प्रतिबिम्ब

वर्ष 2017 की गुरु पूर्णिमा के दिन मोगा इस दुनिया को छोड़ कर चला गया। उसकी मृत्यु का समाचार मुझे अगले दिन सुबह उस समय मिला, जब मैं बस अड्डे पर रोजाना की तरह अखबार लेने गया। मोगा ‘कहलूरी शटराला’ का वह पात्र था जो हर किसी पर कटाक्ष करता था। कहलूरी शटराला के माध्यम

भीष्म साहनी (जन्म- 8 अगस्त, 1915, रावलपिंडी, अविभाजित भारत; मृत्यु- 11 जुलाई, 2003, दिल्ली) प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे। उन्हें हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वह आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। भीष्म साहनी मानवीय मूल्यों के सदैव हिमायती रहे। वामपंथी विचारधारा से जुड़े होने

लोक कहावतों के अनुसार लोग अपने व्यक्तिगत जीवन और स्वास्थ्य के प्रति सजग रहकर लंबे समय तक स्वस्थ और सुखमय जीवन बिताया करते थे। लोक कहावतों में स्वस्थ शरीर के लिए विशेष उल्लेख किया गया है, जिसे अपना कर आप भी लंबे समय तक स्वस्थ और सुखमय जीवन व्यतीत कर सकते हैं। स्वास्थ्य से संबंधित

ज़िंदगी मुझे बता तेरा फलस़फा क्या है तड़प कर मर जाना अब ये सिलसिला क्या है तेरी बज्म में क्यों तकलीफ मिलती है जड़ें कटीं तो कली भी नहीं खिलती है सा़की ज़रा ठहरो कुछ सुकून आने दो पीने-पिलाने का सिलसिला बाद में होगा तुम्हारी ये जुल़्फ, नाजों पेंचों खम यहीं निकलेगा तो निकलेगा दम

मुंशी प्रेमचंद भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं जिनके युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखंड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंजिलों से गुजरा। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। वह एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता,

उर्दू के पत्र-पत्रिकाओं की विडंबना यह है कि स्वयं उर्दू भाषा से जुड़ा मुस्लिम वर्ग उसकी क़द्र नहीं करता। ऐसा देखने में आता है कि बड़े शहरों व छोटे कस्बों में एक उर्दू अख़बार को कम से कम 25-50 लोग पढ़ते हैं। उर्दू का चाहने वाला भी अपनी जेब से पैसे निकाल कर उर्दू की

बादलों का उमड़ना-घुमड़ना तथा उससे उत्पन्न घनघोर गर्जना प्रकृति को चेतन अवस्था में ले आती है। श्रावण मास के आगमन संग दक्षिण-पश्चिम मानसून का पदार्पण संपूर्ण भारत समेत हिमाचली पहाड़ों को हरा-भरा व जलयुक्त कर देता है। हिमाचली सौंदर्य को बरसात की रिमझिम एक विशेष लय और रंग प्रदान कर जाती है। मौसम की यह

पुस्तक : मैं जीना सिखाता हूं लेखक : अजय पाराशर मूल्य : 200 रुपए प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, एफ-77, सेक्टर-9, इंडस्ट्रियल एरिया, जयपुर एड्स पीडि़तों के अनुभवों के संसार में झांकना और उनके जीवन के अंधेरे कोनों की टोह लेना इतना आसान नहीं है। बाह्य स्थितियों का आकलन तब तक संभव नहीं, जब तक मन

पहले सावन का महीना आते ही गांव के मोहल्लों में झूले पड़ जाते थे और सावन की मल्हारें गूंजने लगती थी। ग्रामीण युवतियां-महिलाएं एक जगह देर रात तक श्रावणी गीत गाकर झूला झूलने का आनंद लेती थी। वहीं जिन नव विवाहित वधुओं के पति दूरस्थ स्थानों पर थे उनको इंगित करते हुए विरह गीत सुनना