आस्था

ओशो प्रेम का मार्ग बनाने का एक ही अर्थ होता है कि प्रेम के नैसर्गिक प्रवाह में जो पत्थर डाल दिए गए हैं, वह हटा दो। प्रेम का मार्ग नहीं बनाना होता, सिर्फ बाधाएं हटानी होती हैं। जैसे कि दर्पण है, धूल जमी है, दर्पण नहीं बनाना है, सिर्फ  धूल हटा देनी है, दर्पण तो

भाले की चोट से यम के मुख से रक्त बहने लगा। यमराज को व्याकुल देखकर कुबेर हाथ में गदा लेकर अपने सैकड़ों यक्षों के साथ जंभ की सेना से भिड़ गया। इसी बीच ग्रसन को चेतना आ गई और उसने यम पर अपनी अरिमर्दनी गदा से प्रहार किया… इंद्र ने सूचना पाकर देवगुरु बृहस्पति की

विश्वकर्मा से उत्तम हुए ये पांच ब्रह्मर्षियों में जो मनु नाम के ब्रह्मर्षि थे, वे महर्षि प्रभु के पूर्व दिशा की तरफ से सद्योजाता नाम के मुख से उत्पन्न हुए थे तथा उनका गोत्र सानग कहलाता था। इसके बाद पच्चीस उपगोत्र हुए। इन उपगोत्रों को गणगोत्र भी कहते हैं। ऋग्वेद उनका मुख्य वेद कहलाया तथा

बाबा हरदेव यहां पर मंजिल की बात हो रही है, परमात्मा की बात हो रही है, सर्वव्यापी की बात हो रही है, मुक्ति की बात हो रही है, इसमें भी हम अकसर उलझ जाते हैं। कोई छोर नजर नहीं आता है इसलिए संत, महात्मा साधन बनते हैं, ब्रह्मज्ञानी साधन बनते हैं जो हमारी इस पेचीदगी

यही नहीं, वह अत्यंत दयालु होने के अलावा अत्यंत शूरवीर भी हैं और उनको यह ज्ञात है कि किस समय पर क्या करना चाहिए और वह अपने वचनों के प्रति प्रतिबद्ध भी रहते हैं। इन शब्दों के जरिये इस धरा के सभी जीव उनकी स्तुति करते हैं… हालांकि बाली का वध श्रीराम के हाथों हो

स्वामी रामस्वरूप पिछले युगों की भांति सुख-संपन्न राम राज्य की बातें तो हम करते हैं परंतु ऋषियों द्वारा  लिखित वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत ग्रंथ के अध्ययन के अभाव में हम नहीं जान पाते कि उस युग में केवल वेद विद्या ही प्रत्येक राजनेता और प्रजा के जीवन का आधार था। न आज के मजहबों और

केले खाकर इधर-उधर छिलके फेंकने की आपकी भी आदत है तो उसे बदल लीजिए क्योंकि इसके छिलकों में कमाल के गुण हैं। इन छिलकों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्त्व और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इसमें विटामिन बी-6, बी-12, मैगनीशियम, कार्बोहाइड्रेट, एंटीऑक्सीडेंट, पोटाशियम, मैगनीशियम और मैंगनीज जैसे पोषक तत्त्व होते हैं, जो मैटाबॉलिज्म के लिए बेहद

श्रीराम शर्मा प्रत्येक व्यक्ति के पास विधाता ने दो बहुमूल्य एवं खूबसूरत उपहार दिए हैं, बुद्धि एवं भावना। ये दो ऐसी चीजें हैं, जिनके सही उपयोग के आधार पर एक ओर से व्यक्ति सांसारिक जीवन में आशातीत सफलता प्राप्त कर सकता है। दूसरी ओर आध्यात्मिक जीवन में विशेष प्रगति कर सकता है, लेकिन इनके साथ

शांतिपूर्वक बैठने के लिए सीख की जरूरत है। एक गधा हो या गाय, जब उसका पेट भर जाता है तो वे भी शांतिपूर्वक बैठ जाते हैं, लेकिन इनसान शांतिपूर्वक भी  नहीं बैठ पा रहा। लोग अपने लिए बेइंतहा दुख जुटा लेते हैं, वह भी बिना किसी बाहरी मदद के। अगर उनकी अनचाही चीजें घटित हों