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जब हम बार-बार मनुवाद शब्द सुनते हैं तो हमारे मन में भी सवाल कौंधता है कि आखिर यह मनुवाद है क्या? महर्षि मनु मानव संविधान के प्रथम प्रवक्ता और आदि शासक माने जाते हैं। मनु की संतान होने के कारण ही मनुष्यों को मानव कहा जाता है। अर्थात मनु की संतान ही मनुष्य है। सृष्टि

अस्थमा जानलेवा बीमारी है। यह फेफड़ों की घातक और लंबे समय तक चलने वाली बीमारी है, जिसके कारण सांस लेने के मार्ग में सूजन आ जाती है और यह रास्ता संकरा हो जाता है। अस्थमा के कारण घरघराहट, सीने में जकड़न, सांस लेने में तकलीफ  और कफ की समस्या होती है। इस बीमारी से ग्रस्त

-गतांक से आगे… पूता पवित्रा परमा परा पुण्य-विभूषणा। पुण्य-नाम्नी भीति-हरा वरदा खङ्ग-पाशिनी।। 18।। नृ-मुण्ड-हस्ता शस्त्रा च छिन्नमस्ता सुनासिका। दक्षिणा श्यामला श्यामा शांता पीनोन्नत-स्तनी।। 19।। दिगम्बरा घोर-रावा सृक्कांता-रक्त-वाहिनी। महा-रावा शिवा संज्ञा निःसंगा मदनातुरा।। 20।। मत्ता प्रमत्ता मदना सुधा-सिंधु-निवासिनी। अति-मत्ता महा-मत्ता सर्वाकर्षण-कारिणी।। 21।। गीत-प्रिया वाद्य-रता प्रेत-नृत्य-परायणा। चतुर्भुजा दश-भुजा अष्टादश-भुजा तथा।। 22।। कात्यायनी जगन्माता जगती-परमेश्वरी। जगद्-बंधुर्जगद्धात्री जगदानंद-कारिणी।। 23।।

श्रीश्री रवि शंकर हम तत्त्व और आत्मा दोनों से बने हैं। आत्मा को आध्यात्मिकता की आवश्यकता है। शरीर (तत्त्व) को कुछ भौतिक चीजों की आवश्यकता होती है और हमारी आत्मा का पोषण अध्यात्म से होता है। आप जीवन को आध्यात्मिकता के बिना जी नहीं सकते। क्या आप शांति चाहते हैं? क्या आप खुशी चाहते हैं?

स च तस्मै वरं प्रादातभार्याय मुनिसत्तमः। दत्वा च वरमत्युग्रं कश्यपस्तामुवाच ह। शक्रं पुत्रों निहन्ता ते यदि गर्भ शरच्छतम्र। समाहितातिप्रयता शौचिनौ धारयिष्यसि। इत्येवमुक्तवा तां देवी सङ्गतः कश्यपो मुनिः। दधार सा त गर्भ सम्यक्छोचसमन्विता। गर्भमात्मवध्रार्थाय ज्ञात्वा त मधयानापि। गर्भमात्मवध्रार्थाय ज्ञात्वा त मधयानापि। तस्याश्चै वान्तरप्रप्सुरतिष्ठत्पाकशासनः। ऊने वर्षशते चास्या दर्दशान्यरमात्मना। अकृत्वा पादयौः शौचं दितिः शयनमाविशत्। निद्रां चाहारयामासा चिच्छेदाथ स

हे मुने, अधिक समय तक जीने की इच्छा वाला विद्वान राजा इस कार्य को अवश्य कराए तथा इस अभिषेक के समय ऋत्विजों को सौ गायों की दक्षिणा देनी चाहिए या ब्राह्मणों को संतुष्ट करने वाली दूसरी दक्षिणा देनी चाहिए। शनिवार के दिन जो ब्राह्मण पीपल के नीचे बैठकर सौ बार जप करता है, वह भूत-बाधा

हे संन्यासियो! इस प्रकार इस समस्त जगत का कारण रूप जो अद्वितीय ब्रह्म है, उसका मैं श्वेताश्वर ऋषि रुद्र भगवान के प्रसाद से साक्षात्कार ऋषि रुद्र भगवान के प्रसाद से साक्षात्कार करता हूं। वह ब्रह्म उपनिषद् रूप वेद द्वारा प्रतिपादित तथा सनातन है। वह अनेक प्रकार के रूप और ज्ञानों में स्वप्रकाश रूप में स्थित

मनुष्य का मन कोरे कागज या फोटोग्राफी की प्लेट की तरह है, जो परिस्थितियां, घटनाएं एवं विचारणाएं सामने आती रहती हैं, उन्हीं का प्रभाव अंकित होता चला जाता है और मनोभूमि वैसी ही बन जाती है। व्यक्ति स्वभावतः न तो बुद्धिमान है और न मूर्ख, न भला है, न बुरा। वस्तुतः वह बहुत ही संवेदनशील

प्लेटलेट्स की कमी से कई तरह की बीमारियां होने लगती है। आमतौर पर स्वस्थ शरीर वाले ब्लड में प्लेटलेट काउंट 150,000-400,000 प्रति माइक्रोलीटर होता है। इसकी डेढ़ लाख से नीचे चले जाने पर इसे लो प्लेटलेट्स काउंट माना जाता है और इस स्थिति में मरीज की हालत नाजुक हो जाती है। ऐसे में मरीज इतना