आस्था

हमारे तमाम धार्मिक तथा मांगलिक कार्यों में, पूजा अर्चना या हवन यहां तक कि विवाहोत्सव आदि में भी तिल की उपस्थिति अनिवार्य रखी गई है, क्योंकि मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से तिल का विशेष महत्त्व है...

पौष पूर्णिमा विक्रमी संवत के दसवें माह पौष के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि है। ऐसी मान्यता है कि पौष मास के दौरान जो लोग पूरे महीने भगवान का ध्यान कर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं, उसकी पूर्णता पौष पूर्णिमा के स्नान से हो जाती है। इस दिन काशी, प्रयाग और हरिद्वार में स्नान का विशेष महत्त्व होता है। जैन धर्मावलंबी इस दिन ‘शाकंभरी जयंती’ मनाते हैं तो वहीं, छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाली जनजातियां पौष पूर्णिमा के दिन बड़े ही धूमधाम से ‘छेरता’ पर्व मनाती हैं...

हिंदू धर्म में वैसे तो सभी तिथियां खास होती हैं, लेकिन एकादशी तिथि का विशेष महत्त्व माना गया है। प्रत्येक माह में दो एकादशी तिथि आती है। एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में। इस प्रकार से पूरे वर्ष में 24 एकादशी तिथि होती है। प्रत्येक एकादशी पर व्रत रखा जाता है और पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता अनुसार एकादशी का व्रत नियम और निष्ठा से करने से सभी पापों का नाश होता है।

संपूर्ण देशवासियों को उन ऐतिहासिक पलों का बेसब्री से इंतजार है, जब रामलला 493 वर्षों उपरांत पुरातन व आधुनिक शैली से निर्मित भव्य एवं दिव्य मंदिर में विराजमान होंगे। हिमालय का संबंध पौराणिक काल से ऋषि-मुनियों, साधकों के साथ रहा है। यहां के पर्व, उत्सव और त्योहार जनमानस की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना से जुड़े हैं। शिव और शक्ति के इस प्रदेश में असंख्य देव स्थान हैं। शिव पर्वत कंदराओं व हिम शिखरों पर वास करते हैं। इस सबके मध्य हिमाचल के इन क्षेत्रों में वैष्णव मत का भी प्रादुर्भाव हुआ। हिमाचल प्रदेश में कुछ स्थान, देवालयों का संबंध अवधपुरी से माना जाता है।

हिंदू मान्यता के अनुसार पौष माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से पौष मास की पूर्णिमा तक शाकंभरी नवरात्रि मनाई जाती है। पौष मास की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। देवी शाकंभरी को देवी दुर्गा का अवतार मना जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार देवी शाकंभरी को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता हैं। देवी शाकंभरी की श्रद्धा, भक्ति और विधि-विधान के साथ साधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश मे एक महादैत्य ने जन्म लिया उसका नाम था दुर्गम। दुर्गमासुर ने कठोर तपस्या द्वारा परमपिता ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके चारों को वेदो को अपने अधीन कर लिया और साथ ही यज्ञ आदि से देवताओं को प्राप्त होने

तीर्थराज प्रयाग में लगने वाला माघ मेला देश-विदेश के लाखों लोगों की धार्मिक, आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है। इस मेले में लाखों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं। मिनी कुंभ कहलाने वाले इस धार्मिक और सांस्कृतिक मेले का बड़ा महत्त्व है। माना जाता है कि जितने दिन यह माघ मेला रहता है, वे दिन चार युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के बराबर होते हैं। पूरी दुनिया में बसे हिंदू और हिंदू सनातन संस्कृति पर आस्था रखने वाले ह

वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कार जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं। विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह का शाब्दिक अर्थ है : विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच ज

जे.पी. शर्मा, मनोवैज्ञानिक नीलकंठ, मेन बाजार ऊना मो. 9816168952 इस लेख को लिखते समय बचपन याद आ रहा है जब परिवार, पड़ोस और रिश्तेदारी में शादी समारोहों में भाग लेते हुए जो सामुदायिक, संगठित, सामाजिक सौहार्दपूर्ण नजारा देखने को मिला करता था, उसकी तुलना में आज के शादी समारोहों में हुए तमाशे को देख मन

श्रीराम शर्मा वस्तुओं और व्यक्तियों में कोई आकर्षण नहीं है अपनी आत्मीयता जिस किसी से भी जुड़ जाती है वही प्रिय लगने लगती है यह तथ्य कितना स्पष्ट किंतु कितना गुप्त है लोग अमुक व्यक्ति या अमुक वस्तु को रुचिर मधुर मानते हैं और उसे पाने लिपटाने के लिए आकुल व्याकुल रहते हैं। प्राप्त होने