आस्था

मानव जीवन का ध्येय आनंद ही है। आनंद की आकांक्षा उचित है। यह वहीं तक उचित हैं, जहां तक इसका संबंध जीवन की वास्तविक सुख-शांति से है। मिथ्या, आनंद का भाव लेकर जगी हुई कामनाएं अनुचित एवं अवांछनीय हैं इसलिए कि यह मनुष्य को मृगतृष्णा में भटकाकर उसका बहुमूल्य मानव जीवन नष्ट कर डालती है। 

9 अप्रैल रविवार, चैत्र, शुक्लपक्ष, त्रयोदशी 10 अप्रैल सोमवार, चैत्र, शुक्लपक्ष, चतुर्दशी 11 अप्रैल मंगलवार, चैत्र, शुक्लपक्ष, पूर्णिमा, हनुमान जयंती १२ अप्रैल बुधवार, चैत्र, कृष्णपक्ष, प्रथमा 12 अप्रैल बृहस्पतिवार, वैशाख, कृष्णपक्ष , द्वितीया, वैशाख संक्रांति 13 अप्रैल शुक्रवार, वैशाख, कृष्णपक्ष, तृतीया, श्रीगणेश चतुर्थी व्रत 14 अप्रैल शनिवार, वैशाख , कृष्णपक्ष, चतुर्थी

प्राचीन संस्कृति की धारा लंबे समय तक इन भोजपत्रों के कारण ही आगे तक प्रवाहित होती रही। भोजपत्र को शैक्षणिक ही नहीं तांत्रिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। भोजपत्र का वशीकरण के लिए भी प्रयोग किया जाता है।  स्त्री या पुरुष के वशीकरण के लिए अगर विभिन्न वैदिक या शाबर मंत्रों के जाप

इनसान की आदत है तुलना करने की। ऐसे में जब हम योगाभ्यास करते हैं तो कई बार हमारे मन में यह बात उठ सकती है कि मैं किसी दूसरे की तुलना में कहां तक पहुंचा हूं। लेकिन क्या यह सोच सही है? सभी लेवल यानी स्तर, सापेक्ष  यानी सिर्फ तुलनात्मक हैं। क्या आप किसी ऐसे

यह पत्र देवताओं को सुनाकर इंद्रदेव तत्क्षण उठ पड़े और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुंचे। लक्ष्मण जी ने इंद्र का स्वागत किया। इंद्र ने राम के पास पहुंच पारिजात और कल्पवृक्ष को राम को अर्पण किया। इतने ही में सरयू तट से दुर्वासा ने अपने

बाबा हरदेव यही सत्य है बाकी सारे संसार को स्वप्न के समान माना गया है। यह संसार शाश्वत नहीं है, परमात्मा ही शाश्वत है। यही एकरस है, संसार एकरस नहीं है। दुनिया में कदम-कदम पर तबदीलियां हैं, बदलाव हैं, कहीं पर भी स्थिरता नहीं है, कहीं पर अडोलता नहीं है… जो इस प्रभु, ईश्वर, परमात्मा

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे…  द्वार के निकट जाकर बुलाने से या खटखटाने से जैसे द्वार खुलकर विश्व में प्रकाशधारा प्रवाहित होती है। राजयोग में केवल इसी विषय की आलोचना है। अपनी वर्तमान शारीरिक अवस्था में हम बड़े ही अन्यमनस्क हो रहे हैं। हमारा मन इस समय सैकड़ों और दौड़कर अपनी शक्ति क्षय कर रहा

अप्रैल की शुरुआत में गर्मी के तेवर देखकर तो यही लग रहा है कि इस बार मौसम के तेवर सख्त रहेंगे। बाहर का तापमान तो नियंत्रित नहीं किया जा सकता और न ही रोज आफिस, स्कूल जाने से भी बचा जा सकता है। इसलिए स्वस्थ और सुरक्षित रहने के लिए खुद ही कमर कसनी होगी।

ओशो मनुष्य के अनुभव में, प्रतीति में सुख और दुख दो अनुभूतियां हैं, गहरी से गहरी। अस्तित्व का जो अनुभव है, अगर हम नाम को छोड़ दें, तो या तो सुख की भांति होता है या दुख की भांति होता है और सुख और दुख भी दो चीजें नहीं हैं। अगर हम नाम बिलकुल छोड़