहरवासी आतूर हैं। होली को लेकर बाजारों में रंगों की दुकानें सज गई हैं। शहर के कई जगह सूखे रंग, पिचकारियों की दुकानें लगी हैं। ज्यों-ज्यों होली के दिन नजदीक आ रहे हैं अभी ग्राहक थोड़े कम आ रहे हैं।

हालांकि इस बार व्यापारियों ने ग्राहकों की मांग को ध्यान में रखते हुए खुशबू वाली गुलाल मंगाई है। साथ ही दुकानों को मुखौटों और पिचकारियों से सजा रखा है। होली को दो दिन ही शेष रहे हैं, परंतु पांवटा बाजार में भीड़ थोड़ी कम है। होली को देखते हुए बाजारों में विभिन्न प्रकार की पिचकारियां उपलब्ध हैं। व्यापारियों ने बताया कि बदलते दौर के अनुसार लोग भिन्न-भिन्न प्रकार की पिचकारियां पसंद कर रहे हैं। अधिकांश बच्चे गणेश, डोरी मोन, टेंक, बंदूक, पिकाचू, भीम, डोरी मोन की पिचकारियां पसंद कर रहे हैं। वहीं छोटी लड़कियां बॉर्बी डोल, बर्ड, डक और शोल्डर टेंक की पिचकारियां अधिक पसंद कर रही हैं। साथ ही बाजार में एक से बढक़र एक मुखौटा लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। स्थानीय व्यापारियों के अनुसार साल दर साल पक्के रंग की मांग कम होती जा रही है। इस बार तो इनकी मांग पिछले साल से आधी रह गई है। सभी लोग त्वचा को लेकर जागरूक हो गए हैं। अब तो गांव में भी यह नहीं बिक रहा है। बिक्री कम होने का कारण माल भी कम मंगवाया जा रहा है।


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