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पौष्टिकता से भरपूर मूली पूरे भारत में पैदा होती है। अक्तूबर-नवंबर में आने वाली मूली खाने योग्य मानी जाती है। सलाद के रूप में खाई जाने वाली मूली में क्लोरीन, फास्फोरस, सोडियम और मैगनीशियम भी पाया जाता है। मूली में विटामिन ए और बी भी पाया जाता है… भोजन के मध्य में कच्ची मूली खाने

25 नवंबर रविवार, मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, तृतीया 26 नवंबर सोमवार, मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, चतुर्थी, गणेश चतुर्थी व्रत 27 नवंबर मंगलवार, मार्गशीर्ष,  कृष्णपक्ष, पंचमी 28 नवंबर बुधवार,  मार्गशीर्ष,  कृष्णपक्ष, षष्ठी 29 नवंबर बृहस्पतिवार, मार्गशीर्ष,  कृष्णपक्ष, सप्तमी, कालभैरवाष्टमी 30 नवंबर शुक्रवार, मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, अष्टमी 1 दिसंबर शनिवार, मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, नवमी जीवनसंगी की तलाश है? तो आज ही भारत  मैट्रिमोनी

* भोजन करने के बाद पांच पत्ते तुलसी के खाने से मुंह से बास नहीं आती। * बालतोड़ होने पर दूध को फिटकरी से फाड़ कर  कपड़े में रख कर बालतोड़ पर बांधें। आराम मिलेगा। * आग से जल जाने पर कच्चे आलू को पीस कर उसका रस निकाल  लें, फिर जले हुए स्थान पर

इस नियम के आधार से राज्य के सातों पूर्वजों के महल एक ही लाइन में खड़े थे तथा उन सबके पास प्राचीन ब्रह्मर्षि का महल भी था। ये सब महल एक ही डिजाइन के थे और राज्य शिल्पी की सूचना के अनुसार तैयार किए हुए थे। अजनबी बात तो यह थी कि ये सब महल

शनि ग्रह के प्रति अनेक आख्यान पुराणों में प्राप्त होते हैं। शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है, लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी। शनि ग्रह के संबंध मंे अनेक भ्रांतियां और इस लिए उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। शनि उतना अशुभ

एक शाम जेन गुरु कोजुन सूत्रों का पाठ कर रहे थे कि हाथ में नंगी तलवार लहराते हुए एक चोर घुस आया। चोर ने जान की सलामती के बाद कुछ पैसे मांगे। मुझे परेशान करने की कोई जरूरत नहीं, पैसे अलमारी में रखे हैं, ले लो। कह कर कोजुन फिर पाठ करने लगे। थोड़ी देर

हिमालयं स्थावराणां मुनीनां कपिल मुनिम। नखिनां दष्ट्रिणं चैव मृगाणां व्याघ्रमीश्वरम्। वनस्पतीनां राजानं प्लेक्षमेवाभ्यषेचयत। एवमेवांयजाययौनां प्राधान्येनाकरोत्प्रभून। एवं विभज्य राज्यनि दिशां पालाननंतरम। प्रजापतिपतिर्ब्रह्मा स्थापयामासर्वत। पूर्वस्या दिशि राजानां वैराज्य प्रजापतेः। पश्चिमस्यां दिशि तथारजसः पुत्रमुच्यतम। केतुमंतं महात्मानां राजानं सोऽभ्यशेषयत। उदीच्यां दिशि दुद्धषं राजानमध्यषेपयत। तैरियं पृथिवी सर्बा सप्त द्वीपा संपत्तना। यथाप्रदेयमद्यपि धर्मतः परिपाल्यते। स्थावरों का स्वामित्व हिमाचल को मिला, मुनियों

सूर्य विम्वे जल हुत्वा जलस्थ हेममाप्नुयात।अत्र हुत्वाप्नुयादन्न ब्रीहीन्ब्रहिपतिर्भवेत। 33। सूर्य के मंडल में जल छोड़ने से जल में स्थित सुवर्ण की प्राप्ति होती है। अन्न का होम करने पर अन्न की प्राप्ति होती है। करीषचूर्णैर्वत्सस्य हुत्वा पशुमवाप्नुयात। प्रियंगु पायसाज्यश्च भवेद्धोमादिष्ट संततिः। 34…  -गतांक से आगे… शतं शतं च सप्ताहं हुत्वाश्रियमवाप्नुयात। लाजैस्तु मधुरोपेतैर्होमे कन्यामवाप्तुयात। 31। मधुत्रय

देवयान मार्ग पर चलने वाले साधक वेदों के ज्ञाता, विद्वान, आचार्य से इन तीन विद्याओं का प्रथम शब्द ब्रह्म अर्थात वेदों से अध्ययन करते हैं। पुनः ईश्वर नाम स्मरण अष्टांग योग विद्या का अभ्यास करते हुए असम्प्रज्ञात समाधि की अवस्था में पहुंचते हैं जहां उन्हें ईश्वर की अनुभूति होती है और मोक्ष पद प्राप्त होता