संपादकीय

हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का मुखिया इसलिए सदा पड़ताल का विषय रहा है, क्योंकि दायित्व का हर कालखंड शिक्षा व छात्रों की बुनियाद का पहरेदार भी माना जाता है। डा. सुरेश सोनी के रूप में एक शिक्षाविद बोर्ड परिसर में लौटा है, तो संबोधन की परिपाटी में कसौटियां तय होंगी। नए अध्यक्ष ने अपने

न्यू ईयर के आगोश में रोमांच के डग भरते पर्यटकों के लिए हिमाचल मात्र एक मंजिल नहीं, बल्कि रुहानियत का अनुभव भी है। पर्यटन की यह महफिल शांति से गुजर जाए या कानून-व्यवस्था की नाक ऊंची हो जाए, तो उस मेहनत का असर जरूर माना जाएगा जो पुलिस वर्दी में सतर्कता व तत्परता का हिमाचली

राम मंदिर पर प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद अब लगता है कि भाजपा बीते तीन दशकों से देश को बेवकूफ बना रही थी। उसने लगातार देश को भ्रमित किया और आस्था के नाम पर भावनाओं से खिलवाड़ किया। भाजपा की लारेबाजी सुनते रहे, तकनीकी और मर्यादाओं की दलीलें भी सुनीं, रथयात्राएं भी देखीं और

नदी पर्यटन की खूबियों से सराबोर कुल्लू में महाआरती का आयोजन एक बड़ा अभियान सरीखा है और इसके संदर्भ योजनाबद्ध पैगाम दे सकते हैं। इससे पहले मंडी में भी ऐसा आयोजन हो चुका है, लेकिन निरंतरता के अभाव में लक्ष्य निर्धारित नहीं हुए। कुल्लू में ब्यास तट पर भव्य आयोजन की रूपरेखा तथा शृंगारित महाआरती

नववर्ष के पहले दिन प्रधानमंत्री मोदी का साक्षात्कार टीवी चैनलों पर प्रसारित किया गया। प्रधानमंत्री का यह संपूर्ण साक्षात्कार एएनआई समाचार एजेंसी की संपादक स्मिता प्रकाश ने लिया था। संभवतः साक्षात्कार कुछ दिन पहले लिया गया था, क्योंकि प्रधानमंत्री ने ही ‘आयुष्मान भारत’ योजना के आंकड़े पुराने उद्धृत किए थे। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी का चुनाव

विडंबना है कि नए साल के पहले दिन ही ऐसी टिप्पणी करनी पड़ रही है। बीते साल के आखिरी दिन राज्यसभा में तीन तलाक बिल पेश भी नहीं किया जा सका। कारण राजनीतिक विभेद, मुस्लिम मर्दों का तुष्टिकरण और हंगामे की निरंतर परंपरा…। कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की पुरानी जिद बरकरार रही कि बिल संसद

इन्वेस्टर मीट की महत्त्वाकांक्षा में हिमाचल अपनी योग्यता, दक्षता, क्षमता और पद्धति की समीक्षा भी कर रहा है। जयराम सरकार की गंभीरता इन्वेस्टर मीट पर केंद्रित मंत्रिमंडलीय बैठकों से भी झलकती है। निवेश केवल चुनौती नहीं, सारी व्यवस्था को नए सांचे में प्रस्तुत करना भी है। निवेश की सतह पर वर्षों से खड़े प्रश्न तथा

साल के अंत में एकत्रित पर्यटकों का रोमांच पहाड़ से पूछता है उसका शृंगार किधर गया, तो बर्फ न गिरने की मायूसी में हिमाचल अपनी बगलें झांकते हुए क्या जवाब दे। तरक्की के हर पैगाम के आगे प्रकृति अगर रूठ रही है, तो नए साल के आगमन में पर्यावरणीय ऊर्जा का समावेश करना होगा। पहाड़

सत्त अवगत, 2019…एक और नववर्ष। कुछ नएपन के एहसास के साथ नई उमंगें, नई सुबह-शाम, नई चेतनाएं, नई उम्मीदें, नए संकल्प और नए लक्ष्य के साथ नववर्ष की दहलीज में प्रवेश…। बहुत कुछ पुराना भी है, जो साथ चलेगा और निरंतरता का बोध कराता रहेगा। बेशक आप इस अंग्रेजी साल को नया साल न मानें,