विकास लाबरू आईएएस अधिकारी

इस शायरा ने अपनी एक गज़ल में लिखा है : ‘आगाज तो होता है, अंजाम नहीं होता। जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता।’ कई बार ऐसा लगता है जैसे मीना कुमारी ने ये शेर अपने और मशहूर शायर और गीतकार गुलज़ार के रिश्ते के बारे में कहा हो क्योंकि खुद उनकी जिंदगी की

उनकी इस कलम का सफर तभी शुरू हो गया था जब वह एडवर्ड कॉलेज पेशावर में पढ़ते थे। उनकी शायरी का संकलन ‘तन्हा-तन्हा’ कॉलेज के दिनों में ही छप गया था। पठान होने के कारण वो एक लंबे, खूबसूरत नौजवान थे। आवाज़ में गहराई थी। उर्दू और फारसी साहित्य में पेशावर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर थे,

विकास लाबरू आईएएस अधिकारी वो अपना आकलन करते हुए कहते हैं कि यदि उन्हें शराबनोशी की आदत न होती तो शायरी में जीवन दर्शन संबंधी समस्याओं को व्यक्त करने की उनकी क्षमता उन्हें एक वली, एक सिद्धपुरुष के रूप में स्थापित कर सकती थी। यह साहस भी तो कोई सिद्धपुरुष दिखा सकता है कि वो