संपादकीय

सर्वोच्च अदालत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की संवैधानिकता पर मुहर लगा दी। संविधान पीठ ने इस संदर्भ में राष्ट्रपति के आदेश, मोदी सरकार के फैसले और संसद के दो-तिहाई बहुमत के निर्णय को वैध करार दिया है। अदालत ने स्थापित किया है कि अनुच्छेद 370 कभी भी संविधान का स्थायी प्रावधान नहीं था। वह अस्थायी व्यवस्था थी, क्योंकि उस समय युद्ध के हालात थे। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह की उद्घोषणा और भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर की कोई संप्रभुता नहीं रही। अनुच्छेद 370 के तहत कोई आंतरिक संप्रभुता भी नहीं थी। जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया था। यह संविधान के अनुच्छेद एक से भी स्पष्ट है। अनुच्छेद 370 ने कश्मीर को एक अलग संविधान, अलग ध्वज और आंतरिक प्रशासनिक स्वायत्तता रखने का अधिकार दिया था, जबकि य

एक साल की सरकार ने अपनी हैसियत और राजनीति की हसरत में दो नए चेहरे चुन लिए और अब मंत्रिमंडल की सूई में सिर्फ एक सुराख रह गया। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में अब एक और मंत्री राजेश धर्माणी के रूप में तथा कांगड़ा-चंबा संसदीय परिपाटी में यादविंदर गोमा को स्थान मिल रहा है। इस तरह मर्ज का इलाज फिर दर्द की सूली पर सुधीर शर्मा तथा राजेंद्र राणा को चढ़ा गया। इस खोज में पूरा एक साल लगा है, जबकि अगले साल की पैमाइश में सत्ता को लोकसभा चुनाव की रणनीति तथा रणभूमि पर अपना जौहर दिखाना है। मंत्रिमंडल विस्तार की भुजाओं में नवजोश और युवा ऊर्जा का शृंगार हुआ है, फिर भी यह अप्रत्याशित या असंगत नहीं। यह दीगर है कि एक साल की कसौटियों में कई विभाग और विभागों के मंत्री अपनी छा

आरएसएस के समर्पित कार्यकर्ता, प्रधानमंत्री मोदी की प्रथम कैबिनेट के साथी, चार बार के लोकसभा सांसद और आदिवासी समाज के प्रमुख नेता विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री होंगे। वह भाजपा और राज्य के प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री होंगे। वैसे छत्तीसगढ़ के सर्वप्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी खुद को आदिवासी ही कहते रहे, लेकिन 2019 में अदालत ने उनका ‘अनुसूचित जनजाति’ वाला प्रमाण-पत्र ‘अमान्य’ कर दिया था, लिहाजा प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवहार में विष्णुदेव ही राज्य के प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री माने जाएंगे। भाजपा के प्रदेश अध्य

अंतत: एक साल की सरकार ने अपनी उपलब्धियों की जमीन पर सत्ता हस्तांतरण की प्रासंगिकता साबित करने की हरसंभव कोशिश कर दी। धर्मशाला में सुक्खू सरकार बहुत कुछ अपने करीब खड़ा कर पाई, जबकि विपक्षी भाजपा की असलियत में प्रदेश हितों की अनदेखी का जिक्र हर वक्ता ने किया। मंच पर दर्द था, तो कहीं-कहीं वही नगाड़े लौट आए और धुनें बज उठीं, जो भाजपा से सत्ता छीन कर बजे थे। यह दीगर है कि जिस सत्ता ने कांग्रेस के चुनावी अभियान को प्रशस्त किया, उसके एक साल के जश्न में न प्रियंका गांधी दिखीं और न ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष खडग़े

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद धीरज साहू से जुड़े ठिकानों से करीब 400 करोड़ रुपए नकद बरामद किए जा चुके हैं और अभी यह सिलसिला जारी है। धीरज का परिवार देसी शराब का बड़ा उत्पादक है। इसके अलावा होटल, रियल एस्टेट, परिवहन और मछली आदि क्षेत्रों में भी वह व्यापार करता है, लेकिन उनके 30 से अधिक ठिकानों से, अलमारियों में ठूंसे गए, नोटों के बंडल मिले हैं, तो यकीनन वह ‘काला धन’ है, बेहिसाबी और बेईमानी का पैसा है। इस ‘काले धन’ का स्रोत क्या है? इतने धन-संग्रह का सच क्या है? क्या इस ‘काले पैसे’ से कुछ और लोग भी जुड़े हैं? क्या किसी और का ‘अवै

जश्न की गलियों में पदचाप करती हिमाचल सरकार और एक साल की समीक्षा से रूबरू होता इंतजार। इंतजार हर राजनीति को सत्ता तक ले जाने का और सत्ता को निरंतर आजमाने का। इस बहाने कई मूड, कई संघर्ष और कई कारनामे हिमाचल की जनता देखेगी। जाहिर है सुक्खू सरकार धर्मशाला के पुलिस स्टेडियम में जब अपना रिपोर्ट कार्ड देगी, तो सामने धौलाधार अपनी ऊंचाई के फलक पर पुरानी और जमी हुई बर्फ को ओढ़ कर

बेशक दूसरी तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था की विकास-दर 7.5 फीसदी से अधिक रही है। भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंता नागेश्वरन का आकलन है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2023-24 ( 31 मार्च तक) के

सोलन में सत्ता का एक साल नगर निगम की थाली में क्यों कमजोर पड़ गया और जिल्लत किसे बेसहारा कर गई, इसका विश्लेषण होना चाहिए। क्या यह शहर का मूड है या नेताओं के चरित्र का सबूत कि जिस थाली में खा रहे...

जम्मू-कश्मीर का जिक्र होगा, तो नेहरू और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी याद किया जाएगा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर के संदर्भ में दो ‘भयंकर गलतियां’ (ब्लंडर) की थीं। भारत की आजादी के कुछ माह बाद ही कबाइलियों (पाकिस्तान की मुखौटा फौज) ने कश्मीर पर हमला कर दिया था। अभी युद्ध जारी था और हमारी सेनाएं जीत रही थीं। पूरे कश्मीर पर भारत का कब्जा होने ही वाला था कि प्रधानमंत्री नेहरू ने युद्धवि