सहकारी बैंक जमाकर्ताओं के हित सुरक्षित नहीं

By: Apr 16th, 2024 12:05 am

डिपाजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन एक्ट में सरकार ने जो बदलाव किया है, उसमें जमाकर्ता को बैंक डूबने की स्थिति में बहुत बड़ी राहत मिली है…

भारत के बैंकिंग क्षेत्र में अधिसूचित वाणिज्य बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु वित्त बैंक और सहकारी बैंक आते हैं। संविधान में बैंकिंग संघीय सूची में आने वाला विषय है। भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत 1904 में सहकारी समिति अधिनियम के पारित होने के साथ शुरू हुई। इसका उद्देश्य किसानों, कारीगरों और समाज के अन्य वर्गों के लोगों के विकास में मदद करने तथा बचत को प्रोत्साहन देने का था। देश के सहकारी ढांचे का विस्तार और विकास छठी और सातवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ। सहकारी बैंक एवं समितियां शहरी और गैर-शहरी दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों को ऋण की सुविधा प्रदान करती हैं। सहकारी बैंक, सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत होते हैं। वे आरबीआई द्वारा विनियमित होते हैं और बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 और बैंकिंग कानून (सहकारी समितियां) 1955 द्वारा शासित होते हैं। आरबीआई की इन पर निगरानी रहती है। सहकारी समितियों पर उनके सदस्यों का स्वामित्व होता है।

इनका नियंत्रण सदस्यों द्वारा ही किया जाता है, जो लोकतांत्रिक रूप से निदेशक मंडल का चुनाव करते हैं। ये सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत किए जाते हैं। ये सहकारी संस्थाएं हैं और इनको सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा निर्धारित नियमों के अधीन संचालित किया जाता है। आरबीआई के दिशा-निर्देश इन पर लागू नहीं होते। ये आम नागरिकों को साहूकारों और बिचौलियों से मुक्त करते हैं। सहकारी समितियां अपने सदस्यों को सस्ती दरों पर ऋण देती हैं। इनका उद्देश्य लाभ कमाना न होकर अपने सदस्यों को अच्छी सेवाएं देना है। सहकारी वित्तीय संस्थाओं ने ही देश के गांवों और कस्बों में आम लोगों को बैंकिंग से जोडक़र अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सहकारी वित्तीय संस्थाओं के संचालन में कमियों के कारण ये ग्रामीण लोगों के लिए इतनी भी लाभदायक सिद्ध नहीं हुईं। ये छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा करने में असफल रहीं। बहुत से लोग अभी भी इनके साथ जुड़ नहीं पाए, जिसके कारण हैं : ऋण हेतु निश्चित सुरक्षा प्रदान करने में लोगों की अक्षमता, भूमि रिकॉर्ड का कुप्रबंधन, ऋण चुकाने में सदस्यों की अयोग्यता, पेशेवर प्रबंधन की कमी, नियंत्रण की समस्या आदि। देश के सभी राज्यों में सहकारी बैंकों एवं समितियों में आम तौर पर घोटाले होते रहते हैं। इन घोटालों के कारण हैं : राजनीतिक हस्तक्षेप, प्रबंधन में अक्षमता, रेगुलर ऑडिट का अभाव, निष्पक्ष एवं समयबद्ध जांच का अभाव, बैंक के कर्मचारियों द्वारा ही घोटाले, गलत तरीके से ऋण देना, बैंक सदस्यों को सीमा से अधिक तथा लंबी अबधि के ऋण देना तथा डिफाल्टर को दोबारा ऋण देना आदि।

देश में सहकारी बैंकों के बड़े घोटालों में पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक भी था। इस पर कार्रवाई करते हुए आरबीआई ने उसे अगले 6 महीने तक किसी भी प्रकार का कार्य न करने का आदेश दिया था तथा साथ में आरबीआई ने पीएमसी बैंक के ग्राहकों के लिए पैसे निकालने की सीमा भी निर्धारित की थी। इस बैंक की जमा राशि 11617 करोड़ रुपए थी। यह सभी सहकारी बैंकों से बड़ा बैंक था। देश का सबसे बड़ा बैंक जिस प्रकार संकट का सामना कर रहा है, यह देश की सहकारी बैंक की प्रणाली हेतु चिंता का विषय है। अभी हाल ही में हिमाचल के सोलन जिले में एक अर्बन सहकारी समिति की प्रबंध कमेटी के सदस्यों ने 18 करोड़ रुपए का घोटाला किया। कमेटी ने अपने नजदीकी रिश्तेदारों को सीमा से अधिक ऋण दिया। हालांकि ये पहले भी कई बार ऋण न चुकाने के दोषी थे। इससे सहकारी सभा के 2800 जमाकर्ता अपनी जमा पूंजी वापस लेने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। इनमें बहुत सी औरतें हैं। एक जमाकर्ता जो सेना से सेवानिवृत्त है, उसने 13 लाख रुपए निवेश किए थे। उसकी पत्नी कैंसर से पीडि़त है। उसने कहा कि मैंने अपने पूरे जीवन की पूंजी निवेश की थी, उसको वापस लेने की जंग हार गया हूं, हालांकि मैंने 1962, 1965 और 1971 की लड़ाइयां जीती हैं। इस घोटाले का पता ऑडिट में लगा। इसी तरह का घोटाला मंडी के एक अर्बन बैंक में भी हुआ था।

उसमें भी प्रबंधन कमेटी ने नियमों को ताक पर रखकर ऋण जारी किए थे। एक और घोटाला है जिसमें एक सहकारी बैंक के पूर्व चेयरमैन को प्रवर्तन निदेशालय ने 250 करोड़ रुपए के घोटाले में पकड़ा था। उसने नियमों का उल्लंघन कर ऋण अपंजीकृत कंपनी को जारी किया था। सहकारी समितियों में तो ये घोटाले आम हैं। सहकारी बैंकों में हो रहे घोटालों को ध्यान में रखते हुए बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट में संशोधन किया गया। सहकारी बैंकों के प्रबंधन, पूंजी, ऑडिट और लिक्विडेशन को आरबीआई के रेगुलेटरी दायरे में शामिल किया गया है। वित्त मंत्री ने जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए इस बिल को लाया है। उन्होंने पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक के संकट का उल्लेख किया। सहकारी बैंकों को बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के कई प्रावधानों से छूट थी। परन्तु अब 2020 का बिल सहकारी बैंकों पर वाणिज्यिक बैंकों की तरह ही लागू होगा। जब सहकारी बैंको एवं समितियों में घोटाला होता है तो जमाकर्ताओं को अपने पैसे के लिए ही इंतजार और तड़पना पड़ता है। इस समस्या का समाधान बहुत जरूरी है ताकि जमाकर्ताओं को परेशानी का सामना न करना पड़े।

इसके लिए सहकारी बैंक की एवं सहकारी समितियां आरबीआई द्वारा विनियमित एवं शासित होनी चाहिएं। राज्य सरकारें आरबीआई के दिशा निर्देशों के अनुसार काम करें। सरकार द्वारा पुन:पूंजीकरण के लिए आरबीआई को दी गई राशि का उपयोग, संकट में आए इन सहकारी बैंकों एवं समितियों पर भी करना चाहिए। सहकारी बैंकों एवं समितियों में हो रहे घोटालों को देखते हुए यह भी आवश्यक है कि इनके ढांचे एवं संचालन में बुनियादी परिवर्तन किए जाएं। डिपाजिट इंश्योरेंस क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन (डीआईसीजीसी) एक्ट में सरकार ने जो बदलाव किया है, उसमें जमाकर्ता को बैंक डूबने की स्थिति में बहुत बड़ी राहत मिली है। यही एक्ट सहकारी समितियों पर भी लागू हो। पांच लाख रुपए तक की जमा राशि की जगह पूरी जमा राशि इंश्योरड/सुरक्षित होनी चाहिए। इन उपायों से ही सहकारी बैंकों एवं सहकारी समितियों में लोगों का विश्वास बन पाएगा। तभी उनका सही संचालन होगा।

सत्यपाल वशिष्ठ

स्वतंत्र लेखक


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