प्रदेश में रहकर क्यों नहीं आ रहे उत्कृष्ट परिणाम

By: May 5th, 2018 12:10 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

राज्य में धर्मशाला व बिलासपुर खेल छात्रावासों के कारण कबड्डी में हिमाचल को राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर के विजेता खिलाड़ी मिले हैं। इस सबके पीछे खेल छात्रावासों में नियुक्त प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का बहुत प्रभाव रहा है…

हिमाचल प्रदेश में खिलाड़ी बनाने के लिए तो खेल विभाग व खेल संघ जरूर काम कर रहे हैं, मगर चैंपियन बनाने के नाम पर हिमाचल प्रदेश में बहुत कम प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है। खेल छात्रावासों के कुछ ईमानदार कर्मठ प्रशिक्षकों तथा निजी क्षेत्र में कुछ जुनूनी प्रशिक्षक के कारण हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं की पदक तालिका में जरूर कभी-कभार देखा जाता रहा है, मगर राज्य खेल विभाग व खेल संघों द्वारा अभी तक कोई भी ऐसी योजना नहीं बनाई जा सकी, जो राज्य के खिलाडि़यों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करवा सके। राज्य में जो प्रशिक्षक अच्छा परिश्रम कर रहा होता है, उसके पीछे जरूर कुछ लोग नकारात्मक सोच के कारण पड़ जाते हैं। राज्य में धर्मशाला व बिलासपुर खेल छात्रावासों के कारण कबड्डी में हिमाचल को राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर के विजेता खिलाड़ी मिले हैं। इस सबके पीछे खेल छात्रावासों में नियुक्त प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का बहुत प्रभाव रहा है।

हिमाचल की लड़कियां कबड्डी में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। पिछले कुछ वर्षों से महिला हैंडबाल में भी हिमाचल कनिष्ठ व वरिष्ठ महिला हैंडबाल राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। इस सबके पीछे बिलासपुर की स्नेहलता का प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रमुख रहा। स्नेहलता तथा उसका पति सचिन चौधरी हिमाचली लड़कियों को हैंडबाल में काफी ऊपर तक उत्कृष्ट प्रदर्शन करवाने में कामयाब रहे हैं। 2018 जकार्ता एशियाई खेलों के लिए लगे हैंडबाल के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में स्नेहलता की छह लड़कियां हिस्सा ले रही हैं। आशा करते हैं कि हिमाचल की दो-तीन लड़कियां जरूर भारतीय टीम का एशियाई खेलों में प्रतिनिधित्व करेंगी। हिमाचल प्रदेश में उत्कृष्ट खेल परिणाम देने के लिए खेल विभाग के पास कोई भी योजना नहीं है। हिमाचली खेल छात्रावास में नियुक्त प्रशिक्षकों  पर कोई भी निरीक्षण न होने के कारण वहां केवल वही खेल राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने खिलाड़ी पहुंचने में कामयाब रहा है, जिस खेल के प्रशिक्षक ईमानदार व परिश्रमी हैं। एथलेटिक्स व कबड्डी को छोड़कर आज किसी भी खेल में हिमाचल के खेल छात्रावास राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन नहीं करवा पा रहे हैं। एक समय था जब वालीबाल में भी हिमाचल के कई खिलाडि़यों को भारतीय खेल प्राधिकरण के खेल छात्रावासों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक का सफर सफलतापूर्वक पूरा करवाया था। निजी क्षेत्र में रहकर एथलेटिक्स जूडो में हमीरपुर तथा मुक्केबाजी में सुंदरनगर से कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल का नाम कई वर्षों तक पदकतालिका में चमकाते रहे हैं। सरकार से बिना किसी सहायता प्राप्त किए इन तत्कालीन प्रशिक्षकों ने कई खिलाडि़यों को राष्ट्रीय पदक विजेता तो बनाया, मगर जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों का हिस्सा बनने लगे तो उस समय उनको पीछे करने में खेल के कई दुश्मनों ने हाथ मिला लिया था। आज जब हिमाचल प्रदेश की छह हैंडबाल खिलाड़ी राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर का हिस्सा बिना किसी सरकारी सहायता के बन गई हैं तो स्नेहलता के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी बाधा पहुंचाने के लिए कई नकारात्मक लोग उन्हें कई तरह से परेशान करने लग गए हैं। खेल प्रशिक्षण कार्य एक स्वयंसेवी कर्म है। प्रशिक्षण वही कर सकता है, जिसका शौक खेल है। प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत समय लेने वाला, लगन व मेहनत का काम है। पढ़ाई में तो हर सौ विद्यार्थियों में कोई एक नब्बे प्रतिशत अंक लेने वाला मिल जाता है, पर खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने की प्रतिभा वाला खिलाड़ी लाखों में कहीं किस्मत से ही मिल पाता है। इसलिए पता नहीं कहां और किसके घर में खेल प्रतिभा पैदा हो जाए।

अगर हम निःस्वार्थ भाव से उस खेल प्रतिभा को भी निखारेंगे तो वह असमय ही दम तोड़ देती है। इसलिए खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम को सबका साथ चाहिए होता है। आज जब स्नेहलता जैसे शौकिया प्रशिक्षक निःस्वार्थ भाव से प्रशिक्षण देकर हिमाचल को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिला रहे हैं, उनकी सहायता हम सबको करनी चाहिए न कि हिमाचल को गौरव दिलाने वाली प्रतिभाओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन में अड़चन का भागीदार बनकर अपनी नकारात्मक मानसिकता का परिचय देना है। खिलाड़ी प्रदेश व देश सबका साझा होता है, इसलिए उनकी सहायता व हौसलाअफजाई हर नागरिक का कर्त्तव्य बनता है। हिमाचल का हर खेल प्रेमी चाहता है कि इस पहाड़ के बच्चे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तिरंगे को सबसे ऊपर उठाने में समर्थ बनें और उनको तैयार करने वालों को हरसंभव सहायता प्रदान करना हर हिमाचली व हिमाचल सरकार का कर्त्तव्य भी बनता है।

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