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भारत में धार्मिक स्थलों का जब भी जिक्र आता है, तो एक स्थल, एक नाम बरबस ही अपनी और आकर्षित करता है। एक ऐसी नगरी जिसे धर्मनगरी माना जाता है। एक ऐसा स्थल जहां मां गंगा पथरीले रास्तों से मुक्त होती है। एक ऐसा स्थान जिसके घर-घर में उत्तर भारत के लोगों की वंश बेल

हिमाचल प्रदेश भारत के उत्तर दिशा की ओर हिमालय पर्वत के आंचल में बसा हुआ है। हिमाचल प्रदेश की देवभूमि पर कई देवालय व पुरातन इमारतें विद्यमान हैं। मंडी जनपद मंदिरों की नगरी छोटीकाशी के नाम से विश्वभर में अपनी पहचान रखता है। यहां स्थित पुरातन स्मारक किन्हीं अजूबों से कम नहीं है। कोलसरा चट्टान-

उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी उत्पन्ना है। इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख-शांति मिलती है। मृत्यु के पश्चात् विष्णु के परम धाम का वास प्राप्त होता है। विधि : व्रत रखने वाले को दशमी के दिन रात

भरमौर में एक गांव हैं संचुई, जिसे शिवजी के चेलों का गांव कहा जाता है। इस गांव में समय के साथ काफी बदलाव आया है, लेकिन यहां बने लकड़ी व स्लेटयुक्त मकान आज भी अपनी प्राचीनता को उजागर करते हैं। यूं तो गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, लेकिन कुछ लोग अच्छी शिक्षा

ओशो दुनिया में दूसरे धर्म हैं, जो भारत के बाहर पैदा हुए, ईसाइयत, यहूदी, इस्लाम, ये तीन बड़े धर्म भारत के बाहर पैदा हुए हैं। तीन बड़े धर्म भारत में पैदा हुए हैं हिंदू, बौद्ध, जैन। इन दोनों के बीच एक बुनियादी फर्क  है कि यहूदी, ईसाई और इस्लाम परमात्मा को पीछे देखते हैं, जिसने

अवधेशानंद गिरि मानव जीवन तीन धरातलों पर जिया जा सकता है पाशविक, मानवीय एवं दैवीय। पाशविक धरातल पर तो हम सभी जीते हैं, पर हममें से कुछ ऐसे भी हैं जो मानवीय धरातल पर जीने का प्रयास करते हैं। अर्थात जीवन में कुछ कर गुजरना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र में अपनी

सर्वविद्यामयी सारा चासुराणां विनाशिनी। दमनी दामनी दांता दयादोग्ध्री दुरापहा।। अग्निजिह्वोपमा घोरा घोरघोरतरानना। नारायणी नारसिंही नृसिंहहृदये स्थिता।। योगेश्वरी योगरूपा योगमाता च योगिनी। खेचरी खचरी खेला निर्वाणपद संश्रया।। नागिनी नागकन्या च सुवेशा नागनायिका। विषज्वालावती दीप्ता कलाशत विभूषणा।।…. -गतांक से आगे… पद्मराग प्रतीकाशा निर्मलाकाश सन्निभा। अधः स्था ऊर्ध्वरूपा च ऊर्ध्व पद्मनिवासिनी।। कार्यकारणकर्तृत्वे शश्वद्रूपेषु संस्थिता। रसज्ञा रसमध्यस्था गंधस्था गंधरूपिणी।।

बाबा हरदेव इसी प्रकार जाहिर तौर पर संदेह शब्द भ्रम और भ्रांति मात्र की ओर संकेत करता है। अतः संदेह शब्द संबोधित दो प्रकार का दृष्टिकोण है एक तो ये है कि संदेह करना पाप है, संदेह करना दुश्चरित्रता है, विशेषकर पुराने विचारों और विश्वासों पर तो संदेह की रत्ती भर भी सामर्थ्य नहीं है

श्रीराम शर्मा पारस से लोहे का स्पर्श करने से सोना बनने की उक्ति की पृष्ठभूमि में कदाचित यही तथ्य निहित होगा कि दुष्ट हृदय, समाज विरोधी व्यक्ति यदि अच्छे व्यक्तियों के संसर्ग सान्निध्य में आ जाए, तो उनकी जीवनधारा ही बदल जाए। उनका जीवन स्वयं के लिए भी व समाज के लिए भी बड़ा उपयोगी