आस्था

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए

गतांक से आगे… अश्वत्थामा द्रोण के पुत्र का भी नाम था, जो उन्हें बहुत प्रिय था। भीम ने उस हाथी को खोजकर मार डाला और गुरु द्रोण के सामने चिल्लाने लगा कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा, तो उन्होंने कहा कि अश्वत्थामा मरा है, वो हाथी है या नर,

* अच्छे व्यवहार का कोई आर्थिक मूल्य भले ही न हो, पर करोड़ों दिलों को खरीदने की शक्ति रखता है * मनुष्य की  धार्मिक वृत्ति ही उसकी रक्षा करती है * ठोकरें खा कर भी न संभले तो मुसाफिर का नसीब, वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया था * बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों

23  जून रविवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, षष्ठी 24 जून सोमवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, सप्तमी 25 जून मंगलवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, अष्टमी 26 जून बुधवार,  आषाढ़, कृष्णपक्ष, नवमी 27 जून बृहस्पतिवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, नवमी, पंचक समाप्त 28 जून शुक्रवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, दशमी 29 जून शनिवार, आषाढ़, कृष्णपक्ष, एकादशी, योगिनी एकादशी व्रत

सुवर्ण दुर्ग किले को गोल्डन फोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। शिवाजी ने इस किले पर 1660 ईस्वी में कब्जा किया था। उन्होंने अली आदिलशाह द्वितीय को हराकर सुवर्ण दुर्ग को मराठा साम्राज्य में मिला दिया था। समुद्री ताकत को बढ़ाने के लिए इस किले पर कब्जा किया गया था। इसी किले में

वे विकृत और वीभत्स रूप में त्रास एवं दंड देती हैं। भूत-बाधाएं दो तरह से व्यक्ति को अपनी चपेट में लेती हैं – एक प्रकार की बाधा में रोगी के सिर पर भूत आता है, वह अनर्गल प्रलाप और असंगत चेष्टाएं करता है। रोग की इस स्थिति में रोगी की सामान्य चेतना विशृांखलित हो जाती

जब मायाशक्ति क्रियाशील रहती है, तब उसका अधिष्ठान महाशक्ति सगुण कहलाती है। जब वह महाशक्ति में मिली रहती है, तब महाशक्ति निर्गुण है। इन अनिर्वचनीया परमात्मारूपा महाशक्ति में परस्पर विरोधी गुणों का नित्य सम्राज्यस्य है। वे जिस समय निर्गुण हैं, उस समय भी उनमें गुणमयी मायाशक्ति छिपी हुई वर्तमान है और जब वे सगुण कहलाती

तब दत्तोत्रेय जी ने पूछा, ‘ब्रह्मा, विष्णु, महादेव कहां हैं?’ तब मछेंद्रनाथ बोले, ‘मुझे सिर्फ ब्रह्मा जी के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है। मेरे आगे-पीछे, चारों तरफ ईश्वर ही है।’ बालक का यह वचन और आत्मिक भावना देखकर दत्तात्रेय जी, मछेंद्रनाथ का हाथ पकड़ कर अपने साथ ले गए, जहां भगवान शिवजी विराजमान

ओशो एक भिखारी एक सम्राट के पास आया और उसने सम्राट से कहा, अगर आप मुझे कुछ भी देने जा रहे हैं, तो उसे देने से पहले आपको मेरी एक शर्त माननी होगी। सम्राट ने कई भिखारियों को देखा था, लेकिन शर्त रखने वाला भिखारी वह पहली बार देख रहा था। सम्राट ने उससे पूछा,