आस्था

इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि प्रात: स्नान करके भगवान की आरती कर भोग लगाए। इस दिन अगरबत्ती, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार तथा लौंग आदि से श्री नारायण जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन दीपदान व रात्रि जागरण का बड़ा महत्त्व है। इस व्रत को करने से सभी कार्यों में सफलता मिलती है। इसीलिए इसका नाम सफला एकादशी है।

पौष अमावस्या का हिंदू धर्म में बड़ा महत्त्व है। सनातन परंपरा में पौष मास की अमावस्या तिथि का बहुत ज्यादा महत्त्व है। मान्यता है कि इस दिन किसी तीर्थ, नदी या सरोवर में स्नान और पितरों के निमित्त किए जाने वाले दान से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। हर माह में कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के एक दिन बाद अमावस्या पड़ती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है...

कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना। प्रयाग के कुम्भ मेले में कल्पवास का अत्यधिक महत्व है। यह माघ के माह में और अधिक महत्व रखता है और यह पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कल्पवास को धैर्य, अहिंसा और भक्ति

गोमुख वह स्थान है, जहां ग्लेशियरों से गंगा का पानी गिरता है। ऋषि-मुनियों ने इसे ‘गोमुख’ कहा क्योंकि सुदूर अतीत में यह संभवत: गाय के मुख जैसा प्रतीत होता था। शांति और साहसिक स्थलों की तलाश कर रहे यात्रियों के लिए...

यथाक्रम वहां श्री रामकृष्ण की वस्तुएं और राख व अस्थियां लाई गईं और कुछ भक्त वहां आकर नियमित रूप से रहने लगे थे। वहां रोजाना भजन, पूजापाठ, ध्यान व कीर्तन का कार्य होने लगा। गृहस्थ भक्त लोग भी वहां आने-जाने लगे थे। इस तरह श्री रामकृष्ण की महासमाधि के डेढ़ महीने के अंदर के खास निर्देश पर वराहनगर में मठ स्थापित किया गया था। फिर सन् 1887 में अनेक भक्तों ने विधिवत संन्यास ग्रहण किया। श्री रामकृष्ण के जिन शिष्यों ने इस समय संन्यास ग्रहण किया और हमेशा संन्यासी बने रहने की शपथ खाई थी, वे भक्तगण संख्या में कुल 16 थे। किसी के मतानुसार नरेंद्रनाथ ने विवेकानंद से पहले सच्चिदानंद तथा विविदिषानंद नाम ग्रहण किया था। वास्तविकता जो भी हो, मगर आगे चलकर वह विवेकानंद ही कहलाए। कुछ समय पश्चात ही महात्मा रामचंद्र दत्त आदि कुछ भक्तों ने एक प्रस्ताव रखा, आप लोग सभी साधु संन्यासी कहां रहोगे? कुछ तय नहीं

योग इस बात की अभिव्यक्ति नहीं है कि आप कौन हैं, यह इस बात को तय करने के बारे में है कि आप कौन बनना चाहते हैं। उन मूलभूत तत्वों को बदलना जिन्होंने आपको वह बनाया है जो आप अभी हैं। एक प्रणाली के रूप में योग को हमारे द्वारा किए जाने वाले किसी भी अन्य काम की तुलना में कहीं अधिक भागीदारी की आवश्यकता होती है...

यदि आप किसी को थोड़ी देर चुप बैठने के लिए कहें, वे नहीं बैठ पाते! बैठे-बैठे मन में कुछ न कुछ करते रहते हैं, कोई न कोई हिसाब-किताब लगाते रहेंगे। यह निष्क्रिय अवस्था नहीं है। जो सच में थोड़ी-थोड़ी देर के लिए भी निष्क्रिय हो जाते हैं, उनको बहुत तसल्ली मिलती है। जीवन भर कुछ न कुछ लालच लगा ही रहता है कि कुछ मिलेगा, कुछ मिलेगा। कई बार आध्यात्मिक क्षेत्र में आकर भी लोग वही लालच करते रहते हैं। लोग यही सोचते रहते हैं कि यहां नहीं तो दूसरी जगह, कहीं न कहीं कुछ तो मिल ही जाए। ऐसे व्यक्ति को सुख कैसे मिलेगा? न ही लोभी को

यदि तुम एक विद्वान बनने की चेष्टा कर रहे हो तो अपने आपको एक विद्वान की ही भांति रखो वैसा ही वातावरण एकत्रित करो, निराशा निकाल कर यह उम्मीद रखो कि मूर्ख कालिदास की भांति हम भी महान बनेंगे। निराशा निकाल कर तुम इस एकटिंग को पूर्ण करने की चेष्टा करो। तुम अनुभव करो कि मैं विद्वान हूं, सोचो कि मैं अधिकाधिक विद्वान बन रहा हूं। मेरी विद्वता की निरंतर अभिवृद्धि हो रही है। तुम्हारे व्यवहार से लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम सचमुच विद्वान हो। तुम्हारा आचरण भी पूर्ण विश्वास युक्त हो शंका, शुबाह या निराशा का नामोनिशान भी न हो। अपने इस विश्वास पर तुम्हें पूरी दृढ़ता का प्रदर्शन करना उचित है। यह अभिनय करते-करते एक दिन तुम स्वयमेव अपने कार्य को पूर्ण करने की

भारत मंदिरों का देश है, इनमें से कई मंदिर विश्वविख्यात हैं और चमत्कारिक/रहस्यमयी भी हैं। इन मंदिरों में लोगों की गहरी आस्था है। भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या में बन रहा राम मंदिर इस समय चर्चा में हैं...