स्थानीय निकाय चुनाव का पंचवर्षीय महायज्ञ

समाज में प्रतिभाशाली, शिक्षित तथा व्यवहार कुशल लोगों को समाज सेवा के माध्यम से राजनीति के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। यह दीन-दुखियों, पीडि़तों, वंचितों तथा शोषितों  के आंसू पोंछने  का एक माध्यम है। संपूर्ण हिमाचल प्रदेश में 17, 19 तथा 21 जनवरी 2021 को पंचायती चुनाव रूपी एक पंचवर्षीय महायज्ञ हो रहा है। इसमें सभी को अपनी आहूति डालनी है। जागरूक मतदाताओं को चाहिए कि सोच-विचार कर योग्य, ईमानदार, सक्रिय समाज सेवकों व ऊर्जावान प्रतिनिधियों को मतदान कर सफल बनाएं…

हिमाचल प्रदेश में इस समय चुनावी हवाएं चल रही हैं। प्रदेश में स्थानीय निकायों तथा ग्रामीण पंचायत चुनावों ने सर्दी के मौसम में प्रदेश में गर्माहट पैदा कर दी है। अभी हाल ही में स्थानीय नगर निकाय चुनाव संपन्न हुए जिसमें पचास नगर परिषदों तथा नगर पंचायतों के मतदाताओं ने अपने-अपने वार्ड काउंसलरों का चयन किया जो आने वाले समय में परिषदों तथा नगर पंचायतों के लिए अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव कर विधिवत गठन करेंगे। हालांकि स्थानीय निकायों तथा पंचायतों के चुनाव किसी भी राजनीतिक पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़े जाते, तथापि इन प्रतिनिधियों के चयन में विभिन्न राजनीतिक दलों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ रहता है। मतदान से चयनित इन प्रतिनिधियों के चुनाव परिणाम घोषित होते ही विभिन्न राजनीतिक दल विजेता प्रतिनिधियों को अपने समर्थक या अपनी पार्टी के सदस्य होने का दावा करने लगते हैं। स्थानीय निकायों के चुनाव के बाद अब प्रदेश की ग्राम पंचायतों, खंड स्तरीय  समितियों, जिला परिषदों, तत्पश्चात शिमला, धर्मशाला तथा नए घोषित किए गए पालमपुर, मंडी तथा सोलन नगर निगमों के चुनाव होना निश्चित हैं। ये सभी चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं।

ये चुनाव बिजली, पानी, सड़क, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा विकास की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये चुनाव चुने हुए प्रतिनिधियों से पिछले पांच वर्षों के कार्य का हिसाब-किताब लेते हैं, वहीं पर योग्य व कर्मठ उम्मीदवारों से अगले पांच वर्षों की विकासात्मक योजनाओं तथा उनके संकल्पों की जानकारी लेते हैं। इन चुनावों में स्थानीय प्रतिनिधियों के माध्यम से विकास की इबारत लिखी जाती है। पांच वर्ष के पश्चात मिलने वाले इस अवसर में मतदाताओं को उम्मीदवारों को जांचने, परखने तथा चुनने का मौका मिलता है। भारतीय लोकतंत्र की संवैधानिक व्यवस्था में  प्रत्येक वयस्क नागरिक को मतदान करने तथा चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त है। यह मौलिक अधिकार होने के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य भी है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की खूबसूरती है कि हम स्वतंत्र रूप से मताधिकार का प्रयोग कर अपनी मजऱ्ी के प्रतिनिधि चुन सकते हैं। ग्रामीण विकास तथा सुधारों के मद्देनज़र फैसले लेने के लिए ग्राम पंचायतें स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों की महत्त्वपूर्ण योजनाओं को स्थानीय तथा ग्रामीण स्तर पर लागू करने के लिए स्थानीय निकायों तथा ग्राम पंचायतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। भारत में पंचायती राज प्रणाली, स्थानीय स्वशासन तथा लोगों द्वारा निर्वाचित व्यक्तियों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन करती हैं।

 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दी गई है। इस अधिनियम के अनुसार त्रि-स्तरीय ढांचे की स्थापना की गई है, जिसमें ग्राम पंचायत, खंड स्तरीय पंचायत समिति तथा जि़ला परिषद की व्यवस्था का प्रावधान है। इसके अंतर्गत पंचायतों का गठन, पांच वर्ष बाद नियमित चुनाव, अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए जनसंख्या के अनुपात से आरक्षण, महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इस महत्त्वपूर्ण संशोधित अधिनियम में पंचायतों को स्वशासन की संस्थाओं के रूप में काम करने हेतु आवश्यक शक्तियां और अधिकार प्रदान करने के लिए राज्य सरकारों को अधिकार प्रदान किया जाता है। पंचायती राज प्रणाली देश को सुदृढ़, समृद्ध, विकसित तथा देश के असंख्य निर्धन परिवारों तक विकास का वास्तविक लाभ पहुंचाने का एक माध्यम है। पंचायत चुनाव ग्रामीण स्तर पर लोगों को विकास तथा सहभागिता के लिए प्रेरित करते हैं। यह गांव तथा समाज का पंचवर्षीय भविष्य लिखने के लिए लोगों के पास एक सुनहरी अवसर होता है। यह पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा पूर्व में किए गए विकासात्मक कार्यों तथा भविष्य में किए जाने वाले संकल्पों का विश्लेषण करने का अवसर होता है। पंचायत चुनाव हमें अपने अधिकारों, कर्त्तव्यों तथा दायित्वों को निभाने के लिए प्रेरित करता है। पंचायत  चुनाव एक पंचवर्षीय महायज्ञ होता है जिसमें सभी जागरूक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर ग्रामीण विकास की परिभाषा लिखते हैं। यह चुनाव नेतृत्व की क्षमता पैदा करने की प्रयोगशाला है। ग्रामीण चुनाव युवाओं को भविष्य में नेतृत्व के गुणों से पोषित करता है। इस ग्रामीण चुनाव प्रणाली की प्रयोगशाला से कई बड़े-बड़े नेता, वार्ड मेंबर, प्रधान, बीडीसी मेंबर, बीडीसी अध्यक्ष, जिला परिषद सदस्य तथा पदाधिकारी बनकर विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री तक के पदों को सुशोभित कर चुके हैं। राजनीति समाज सेवा का एक माध्यम है। यह किसी को नीचा दिखाने या अपना प्रभाव तथा वर्चस्व बनाने के लिए नहीं है।

समाज में प्रतिभाशाली, शिक्षित तथा व्यवहार कुशल लोगों को समाज सेवा के माध्यम से राजनीति के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। यह दीन-दुखियों, पीडि़तों, वंचितों तथा शोषितों  के आंसू पोंछने  का एक माध्यम है। संपूर्ण हिमाचल प्रदेश में 17, 19 तथा 21 जनवरी 2021 को पंचायती चुनाव रूपी एक पंचवर्षीय महायज्ञ हो रहा है। इसमें सभी को अपनी आहूति डालनी है। जागरूक मतदाताओं को चाहिए कि सोच-विचार कर योग्य, ईमानदार, सक्रिय समाज सेवकों व ऊर्जावान प्रतिनिधियों को मतदान कर सफल बनाएं। मतदाताओं को चाहिए कि वे भी अपने वोट की कीमत समझें तथा किसी भी झूठे आश्वासन तथा प्रलोभन के झांसे में न आएं। मतदाताओं तथा उम्मीदवारों को चुनाव की गरिमा तथा पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए। मतदाताओं को विभिन्न पदों के लिए खड़े उम्मीदवारों को उनकी भविष्य की योजनाओं के बारे में भी चर्चा करनी चाहिए। ईमानदार, योग्य, शिक्षित, सक्रिय तथा ऊर्जावान उम्मीदवारों को चुनें। यह अवसर पांच वर्ष में एक ही बार आता है। इस अवसर का लाभ उठाएं तथा अपने गांव-समाज में विकास की परिभाषा लिखकर अपने जि़ला, प्रदेश तथा देश को उन्नति के शिखर पर पुनर्स्थापित करें।


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