आस्था

जब से समाज की संरचना हुई है, तभी से रिश्तों की बड़ी अहमियत रही है। रिश्तों में पारिवारिक अंतरंग रिश्ते, निकट संबंधियों के, निकटतम मित्रों के, पड़ोसियों के रिश्ते, व्यावसायिक रिश्ते, सभी का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान व योगदान है

* हल्दी तथा मलाई का मिश्रण बनाकर चेहरे पर दस मिनट लगाने के बाद ताजे पानी से धो लीजिए। इससे त्वचा साफ और कांतिमय होती है। * शहद में सफेद अंडा मिलाकर इसे चेहरे पर लगाएं और 20 मिनट बाद धो लीजिए। अगर त्वचा शुष्क है तो अंडे का पीला भाग तथा थोड़ा सा दूध

षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन काले तिलों के दान का विशेष महत्त्व है। शरीर पर तिल के तेल की मालिश, जल में तिल डालकर उससे स्नान, तिल जलपान तथा तिल पकवान की इस दिन विशेष महत्ता है। इस दिन तिलों का हवन करके रात्रि जागरण किया जाता है। ‘पंचामृत’ में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराने से बड़ा पुण्य मिलता है। षटतिला एकादशी पर तिल मि

प्रदोष व्रत अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला है। यह व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है, इसलिए इसे वार के अनुसार पूजन करने का विधान शास्त्र सम्मत माना गया है। प्रत्येक वार के प्रदोष व्रत की पूजन विधि अलग-अलग मानी गई है। व्रती ब्रह्म मुहूर्त

मौनी अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व है। माघ माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं। इस दिन मौन रहना चाहिए। मुनि शब्द से ही ‘मौनी’ की उत्पत्ति हुई है। इसलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा में स्नान करना चाहिए। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। माघ मास के स्नान का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पर्व अमावस्या ही है। माघ मास की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियां पर्व हैं। इन दिनों में पृथ्वी

देवभूमि हिमाचल प्रदेश में जगह-जगह मंदिर हैं। इन मंदिरों की अपनी मान्यता व रोचक इतिहास है। जिला चंबा के साहो में स्थित ऐतिहासिक चंद्रशेखर मंदिर पौराणिक काल से ही श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है।

मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में भी राम गमन के निशान होने की मान्यता है। वनवास के दौरान भगवान श्री राम मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों से गुजरे थे। माना जाता है कि इस दौरान वे विदिशा से होकर दक्षिण दिशा में गए थे।

अयोध्या में प्रभु श्री राम ने जन्म लिया और यहां का एक-एक स्थान किसी महा तीर्थ से कम नहीं। इस नगरी में कई पौराणिक मंदिर हैं, जो भगवान राम की लीलाओं का स्मरण कराते हैं। कुछ मंदिर आज भी त्रेतायुग के समय से हैं आज उन्हीं मंदिरों में से एक मंदिर के बारे में हम

लेकिन साधनों की कमी के कारण मैं निराश हो जाता हूं। मेरे गुरु का आदेश है कि हमारी मातृभूमि का पुनरुत्थान किया जाए। भारतवर्ष में सच्ची आध्यात्मिकता लोप हो गई है और भुखमरी का भूत सभी में घूमता फिर रहा है। इस वजह से भारतवर्ष को शक्तिशाली बनाकर अपनी आध्यात्मिकता द्वारा विश्व को विजय करना है। इन बातों से प्रभावित होकर शरतचंद्र ने कहा, स्वामी जी आप जो भी चाहते हैं, मैं वो करने को तैयार हूं। स्वामी जी ने