धर्म की श्रेष्ठता

By: May 4th, 2024 12:14 am

स्वामी विवेकानंद
गतांक से आगे…
वहां इस वेदांती संन्यासी ने अपने हृदय की सहजता के साथ भाइयो और बहनों कहकर संबोधित किया था। मानव मात्र में ब्रह्म को देखने वाले इस संन्यासी के लिए जो सरल था, पश्चिमी लोगों के लिए मुश्किल था। इस एक संबोधन से ही स्वामी जी ने संचार कर दिया था। स्वामी जी की मीठी वाणी से जो अमृत की वर्षा हुई, उससे सभी के दिल शांत रस में डूब गए। उन्होंने धर्म द्वंद्व के परित्याग, स्वाधीनता के नाम पर स्वेच्छाचारित के परित्याग, जातीयता और राष्ट्रीयता के नाम पर दूसरे पर अत्याचार, धर्म के नाम दूसरों के धर्म पर आक्रमण का निषेध आदि उच्च उदार मानव आदर्शों की प्रस्थापना पर बल दिया। स्वामी जी का लोक विख्यात भाषण होने के बाद कुछ लोगों ने यह कहकर विरोध किया कि वर्तमान हिंदू धर्म वही नहीं है, जिसकी प्रस्थापना स्वामी जी ने की है। उन्होंने यह भी कहा कि मूर्ति पूजा करने वाले हिंदू स्वामी विवेकानंद की मूर्ति पूजा की दार्शनिक व्यवस्था से किंचितमात्र भी संबंधित नहीं हंै। इस तरह का अनर्गल प्रचार करने वाले और हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा से विचलित हमारे ही देशवासी ईसाई गुरु थे। उन्होंने धर्मसभा के अधिकारियों को यहां तक कहा कि स्वामी विवेकानंद को सभा से निकाल बाहर कर दें।

सभा के आयोजकों ने उनकी अव्यावहारिक बातों को मानने से इंकार कर दिया और स्वामी को प्रतिपक्षियों के जरिए उठाई गई आपत्तियों का उत्तर देने के लिए कहा। वेदांत दर्शन के साथ प्रचलित हिंदू धर्म का क्या संबंध है, इसका विवेचन स्वामी जी ने आलोचना सभा में 22 सितंबर को किया। प्रतिपक्ष की आपत्तियों का युक्ति और तर्क से खंडन करते हुए उन्होंने हिंदू धर्म की श्रेष्ठता प्रमाणित की। 25 सितंबर को स्वामी विवेकानंद जी ने हिंदू धर्म का सार नामक भाषण दिया। भाषण करते समय उन्होंने बीच में रुककर अपने श्रोताओं से पूछा, इस सभा में कितने लोग ऐसे हैं जो हिंदू धर्म व शास्त्र के साथ भली प्रकार परिचित हैं? वे लोग हाथ उठाएं। इस पर सात हजार लोगों में से तीन चार लोगों ने हाथ उठाए। इस पर स्वामी जी व्यंगय के साथ बोले, और फिर आप हमारे हिंदू धर्म की आलोचना करते हैं। इस बात पर सभी लोग चुप थे और हिंदू धर्म की निंदा करने वालों ने शर्मिंदगी से सिर झुका लिया।

अंत में 27 सितंबर को धर्मसभा के अंतिम अभिवेशन में स्वामी जी ने जोर से कहा, जो लोग इस धर्म सभा में शामिल हैं और प्रवचन सुन रहे हैं, अगर वे दिल में ऐसी भावना रखेंगे कि कोई विशेष धर्म किसी की प्राप्ति का साधन है और अन्य धर्म बेकार हैं, वे सभी लोग वाकई में दया के लायक हैं। अपने गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस के सर्वधर्म समन्वय का संदेश देते हुए उन्होंने कहा, प्रत्येक जाति प्रत्येक धर्म दूसरी जातियों और धर्मों के साथ आदान-प्रदान करेगा, कुछ लेगा और कुछ देगा, लेकिन प्रत्येक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करेगा। हर मनुष्य अपनी-अपनी अंतर्निहित शक्ति के अनुसार आगे बढ़ेगा। आज से हमें धर्म ध्वजाओं पर यह लिख देना चाहिए कि युद्ध नहीं सहयोग, ध्वज नहीं एकात्मता, भेद नहीं सामंजस्य। पूरे अमरीका में स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्धि की दुंदुभि बजने लगी। अनेक धर्म जिज्ञासु अपने परिचित होने, धर्म तत्त्व की चर्चा करने तथा शंकाएं दूर करने के लिए स्वामी जी के पास आने लगे। शहर के अखबार स्वामी जी की चर्चाओं से भरने लगे। – क्रमश:


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