पशुओं ने उजाड़े खेत…मेहनत पर पानी फिरता देख किसान हताश

By: Apr 5th, 2024 12:54 am

आवारा पशु बने सिरदर्द, पंचायत स्तर पर नहीं खुल पाए गोसदन, ऊना में 34 गोशालाओं में 3000 गोवंश को मिला आश्रय

नगर संवाददाता,ऊना
हिमाचल प्रदेश में दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां किसानों को बेसहारा पशुओं से मुक्ति दिलाने के दावे तो करती है, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद इस उक्त मुददा ठंडा पड़ जाता है। लंबे समय से सरकारों द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर पशुशालाएं खोलने के दावे किए जा रहे है। लेकिन आज दिन तक कई पंचायतों में गौसदन नहीं खुल पाए हंै। अभी भी सैकड़ों की संख्या में गौवंश सडक़ों पर घूम रहा है, जो लोगों की कु्ररता का शिकार बन रहे हैं। जिला ऊना की 234 ग्राम पंचायतों में अभी तक केवल 34 गौशालाएं ही खुल पाई है। जिनका संचालन सामाजिक संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। यह सभी 34 गौशालाएं पूरी तरह से गौवंश से भरी हुई है। सरकारी आंकड़े के अनुसार इन गौशालाओं में करीब 3000 हजार गौवंश को आश्रय दिया गया है। जबकि अभी भी 1200 मवेशी सडक़ों पर घूम रहा है।

पशुपालन विभाग का कहना है कि विभाग द्वारा मवेशियों को सडक़ों पर से पकडक़र गौशाला में पहुंचाया जाता है, लेकिन पंजाब सहित स्थनीय लोग अपने पशुओं को सडक़ पर छोडऩे से बाज नहीं आ रहे है। यहीं नहीं उक्त लोग विभाग द्वारा पशुओं पर लगाए गए टैग को भी कानों सहित काटकर पशुओं के साथ कु्ररता कर रहे है। जिला ऊना में ही कई स्थानों पर झुंडों के रुप में बेसहारा पशु घूम रहे है। इन बेसहारा पशुओं को आश्रय देने के लिए अभी तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हो पाए हैं। हालांकि सरकार ने कुछ जगहों पर गौशालाएं खोली है, लेकिन पशुओं की भारी संख्या होने के कारण अधिकतर पशुओं को अभी तक गौशालाओं में नहीं पहुंचाया जा सका है। ऐसे में बेसहारा पशु खेतों में फसलों को चट कर रहे है। जिससे किसान भारी परेशान है। कई दशकों से चली आ रही किसानों की इस समस्या का समाधान कोई भी सरकार नहीं कर पाई है।

जिला की हर पंचायत में गौसदन खोलने की प्रक्रिया तो शुरु की गई, लेकिन फिर भी अधिकत्तर गांवों में अब तक गौसदन नही खुल पाए हैं। कई गांवों में गौसदन बनाने के लिए सरकारी भूमि नही है तो कई पंचायते अपनी भूमि को सरकार के नाम दर्ज करवा पाई हैं। जिसके चलते ग्रामीण स्तर पर कई उलझनो के कारण अब तक गौसदन नही बन पाए हैं। हर पंचायत में गौसदन न बन पाने से आवारा पशु फसलों को नष्ट कर रहे हैं। यहीं नहीं अब बेसहारा सडक़ हादसों का कारण बनने लगे हैं। इसके अलावा राहगीरों पर हमला कर बुरी तरह से घायल तक कर रहे हैं। वहीं जिला में आवारा पशुओं की बदौलत कई मौते भी हो चुकी हैं। हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से आवारा पशुओं से निजात दिलाने के लिए बाड़बंदी योजना को भी शुरू किया गया था। लेकिन इस योजना का लाभ भी किसान तक नहीं पहुंच पाया है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसानों का हाल क्या है।

रात के अंधेरे में पंजाब के लोग छोड़ रहे मवेशी

जिला के सीमावर्ती ईलाकों में तो पड़ोसी राज्यों के लोग भी आवारा पशुओं को जिला की सीमा के अंदर छोडक़र चले जाते हैं। जिसके चलते भी आवारा पशुओं की संख्या में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। चुनावों में हर बार आवारा पशुओं का मुद्दा उठता है, लेकिन इस समस्या का स्थाई हल अभी तक नही हुआ है। अगर सत्ता में आने वाले नेता आवारा पशुओं की समस्या का हल करते, तो निश्चित तौर पर किसानों को आत्मनिर्भर बनने के लिए दर-दर की ठोकरें नही खानी पड़ेंगी।

बेसहारा पशुओं के कारण बढ़े सडक़ हादसे

जिला ऊना में बेसहारा पशु सडक़ों पर मंडराते आम देखे जा सकते हैं। बेसहारा पशु जहां फसलों को चट कर रहे हंै, वहीं सडक़ हादसों का कारण भी बन रहे है। अभी तक कई लोग बेसहारा पशुओं के चलते सडक़ हादसों में अपनी जान गवां चुके हैं।

सरकारी आंकड़े अनुसार केवल 1200 पशु सडक़ों पर

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देखा जाए तो सडक़ों पर केवल 1200 बेसहारा पशु ही बचे हैं। जबकि 3000 के करीब पशुओं को आश्रय प्रदान किया जा चुका है। लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही बयां कर रही है।


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