संपादकीय

देश-प्रदेश की तस्वीर में हम चंद नेताओं पर अपनी तकदीर का फैसला करना चाहते हैं और यही हमारी लोकतांत्रिक आस्था के स्वरूप को निर्धारित कर रहा है। सवाल जनता के विश्वास से परे हालात पर टिके हैं, इसलिए राजनीतिक सर्कस में भी हम प्रतिभा देखने की गुस्ताखी कर बैठते हैं। जनता राष्ट्रीय स्तर से हिमाचल तक केवल चलाई जा रही है और उम्मीदों तथा संभावनाओं के प्रश्न चुनाव दर चुनाव आगे सरकाए जा रहे हैं। ऐसे में जनता या अपने मतदान के भरोसे पर देश की सुनहरी तस्वीर के प्रति आशावान है या विकल्पों की कमी उसे मजबूरीवश आगे धकेल रही है। इस बीच दिव्य हिमाचल के साप्ताहिक प्रश्न के जवा

सिर्फ केजरीवाल की गिरफ्तारी के आधार पर इस निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा जा सकता कि 2024 के आम चुनाव ‘विपक्ष-मुक्त’ हैं अथवा चुनावी रण समतल नहीं है। केजरीवाल के मुद्दे पर तो संयुक्त विपक्ष की रैली का आह्वान किया गया है, लेकिन हेमंत सोरेन भी झारखंड के चुने हुए मुख्यमंत्री थे। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया था। सोरेन की मासूमियत पर विपक्ष ने इतना शोर नहीं मचाया, जितना केजरीवाल को लेकर प्रलाप किया जा रहा है कि एक पदासीन मुख्यमंत्री

हम उम्मीद करें कि ईएफटीए के बाद अब भारत के द्वारा ओमान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, इजरायल, भारत, गल्फ कंट्रीज काउंसिल और यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जा सकेगा। हम उम्मीद करें कि

बीते दिनों केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने कुछ संदिग्ध और सवालिया न्यूज वेब पोर्टल, निजी न्यूज चैनलों पर पाबंदी लगाई थी। आरोप पुराने ही थे कि वे ‘फेक न्यूज’, ‘भ्रामक सामग्री’ और ‘झूठी खबरें’ परोस रहे थे। सरकार इसे ‘आपराधिक कृत्य’ मानती है। बीते एक अंतराल से ऐसी पाबंदियां ही चस्पा नहीं की गईं, बल्कि कुछ पत्रकारों, संपादकों, प्रकाशकों को भी, कड़ी कानूनी धाराओं में, जेल भी भेजा गया है। बहरहाल वे मामले अदालतों के विचाराधीन हैं। बेशक फेक न्यूज लंबे समय से एक गंभी

अवांछित घटनाक्रम की वांछित राजनीति ने अब हिमाचल की नीयत में अस्थिर सरकारों का खोट भर दिया है। अस्थिरता न होती तो जनादेश की ताकत से राज्यसभा में कांग्रेस का एक और सांसद प्रवेश कर गया होता, मगर इस ताजपोशी के सबूत खूंखार हो रहे हैं। कांग्रेस की जेब जहां लुटी है वहां जनादेश की दौलत भी लुटी है, लेकिन हम दोनों पाटों में सियासत का पुण्य-पाप नहीं चुन सक

पर्यटन की महफिल में मुसीबतों के पहाड़ का अंदाजा लगाना मुश्किल है, फिर भी अदालती संज्ञान की वजह से हम देख पाते हैं कि कितना काम बाकी और सरकार की हर एजेंसी को इस दिशा में कैसे सोचना होगा। माननीय उच्च न्यायालय ने फोरलेन के किनारे पर मलबे के टीले देखते हुए इन्हें तुरंत प्रभाव से हटाने के निर्देश दिए हैं। यह कालका-शिमला फोरलेन मार्ग का परिदृश्य है जिसे कानून ने देखा तो खामियां संबोधित हो गईं, वरना इन मंजिलों से रोजाना व्यवस्था लांघ कर भी अनजान है। कालका-शिमला फोरलेन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और शराब घोटाले की नियति शायद यही थी। केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 9 समन्स को लगातार ‘अवैध’ करार देते रहे और कभी पेश नहीं हुए। यह करके केजरीवाल ने संविधान और कानून को भी ठेंगा दिखाया। दिल्ली उच्च न्यायालय के जरिए उन्होंने 2 माह का संरक्षण मांगा, ताकि वह आम चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के लिए प्रचार कर सकें। इस अवधि के दौरान उन्हें गिरफ्तार न किया जाए, लेकिन ईडी की पटकथा में ‘क्लाईमेक्स’ तब आया, जब न्यायाधी

भारत तीसरा सबसे अधिक प्रदूषित देश है, जिसकी राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित राजधानी है। भारत की करीब 96 फीसदी आबादी जहरीली हवा में जीने को विवश है। प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मतम कण पीएम 2.5 होना चाहिए, लेकिन दिल्ली का पीएम 92.7 है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका पीएम 80.2 के साथ दूसरे स्थान पर है। भारत के 7800 शहरों में से मात्र 9 फीसदी ही ऐसे हैं, जो मानकों पर खरे उतरते हैं। सिर्फ यही नहीं, सबसे प्रदूषित 50 शहरों में से 42 शहर भारत के हैं। प्रदू

कांग्रेस के अपने ही सवाल पीछा नहीं छोड़ रहे, तो पार्टी चुनावी प्रश्रों पर अपना मत कैसे जुटाएगी। यहां कांग्रेस की जीती हुई सीटें क्यों निराश हुईं, सियासत ने तो बंद दरवाजों को हंसते देखा है। आश्चर्य है कि छह घंटियों के शोर से भी कांग्रेस के कान नहीं खुले, तो अब नया शोर कान फाडऩे पर उतारू है। सियासत के अपने दुर्ग और वीरभद्र की विरासत की प्रतीक मानी गईं प्रतिभा सिंह जो कह रही हैं, उसे प्रदेश तो सुन रहा है- कांग्रेस सुने या न सुने। पिछली संसद में जब प्रतिभा सिंह सांसद बनीं, तो कां