मोदी भाईजान

By: Jun 8th, 2019 12:04 am

वरिष्ठ कांग्रेस नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा चुनाव में सिर्फ 52,000 वोट पाने वाले प्रत्याशी सलमान खुर्शीद के आवास पर ‘ईद मिलन’ का पाक मौका मनाया जा रहा था। खूब भीड़ थी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक सदस्य बोल रहे थे- ‘मोदी ने तो पांच करोड़ मुस्लिम नौजवानों को वजीफा देने का एलान किया है, लेकिन हमारी पार्टी 72,000 रुपए सालाना की आर्थिक मदद देने का भरोसा पैदा नहीं कर पाई। मुसलमान ‘मोदी भाईजान’ के नारे क्यों नहीं लगाएगा?’ यह सवाल अब सच में तबदील होने लगा है। मोदी सरकार ने एलान किया है कि वह आगामी पांच सालों के दौरान पांच करोड़ अल्पसंख्यकों को वजीफे मुहैया कराएगी। अल्पसंख्यकों में सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई और पारसी समुदाय भी आते हैं। चूंकि अल्पसंख्यकों में मुसलमान सबसे बड़े बहुसंख्यक हैं, लिहाजा यही व्याख्या उचित है कि मोदी सरकार का फोकस मुसलमानों पर ही है। इन वजीफों में 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं को दिए जाने हैं। ‘जियो पारसी’ नाम से इस समुदाय की घटती संख्या के मद्देनजर सरकार अलग से काम करेगी। चूंकि भाजपा-एनडीए संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपना सरोकार स्पष्ट किया था कि अभी तक अल्पसंख्यकों के साथ जो छल किए गए हैं, उन्हें खौफ में रखा गया है, उनमें अब छेद किया जाएगा। दृष्टि और सोच साफ है। अब मोदी की नई सत्ता के पांच सालों के दौरान उस वर्ग को जीतने की कोशिश रहेगी, जो अभी तक भाजपा-मोदी से बेहद दूर रहा है या कुछ तबका नफरत के भाव तक रखता आया है, लेकिन अब मोदी सरकार की नई मुस्लिम योजनाओं और नीतियों के बाद राजनीतिक धु्रवीकरण की शुरुआत हो सकती है। सरकार ने तय किया है कि अब शिक्षा, रोजगार, सशक्तिकरण और कौशल विकास के तहत मुसलमानों के ‘अच्छे दिन’ लाए जाएंगे। त्रासद स्थिति है कि मुसलमानों में करीब 2.75 फीसदी ही ग्रेजुएट और उससे ज्यादा शिक्षित हैं। सरकारी नौकरियों में भी इतनी-सी ही भागीदारी है। मुस्लिमों में करीब 25 फीसदी बच्चे तो स्कूल जाना ही छोड़ देते हैं। बेशक मुसलमानों को बेहतर तकनीशियन, कलाकार माना जाता रहा है, लेकिन उनके औसतन हालात ‘गरीबी’ के रहे हैं। अब ‘मोदी भाईजान’ उन्हें इन हालात से उबारना चाहते हैं। गौरतलब यह भी है कि 2006 में यूपीए सरकार ने मुसलमानों के हालात पर सच्चर कमेटी की रपट पेश की थी। उसे आज तक पूरी तरह लागू क्यों नहीं किया गया? अब मोदी सरकार नए सिरे से कवायद करने जा रही है। कुछ योजनाएं तो पिछले कार्यकाल में ही शुरू की गई थीं। सवाल यह है कि क्या मुसलमान अब मोदी सरकार और भाजपा पर भरोसा करना शुरू करेंगे? सरकार ने 2018-19 के दौरान अल्पसंख्यकों के लिए 4700 करोड़ रुपए का बजट तय किया था। अब जुलाई में नया बजट आना है। उसमें स्पष्ट होगा कि बजट कितना बढ़ाया जाता है? ‘नया सवेरा’ योजना के तहत मुसलमान युवाओं को मुफ्त कोचिंग मुहैया कराई जाएगी। विदेश में पढ़ाई के लिए जो कर्ज लेना पड़ेगा, उस पर ब्याज में सरकार मदद करेगी। ‘सीखो और कमाओ’ में अल्पसंख्यकों के लिए ‘कौशल विकास’ का बंदोबस्त कराया जाएगा। सरकार चाहती है कि मुसलमान स्वावलंबी बनें और अपने साथ कुछ और को भी रोजगार दें। ‘हमारी विरासत’ के तहत पुराने इतिहास और स्मारकों को संरक्षित करने की योजना है। मुस्लिम महिलाओं के लिए ‘नई रोशनी’ एक विशेष योजना है, जिसके तहत उनमें नेतृत्व क्षमता के विकास की कोशिश की जाएगी। पिछले दिनों मुस्लिम नेता ओवैसी ने एक जुमला उछाला था कि मुसलमान इस देश में हिस्सेदार हैं, किराएदार नहीं हैं। यदि मोदी सरकार ईमानदारी से मुसलमानों के लिए बनाई जा रही योजनाओं को लागू करती है और तटस्थ भाव से सियासी जुड़ाव करने में कामयाब होते हैं, तो एक पुराना भ्रम टूट सकता है। भाजपा हिंदूवादी पार्टी ही नहीं, मुसलमानों के लिए भी चिंतित होकर सरकार चला सकती है। मुसलमान किसी का ‘बंधक वोटर’ नहीं है। जो उसे विकास के मौके मुहैया कराएगा, मुसलमान उसी का समर्थन कर सकता है। इससे सांप्रदायिक मिथक भी ध्वस्त होंगे, लेकिन पहली शर्त यह है कि जो मुसलमानों के लिए घोषित किया गया है, वह शिद्दत से उन्हें दिया जाए।


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